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'माननीय' बनने में क्यों पिछड़ रही 'आधी आबादी'
DASTAKTIMES
|May 2024
राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम क्यों है? इसकी वजह तालाशी जाए तो यह साफ है कि भारत एक गहन पितृसत्तात्मक समाज है और महिलाओं को प्रायः पुरुषों से हीन माना जाता है। यह मानसिकता समाज में गहराई तक समाई हुई है और महिलाओं की राजनीति में नेतृत्व एवं भागीदारी की क्षमता के संबंध में लोगों की सोच को प्रभावित करती है।
 आजादी के करीब 75 वर्षों के बाद भी भारत में राजनीतिक रूप से महिलाओं को उनका प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है। इसके लिए एक तरफ तमाम राजनीतिक दलों का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है तो वहीं मतदाता भी कसूरवार हैं जो मतदान करते समय महिला उम्मीदवारों पर पूरी तरह से विश्वास नहीं रख पाते है। जबकि हम सामाजिक पुनर्जागरणकाल और राजनीतिक चेतना का विकास साथ-साथ मानने पर पाते हैं कि सामाजिक पुनर्जागरण और नारी का मुक्ति-संघर्ष 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक साथ तब हुआ था, जब बंगाल में ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय, बंबई (अब मुम्बई) में प्रार्थना समाज के संस्थापक महादेव गोविंद रानाडे और उत्तर पश्चिम भारत में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद ने अपने सामाजिक सुधारों में स्त्री-उत्थान में कार्य को प्रमुख स्थान दिया था। 1857 में भारत के पहले बड़े स्वतंत्रता-संग्राम और 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना के बाद सामाजिक सुधार और राजनीतिक चेतना की यह मिली-जुली प्रवृति साथ-साथ आगे बढ़ी। उधर, महिलाओं को आगे बढ़ाने के मामले में आज कांग्रेस की स्थिति जैसी भी हो लेकिन कांग्रेस के जन्मकाल में स्त्रियां किसी न किसी रूप में अपनी भूमिका अदा करती रही थीं। परिणाम स्वरूप सामाजिक संस्थाएं और महिला संगठन उनमें राजनीतिक जागृति लाने में सहायक रहे थे, किन्तु इसे महिलाओं का राजनीति में सीधे प्रवेश नहीं कहा जा सकता है।
This story is from the May 2024 edition of DASTAKTIMES.
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