पार्वती जी ने खेल के नियम बताएं और जुआ खेलने का विकल्प चुना। उन्होंने पहले अपने गहने दांव पर लगाएं और शिव जी ने अपना भाला, शिवजी हार गए, तब शिवजी ने अपना सर्प दाँव पर लगाया और फिर से हार गए, फिर वह लगातार कभी गंगा, कभी भस्म, रुद्राक्ष माला दांव पर लगाते रहे३३. और हारते रहे। कुछ दौर के बाद उनके पास दांव पर लगाने के लिए कुछ नहीं बचा और खेल समाप्त हो गया और पूर्णत: बेफिक्र होकर वह अपनी समाधि लगा कर बैठ गए।
भगवान विष्णु यह सब खेल देख रहे थे, वह शिवजी के पास गए और बोले कि पार्वती जी को फिर से खेल के लिए आमंत्रित करो। इस बार मैं आपके साथ रहूंगा, देखते हैं क्या होता है। शिवजी मुस्कुराए और मान गए। पार्वती जी शिवजी के दोबारा खेल में रुचि के प्रस्ताव से आश्चर्यचकित हुई और खेलने के लिए बैठ गई। इस बार वह सारे पासे हार गई। पार्वती जी को लगा कि इस बार शिव जी ने उनके साथ धोखा किया है। और वह शिव जी से शिकायत करने लगी। उसी समय पर विष्णु जी प्रकट हुए और बोले कि मेरी ऊर्जा से पासे चल रहे थे, शिवजी तो हमेशा की तरह भोले ही थे। तो शिवजी के जीतने पर भी पार्वती जी की वास्तव में हार नहीं हुई।
हमारा जीवन भी इस जुए के खेल की तरह ही है। पार्वती माया शक्ति है और शिवजी निर्दोष आनंदित चेतना का प्रतिनिधि [त्व करते हैं। अधिकतर लोगों ने जिन्होंने कुछ उच्च ऊर्जा की हल्की सी झलक भी अनुभव की होती है वे भी जीवन की दैनिक दिनचर्या में उलझ जाते हैं। भावनाओं के तूफान भीतर हलचल मचाते रहते हैं। माया शक्ति अक्सर विजयी होती हुई दिखाई देती है।
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देवी की अनंत ज्योति
धर्मशाला से करीब ५० किलोमीटर दूर हिमाचल के शिवालिक की गोद में ज्वाला जीष्कांगड़ा जगह उपस्थित है। ज्वाला जी या ज्वालामुखी ऐसे ही अनूठे स्थानों में से एक हैं, जहां आग की लपटें जलती हुई रहती है , कहा से यह ज्ञात नहीं है जिस समय से यह जाना जाता है । नौ लपटें जवरात्रिके नौ देवी के रूप को दर्शाती हैं। ये लपटें सदियों से जल रही हैं, बिना रोके एवम बिना किसी ईधन के -देवी की शाश्वत ज्वाला।
अन्नपूर्णा पूर्णता से पूर्णता की ओर
एक बार कैलाश पर्वत पर पार्वती जी ने शिवजी को पासों का खेल खेलने के लिए आमंत्रित किया। जैसे एक पिता अपने बच्चे को खुश करने के लिए उसके साथ खेलता है, शिवजी मुस्कुराए और तैयार हो गए।
क्या आप जानते है
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जब देवी ने अनंत का अनावरण किया
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नवरात्रि-अपने भीतर जाने के लिये ९-दिवसीय यात्रा
नवरात्रि हमारी आत्मा को उन्नत करने के लिये मनाये जाते हैं। यह हमारी आत्मा ही है, जो सभी नकारात्मक गुणों (जड़ता, अभिमान, जुनून, राग, द्वेष आदि) को नष्ट कर सकती है। नवरात्रि के दौरान भीतर की ओर मुड़कर और आत्मा से जुड़कर, हम इन नकारात्मक प्रवृत्तियों को दूर कर सकते हैं और हमारे भीतर मौजूद सकारात्मक गुणों का आह्वान कर सकते हैं । इस प्रकार, हम उन्नत और पांतरित अनुभव कर सकते हैं।
भगवद् गीता-दिव्य गान
ब्रह्मांड चेतना की एक शानदार अभिव्यक्ति है। यहां जो कुछ भी आप देख रहे हैं, वह और कुछ नहीं है, बल्कि चेतना की अपनी संपूर्ण कांति के साथ अभिव्यक्ति है। अपनेपन का बोध, जिस की अनुभूति हर वस्तु और हर जीव को होती है, कुछ और नहीं बल्कि उस ‘संपूर्ण' का एक भाग है। गीता इसी से शुरू होती है ...
व्रत का विज्ञान
लोग व्रत क्यों रखते हैं? इसे धर्म में क्यों रखा गया है क्या यह तप है या क्या इसके कुछ लाभ हैं ?
कोविड 19 से बचाव के लिए रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं
योग को, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के प्रभावी एवं प्राकृतिक तरीके के रूप में जान जाता है। एक व्यवहारिक चिकित्सा जर्नल के हाल ही में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया कि योग आपकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बढ़ाने और शरीर में प्रदाह को कम करने में सहायक हो सकता है।
ऑनलाइन शिक्षा में अभिभावकों की भूमिका
मातापिता अपने बच्चों की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माना जाता है कि अभिभावकविद्यालय की साझेदारी का इस महामारी के समय में बहुत महत्व है।
अध्यापन और प्रशिक्षण के रहस्य
दुनिया शिक्षकों से भरी है। सृष्टि का हर पहलू हमें कुछ सिखा सकता है। हमें बस अच्छे छात्र बनना है।