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दीनदयाल जी और एकात्म मानववाद
दीनदयाल जी समाजवाद और साम्यवाद को कागजी और अव्यावहारिक सिद्धांत के रूप में देखते थे। उनका स्पष्ट मानना था कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में ये विचार न तो भारतीयता के अनुरूप हैं और न ही व्यावहारिक ही हैं। भारत को चलाने के लिए भारतीय दर्शन ही कारगर वैचारिक उपकरण हो सकता है। चाहे राजनीति का प्रश्न हो, चाहे अर्थव्यवस्था का प्रश्न हो अथवा समाज की विविध जरूरतों का प्रश्न हो, उन्होंने मानवमात्र से जुड़े लगभग प्रत्येक प्रश्न की समाधानयुक्त विवेचना अपने वैचारिक लेखों में की है।
जनता के बीच वित्तीय साक्षरता बढ़ा रही मोदी सरकार, लोगों की परेशानियाँ हो रही हैं दूर
भारत में कल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा ग्रामीण इलाकों में रहता है एवं अपने रोज़गार के लिए मुख्यतः कृषि क्षेत्र पर ही निर्भर हैं। इस प्रकार भारत में कृषि का क्षेत्र एक सिल्वर लाइनिंग के तौर पर देखा जाता है। सामान्य तौर पर वित्तीय समावेशन की सफलता का आकलन इस बात से हो सकता है कि सरकार द्वारा इस सम्बंध में बनायी जा रही नीतियों का फ़ायदा समाज के हर तबके, मुख्य रूप से अंतिम पायदान पर खड़े लोगों तक पहुंच रहा है। भारत में वर्ष 1947 में 70 प्रतिशत लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे थे। जबकि अब वर्ष 2020 में देश की कुल आबादी का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा है।
कोरोना मरीजों के उपचार और देखभाल की हो बेहतर व्यवस्थाः मुख्यमंत्री भूपेश बघेल
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आज यहां अपने निवास कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपने मंत्रि-मंडलीय सहयोगियों के साथ ही जिला के कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों एवं चिकित्सा अधिकारियों से राज्य में कोरोना संक्रमण की स्थिति और इसकी रोकथाम के उपायों के संबंध में विस्तार से चर्चा की और उनसे सुझाव प्राप्त किए।
भारतीय हॉकी की रानी हैं रानी रामपाल कड़ी मेहनत से पहुंची हैं शीर्ष तक
भारतीय हॉकी के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है, जब महिला हॉकी टीम की किसी खिलाड़ी को खेल जगत का सर्वोच्च सम्मान 'राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार' दिया जाएगा।
फेसबुकः उठते सवाल, राजनीतिक बवाल और बार-बार माफी मांगने की आदत
गलती करना इंसान का एक अवगुण है, कितनी ही सावधानी बरतें लेकिन कहीं ना कहीं कोई त्रुटि हो ही जाती है। लेकिन त्रुटि के बाद माफी मांगना, इंसानियत का श्रेष्ठ गुण है। सॉरी, ये एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल आप और हम न जाने कितनी ही बार करते हैं। लेकिन इसे बोलिए तभी जब सच में महसूस हो । एक बहुत ही मशहूर कहावत है कि अगर कोई काम एक या दो बार किया जाता है, तो उसे गलती कहा जाता है। लेकिन अगर वही बात बारबार दोहराई जाती है तो इसे कौन सी संज्ञा दी जाए ये आप खुद ही तय कर सकते हैं लेकिन इसे गलती तो कतई नहीं कहा जा सकता है। चेहरे की किताब यानी फेसबुक जिसके जरिए हम दोस्तों से जुड़े रिश्तेदारों से जुड़े।
मोदी सरकार की ओर से उठाये गये कदमों से बदल रहा है अर्थव्यवस्था का स्वरूप
कोरोना वायरस महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप कुछ बदलने की राह पर जाता दिखाई दे रहा है। अभी तक भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का योगदान काफ़ी कम रहता है एवं सेवा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक रहता है। परंतु बदली हुई परिस्थितियों में कृषि का योगदान कुछ बढ़ता नज़र आ रहा है एवं सेवा क्षेत्र का योगदान कम हो सकता है क्योंकि पर्यटन एवं होटल उद्योग कोरोना वायरस महामारी में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं और ये दोनों उद्योग सेवा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
15 अगस्तः स्वतंत्रता दिवस वह खास दिन जब हमें मिली थी आजादी
15 अगस्त का दिन भारतीय लोकतंत्र और हर भारतीय के लिए काफी खास दिन है। यही वह दिन है जब भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी। इसी वजह से हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। आज के समय में भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। आज हम देश की आजादी की 74वीं सालगिरह मना रहे हैं।
जानिए कारगिल युद्ध के उन जांबाजों को जिन्हें परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित
26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। यह वही दिन है जिस दिन भारत ने अपने वीर जवानों के साहस के दम पर युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटा दी थी। हमारे जवानों ने देश की आन बान और शान की खातिर अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए थे।
उल्लास में बलिदानियों को न भूलें
आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गयी जिसकी हमें वर्षों से प्रतीक्षा थी, सभी लोग बाट जोह रहे थे उस पल की जब भगवान श्रीराम के जन्मस्थान पर भव्य राम मंदिर का निर्माण हो। लेकिन यह पल ऐसे नहीं आया है। इसके लिए लाखों रामभक्तों ने बलिदान दिया है। हिन्दू समाज ने इसके लिए मुगलकाल से लेकर अब तक कई लड़ाईयां लड़ी हैं। इसके लिए हजारों माताओं की गोद सूनी हुई है। हजारों हजार स्त्रियों के सिंदूर सूख गये और हजारों हजार बहनों के रक्षासूत्र टूटे हैं। किसी ने भाई, किसी ने बेटा और किसी ने अपना पति खोया है। वहीं अनेकानेक रामभक्तों ने तरह-तरह की यातनाएं सही हैं। राम मंदिर के शिलान्यास का यह क्षण हम सब की आंखों के सामने सहज नहीं आया है। हम सब भाग्यशाली हैं कि इस गौरवपूर्ण क्षण के साक्षी बने।
भारत का इतिहास भाईचारे का अमेरिकी के नाम से जन्मा है मॉब लिचिंग
लिंचिंग' ये शब्द अमेरिका से ही आया है इस बात में संदेह नही है , कुछ लोग जिसे विलियम लिंच के नाम से जानते है तो कुछ चा लिंच के नाम से उसने एक क्रांति के दौरान अपनी निजी अदालतें बिठानी शुरू की और अपराधियों तथा विरोधी षड्यंत्रकारियों को बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के सजा देने लगा।
भारत-अमेरिका व्यापार तो बढ़ ही रहा है, मोदी के प्रयासों से निवेश की संभावनाएँ भी बढी
अभी हाल ही में भारत अमेरिका व्यापार परिषद की स्थापना के 45 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने भारत विचार शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए अमेरिका सहित विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए आमंत्रण दिया। प्रधानमंत्री ने स्वास्थ्य, रक्षा, अंतरिक्ष, ऊर्जा, बीमा समेत कई अन्य क्षेत्रों में विदेशी निवेश के लिए भारत में अवसर उत्पन्न होने के कई कारण गिनाए। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत अवसरों की भूमि के रूप में उभर रहा है। विशेष रूप से स्वास्थ्य, रक्षा, अंतरिक्ष, ऊर्जा, बीमा आदि क्षेत्रों पर निवेशकों का ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत विदेशी निवेशकों को स्वास्थ्य सेवा, रक्षा और अंतरिक्ष, ऊर्जा, बीमा आदि क्षेत्रों में निवेश करने के लिए आमंत्रित करता है। भारत में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र प्रति वर्ष 22 प्रतिशत से भी अधिक तेजी से बढ़ रहा है। भारत रक्षा के क्षेत्र में विदेशी निवेश के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को 74 तक बढ़ा रहा है। इसी प्रकार, चूंकि भारत में गैस आधारित अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है अतः ऊर्जा के क्षेत्र में भी विदेशी निवेश के लिए भारत में अपार सम्भावनाएँ पैदा हो रही हैं।
भारतीय संस्कृति की विजय का पर्व
यह सर्वसमावेशी, सभी आस्थाओं का सम्मान करने वाली, पद दलितों को अपनाने वाली, सभी का भला चाहने वाली संस्कृति की विजय का पर्व है।
राम मंदिर पर दुराग्रह का प्रदर्शन
लगभग पांच शताब्दी की लंबी प्रतीक्षा के बाद अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का भूमि पूजन समारोह संपन्न् हो गया।
गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूती की मुहर
कोरोना जैसे संकट में जब पूरी दुनिया दहशत में थी, तब भारत के महानगरों से अपने घर जाने के लिए, लाखों-करोड़ों प्रवासी श्रमिक भी वापिस कूच कर गए। सरकार द्वारा चलाई गई विशेष श्रमिक रेलों से, बसों से, पैदल भी मजदूर परिवार सहित घर लौट चले। रास्ते की हर कठिनाई का सामना किया, सफर की हर मुश्किल झेली। उनका ये हौसला देखकर दुनिया दंग थी। 2-2 हजार किलोमीटर से वापिस अपने गांव-बसेरे पर लौटते, गरीबी और हाशिए पर खड़े प्रवासी मजदूरों के सामने रोजी- रोटी की पहाड़ सी समस्या मुंह बाये खड़ी थी। आजीविका का अभाव, गुजर-बसर की जद्दोजहद में राहत की राह देख रहे करोड़ों श्रमिकों के लिए भारत सरकार की गरीब कल्याण रोजगार अभियान प्रकाश स्तंभ के रूप में आयी।
कोरोना ने 'कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश एक है की भावना को 'तार-तार तो नहीं कर दिया है?
हमारा देश अनेकता में एकता लिये हुए ऐसा देश है, जिसमें भिन्न- भिन्न संस्कृति, राजनैतिक विचार धाराएं, धार्मिक आस्थाएं नदियों पहाड़ों व जंगलों के साथ सुंदर प्राकृतिक भौगोलिक संरचना होते हुये भी, एकता लिए हुए एक मजबूत देश है। कतिपय संवैधानिक प्रतिबंधों के साथ कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश के नागरिक को कहीं भी घूमने की व जीने की स्वतंत्रता है।
भारतीय राजनीति में 'सवालों' के 'जवाब' के 'उत्तर' में क्या सिर्फ 'सवाल' ही रह गए हैं?
भारतीय राजनीति का एक स्वर्णिम युग रहा है। जब राजनीति के धूमकेतु डॉ राम मनोहर लोहिया, अटल बिहारी बाजपेई, बलराम मधोक, के. कामराज, भाई अशोक मेहता, आचार्य कृपलानी, जॉर्ज फर्नाडिस, हरकिशन सिंह सुरजीत, ई. नमबुरूदीपाद, मोरारजी भाई देसाई, ज्योति बसु, चंद्रशेखर, तारकेश्वरी सिन्हा जैसे अनेक हस्तियां रही है। ये और उनके समकक्ष अनेक नेता गण संसद मैं व बाहर इतने हाजिर जवाब होते थे, जब इनसे मीडिया या अपने विपक्षियों द्वारा कोई प्रश्न पूछा जाता था। तब उनका उत्तर सामने वाले से उल्टा प्रश्न करना नहीं होता था, जैसे कि आजकल यह एक परिपाटी ही बन गई है। बल्कि वे सटीक जवाब देकर सामने वाले को निरूतर कर आवश्यकतानुसार प्रति-प्रश्न करने में भी सक्षम होते थे व माहिर थे।
इस तरह गूगल और एपल मिलकर तोड़ेंगी कोरोना संक्रमण की चेन
पिछले कुछ महीनों से विभिन्न देशों द्वारा कोरोना संक्रमण की चेन को तोड़ने के लिए अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। कई देशों ने लॉकडाउन को एक कारगर हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया तो कइयों ने इसके लिए आधुनिक तकनीक का भी उपयोग किया है।
कोराना त्रासदी
कोरोना की टेडी और बिगडी चाल
कोरोना काल में किसानों की कड़ी मेहनत के चलते ही ढहने से बच गयी अर्थव्यवस्था
दुनिया के देशों द्वारा किसानों को अनुदान देने पर नुक्ताचीनी की जाती रही है पर कोरोना ने खेती किसानी के महत्व को और अधिक बढ़ा दिया है। जहां तक भारत की बात है सरकार, किसानों व कृषि विज्ञानियों के समग्र प्रयासों से देश आज खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर है। जिस कोरोना वायरस ने पिछले करीब छह माह से सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया है उसमें यदि कोई चीज सोने जैसी खरी उतरी है तो वह है खेती- किसानी। दरअसल 2019 के अंतिम माहों में चीन में जिस तरह से कोरोना ने अपना प्रभाव दिखाना आरंभ किया और चीन के बाद इटली और फिर योरोपीय देशों में मौत का ताण्डव मचा उससे सारी दुनिया हिल के रह गई। मार्च के दूसरे पखवाड़े से हमारे देश में भी कोरोना ने अपना प्रभाव दिखाना शुरू किया और चार लॉकडाउन भुगतने के बाद अब अनलॉक-2 का दौर चल रहा है। हमारे देश में ही कोरोना संक्रमितों की संख्या 6 लाख को पार कर गई है। लाख प्रयासों के बावजूद दुनिया भर में हजारों की संख्या में संक्रमण के मामले प्रतिदिन आ रहे हैं। सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि चीन सहित कुछ देशों में कोरोना जिस तरह से लौटकर आ रहा है वह गंभीर है।
यूपी में सधे कदमों से मिशन 2022 की ओर बढ़ती जा रही हैं प्रियंका गांधी
उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी सधे हुए कदमों से 2022 के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रही हैं। 2022 का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रियंका ने पुराने चेहरों को साइड लाइन करके अपनी पसंद की टीम तैयार कर ली है। प्रदेश से लेकर जिला और नगर इकाइयों तक पर उनकी नजर है। कोरोना काल में प्रियंका जिस तरह की सियासत कर रही हैं उसकी 'टाइमिंग' पर सवाल उठाये जा सकते हैं, लेकिन प्रियंका के जज्बे को तो 'सलाम करना ही पड़ेगा, जो कोराना से निपटने लिए जद्दोजहद कर रही योगी सरकार को लगातार आईना दिखाने का काम कर रही हैं। बिना इन आरोपों की चिंता किए कि कोरोना काल में भी गांधी परिवार घटिया सियासत कर रहा है।
लॉकडाउन के दौरान भारत में नयी जीवनशैली बन गया वर्क फ्रॉम होम
एकल परिवारों में कामकाजी महिलाओं के लिए घर व ऑफिस में सामंजस्य बिठाना मुश्किल होता है। अमेरिका में हुए मॉम क्रॉप्स के सर्वे में पता चला कि वर्क फॉम होम की सुविधा मिले, तो वहां 50 फीसदी महिलाएं थोड़े कम पैकेज पर भी काम करने को तैयार रहती हैं। देश एवं दुनिया में कोरोना महामारी एवं प्रकोप ने न केवल हमारी जीवनशैली बल्कि कार्यशैली में भी आमूलचूल परिवर्तन कर दिया है। जिन देशों में लॉकडाउन हुआ और तीन-तीन, चार-चार महीनों तक इन स्थितियों को सामना करना पड़ा, उन सभी देशों में वर्क फॉम होम की कार्यशैली को अपनाना पड़ा। कंपनियों को अपने वर्कर के लिये वर्क फॉम होम शुरू करना पड़ा था।
हालात यही रहे तो पेट्रोल-डीजल के लिए भी बैंक से लोन लेना पड़ेगा
सुबह-सुबह बैंक खुलते ही जाकर अभिनव ने आसन जमाया। उसके साथ उसकी पत्नी, पत्नी की सहेली, सहेली का पति, गारंटर सभी थे। वैसे प्रबंधक जी उस दिन भी व्यस्त थे। लेकिन पहले से ही फिल्डिंग जमाकर रखने का लाभ यह हुआ कि अभिनव को कोई दिक्कत नहीं हुई।
विश्व में 'लॉकडाउन की नीति' कहीं 'गलत' व 'असफल' तो सिद्ध नहीं हो रही है?
'कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिये कमोवेश पूरे विश्व में लॉकडाउन की नीति अपनाई, जिसके परिणाम स्वरूप आज विश्व के लगभग 200 देशों की आधी से ज्यादा आबादी घर में कैद है, और आर्थिक रथ का चक्का जाम हो गया हैं। इसके बावजूद कमोवेश कुछ को छोड़कर प्रायः हर देश में संक्रमित मरीजों की संख्या में औसतन वृद्धि ही हो रही है।हमारा देश भारत भी इससे अछूता नहीं बचा है। तो फिर क्यों न यह माना जाए कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिये लॉकडाउन की नीति ही मूल रूप से गलत हैं? इसलिए कि इससे संक्रमण को रोकने के घोषित उद्देश्य की प्राप्ति तो हुई नहीं ? अलावा इसके परिणाम स्वरूप सभी देशों का आर्थिक स्वास्थ्य बीमार हो जाने के कारण इससे पैदा हुई दूसरी नई (आर्थिक) बीमारी के चलते अधिकांश देश बेरोजगारी व आर्थिक मंदी के गर्त में चले गये।
मोदी सरकार के एक साल राज्यों में शिकस्त के बाद भी भाजपा ने कायम रखी अपनी ताकत
लोकसभा चुनाव के बाद, एक के बाद एक विधानसभा चुनाव में मिली हार से भाजपा में निराशा के भाव बढ़ती जा रही थी। भाजपा दिल्ली को लेकर अति उत्साहित थी। दिल्ली में इस साल फरवरी में चुनाव हुए। भाजपा ने पूरा दमखम लगाया परंतु कामयाबी नहीं मिल पाई। साल 2019 में दोबारा सत्ता में वापसी के बाद भाजपा ने देश में अपने प्रभुत्व को बरकरार रखा। 2014 में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा केंद्र की सत्ता में आई थी, उसके बाद से लगातार इस पार्टी का दबदबा देश के अन्य भागों में भी बढ़ता गया।
पैकेज किसके लिए?
करोड़ रुपये की वृद्धि की है। दूसरे प्रदेशों से लौट रहे श्रमिकों के समक्ष गहरा आर्थिक संकट है। उन्हें रोजगार की अधिक जरूरत है ताकि उनकी जिंदगी चल सके।
उच्चतम न्यायालय की स्वतःप्रेरणा से प्रवासियों श्रमिकों पर निर्णय!
उच्चतम न्यायालय की स्वतःप्रेरणा से प्रवासियों श्रमिकों पर निर्णय!
नुकसान तो बहुत हुआ है पर अब फिर उठ खड़े होकर आगे बढ़ने का समय
समस्याएं सब गिना रहे हैं, समाधान कोई नहीं बन रहा है। 12 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं और उद्योग-व्यापार ठप्प है। देश में गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या 21.7 प्रतिशत से बढ़ कर 40 प्रतिशत से ऊपर तक होने की संभावनाएं हैं। अब लॉकडाऊन आंशिक रूप से उठ गया है, इससे सामान्य जीवन के धीरे-धीरे पटरी पर लौटने में मदद मिलेगी। यही वह क्षण है जिसकी हमें प्रतीक्षा थी और वह सोच है जिसका आह्वान है अभी और इसी क्षण हमें कोरोना महामारी के साथ जीने की संयम, धैर्य एवं मनोबल पूर्ण एवं सावधानीपूर्ण तैयारी करनी होगी। कोरोना लम्बा चलने वाला है और उससे पीड़ितों की संख्या भी चौंकाने वाली होगी, इसलिये असली परीक्षा अब है। हम अपनी जमीं को इतना उर्वर बना लें जिस पर उगने वाला हर फल हम सबके जीवन को रक्षा दे और हर फूल अपनी सौरभ हवा के साथ कोरोना मुक्ति का स्वस्थ परिवेश सब तक पहुंचा दें।
'बस' की राजनीति! 'लोकतंत्र' की 'जिजीविषा' का द्योतक है
'विगत दिनों से उत्तर प्रदेश में 1000 बसों पर राजनीति चल रही है, लेकिन बस, सिर्फ “बस
कोरोना बीमारी कहीं हिंदी भाषा को अंग्रेजी से संक्रमित तो नहीं कर कर रही है?
इस कोरोना काल में कई नए नए शब्दों का ईजाद हो रहा है। इनसे हम रोज रूबरू हो रहे हैं। इन शब्दों को देखने से यह बात ध्यान में आई किये सब अंग्रेजी शब्द जिनका उपयोग वर्तमान में धड़ल्ले से हो रहा है, क्या इनके हिंदी शब्द नहीं हैं? जिनका अर्थ समान व सामान्य रूप से वही समझा जा सके? वैसे भी आज के जमाने में “शुद्धता“ कहां रह गई है? 'मिश्रण (मिलावट) का जमाना है। इसी कारण हिंदुस्तान के नागरिकों के जीवन में ज्यादातर अंग्रेजी मिश्रित हिंदी का प्रयोग काफी समय से बहुत ज्यादा में चलन में है
आत्मनिर्भर भारत कृषि क्रान्ति का नया सोपान
सब कुछ थम गया कोविड-19 की विपरीत परिस्थितियों में शहर थम गए, रेल रुक गई, हवाई जहाज नहीं उड़े, पर जो नहीं ठहरा, वह भारत का किसान था। देश का मेरुदंड बनकर तना हुआ खड़ा था। कोरोना महामारी के शुरुआती दौर में रबी की फसल पककर कटने को तैयार थी। किसी विद्वान ने कहा है कि 'दुनिया में सारी चीजें प्रतीक्षा कर सकती है, पर कृषि नहीं ।ये काम नियत समय पर ही होना था। भारत सरकार ने भी इसकी अनिवार्यता जानते हुए लॉक डाउन में सबसे पहले खेती से जुड़े कामों को करने की रियायत दी। पर केवल बंधनों में छूट देने पर ही नहीं रुकी सरकार। कृषक और कृषि की भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत सरकार राहत का पैकेज लाई।