Akhand Gyan - Hindi Magazine - April 2021
Akhand Gyan - Hindi Magazine - April 2021
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Akhand Gyan Hindi April 2021
एका बना वैष्णव वीर!
आपने पिछले प्रकाशित अंक (मार्च 2020) में पढ़ा था, एका शयन कक्ष में अपने गुरुदेव जनार्दन स्वामी की चरण-सेवा कर रहा था। सद्गुरु स्वामी योगनिद्रा में प्रवेश कर समाधिस्थ हो गए थे। इतने में, सेवारत एका को उस कक्ष के भीतर अलौकिक दृश्य दिखाई देने लगे। श्री कृष्ण की द्वापरकालीन अद्भुत लीलाएँ उसे अनुभूति रूप में प्रत्यक्ष होती गईं। इन दिव्यानुभूतियों के प्रभाव से एका को आभास हुआ जैसे कि एक महामानव उसकी देह में प्रवेश कर गया हो। तभी एक दरोगा कक्ष के द्वार पर आया और हाँफते-हाँफते उसने सूचना दी कि 'शत्रु सेना ने देवगढ़ पर चढ़ाई कर दी है। अतः हमारी सेना मुख्य फाटक पर जनार्दन स्वामी के नेतृत्व की प्रतीक्षा में है।' एका ने सद्गुरु स्वामी की समाधिस्थ स्थिति में विघ्न डालना उचित नहीं समझा और स्वयं उनकी युद्ध की पोशाक धारण करके मुख्य फाटक पर पहुँच गया। अब आगे...
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'सुख' 'धन' से ज्यादा महंगा!
हेनरी फोर्ड हर पड़ाव पर सुख को तलाशते रहे। कभी अमीरी में, कभी गरीबी में, कभी भोजन में, कभी नींद में कभी मित्रता में! पर यह 'सुख' उनके जीवन से नदारद ही रहा।
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कैसा होगा तृतीय विश्व युद्ध?
विश्व इतिहास के पन्नों में दो ऐसे युद्ध दर्ज किए जा चुके हैं, जिनके बारे में सोचकर आज भी मानवता काँप उठती है। पहला था, सन् 1914 में शुरु हुआ प्रथम विश्व युद्ध। कई मिलियन शवों पर खड़े होकर इस विश्व युद्ध ने पूरे संसार में भयंकर तबाही मचाई थी। चार वर्षों तक चले इस मौत के तांडव को आगामी सब युद्धों को खत्म कर देने वाला युद्ध माना गया था।
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अपने संग चला लो, हे प्रभु!
जलतरंग- शताब्दियों पूर्व भारत में ही विकसित हुआ था यह वाद्य यंत्र। संगीत जगत का अनुपम यंत्र! विश्व के प्राचीनतम वाद्य यंत्रों में से एक। भारतीय शास्त्रीय संगीत में आज भी इसका विशेष स्थान है। इतने आधुनिक और परिष्कृत यंत्र बनने के बावजूद भी जब कभी जलतरंग से मधुर व अनूठे सुर या राग छेड़े जाते हैं, तो गज़ब का समाँ बँध जाता है। सुनने वालों के हृदय तरंगमय हो उठते हैं।
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चित्रकला में भगवान नीले रंग के क्यों?
अपनी साधना को इतना प्रबल करें कि अत्यंत गहरे नील वर्ण के सहस्रार चक्र तक पहुँचकर ईश्वर को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लें।
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ठक! ठक! ठक! क्या ईश्वर है?
यदि तुम नास्तिकों के सामने ईश्वर प्रत्यक्ष भी हो जाए, तुम्हें दिखाई भी दे, सुनाई मी, तुम उसे महसूस भी कर सको, अन्य लोग उसके होने की गवाही भी दें, तो भी तुम उसे नहीं मानोगे। एक भ्रम, छलावा, धोखा कहकर नकार दोगे। फिर तुमने ईश्वर को मानने का कौन-सा पैमाना तय किया है?
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आइए, शपथ लें..!
एक शिष्य के जीवन में भी सबसे अधिक महत्त्व मात्र एक ही पहलू का हैवह हर साँस में गुरु की ओर उन्मुख हो। भूल से भी बागियों की ओर रुख करके गुरु से बेमुख न हो जाए। क्याकि गुरु से बेमुख होने का अर्थ है-शिष्यत्व का दागदार हो जाना! शिष्यत्व की हार हो जाना!
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अंतिम इच्छा
भारत की धरा को समय-समय पर महापुरुषों, ऋषि-मुनियों व सद्गुरुओं के पावन चरणों की रज मिली है। आइए, आज उन्हीं में से एक महान तपस्वी महर्षि दधीची के त्यागमय, भक्तिमय और कल्याणकारी चरित्र को जानें।
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भगवान महावीर की मानव-निर्माण कला!
मूर्तिकार ही अनगढ़ पत्थर को तराशकर उसमें से प्रतिमा को प्रकट कर सकता है। ठीक ऐसे ही, हर मनुष्य में प्रकाश स्वरूप परमात्मा विद्यमान है। पर उसे प्रकट करने के लिए परम कलाकार की आवश्यकता होती है। हर युग में इस कला को पूर्णता दी है, तत्समय के सद्गुरुओं ने!
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ठंडी बयार
सर्दियों में भले ही आप थोड़े सुस्त हो गए हों, परन्तु हम आपके लिए रेपिड फायर (जल्दी-जल्दी पूछे जाने वाले) प्रश्न लेकर आए हैं। तो तैयार हो जाइए, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए। उत्तर 'हाँ' या 'न' में दें।
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शयन मुद्रा दर्शाती है, हमारा व्यक्तित्व!
हमारा व्यक्तित्व हमारे उठने, बैठने, चलने और बोलने से झलकता है। परन्तु आजकल की छल से भरी दुनिया अपनी इन मुद्राओं पर आसानी से मुखौटा चढ़ा लेती है। उनसे सच्चाई प्रकट होने नहीं देती। इसलिए आज इंसान के व्यक्तित्व को, उसकी पर्सनैलिटी को समझना कठिन हो गया है।
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जीव-जन्तुओं ने सुनाई संगच्छध्वं की धुन!
ईश्वर द्वारा निर्मित इस प्रकृति का प्रत्येक अंश प्रेरणादायक है। जर्रा-जर्रा मनुष्य को अमूल्य शिक्षाओं का पाठ पढ़ा रहा है। मानव चाहे तो आसपास के वातावरण व जीव-जन्तुओं से अनेक प्रेरणाएँ ग्रहण कर अपना चहुंमुखी विकास कर सकता है। तो चलिए, इस बार हम भी कुछ ऐसा ही प्रयास करते हैं। इस लेख के माध्यम से सृष्टि के विभिन्न जीव-जन्तुओं द्वारा उच्चारित 'संगच्छध्वं' की धुन सुनते हैं। इन प्रेरक रत्नों को आत्मसात करने हेतु पग बढ़ाते हैं।
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इंतजार!
ज्यों ही पलकें उठीं, तो बाबा बुढन शाह ने अद्वितीय दिव्य नज़ारा देखा। उनके सामने साक्षात् गुरुदेव खड़े थे। उनका मुखमण्डल कभी गुरु नानक देव जी का दर्शन दे रहा था और कभी वर्तमान गुरु श्री हरगोबिंद सिंह जी का।
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कैसे साधक की उन्नति होती रहेगी?
भगवान बुद्ध अपने सहस्रों भिक्षुओं के साथ कौशाम्बी के घोषिताराम में ठहरे हुए थे। सायंकाल सभी भिक्षु महाबुद्ध के समक्ष अर्ध-चंद्राकार में बैठ गए।
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अंगूठा छाप विद्वान!
जिन उपदेशों को तुम पढ़-गुन कर गर्व करते हो, उनका सार स्वयं श्री भगवान इस युवक की चेतना में उतारते हैं। अहो! गुरु-आज्ञा के पालन से कितना मधुर फल पाया है इसने!
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साकार शिव किसका ध्यान करते हैं?
जिस आयु में बालक मिट्टी में खेलते हैंउसमें यह श्यामा मिट्टी को भभूति की तरह तन पर रमाकर बड़ेबड़े संन्यासियों जैसे ध्यान कर रहा है! मानो साक्षात् शिव की प्रतिमा हो!... सच! अद्भुत है, मेरा श्यामा!
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आओ, संकल्प लें!
आओ, हम संकल्प लें कि हम सभी श्री गुरु महाराज जी के शिष्य, उनके आदर्शों और आज्ञाओं को भूल से भी नहीं भूलेंगे। हर श्वास में सतर्क रहेंगे। ताकि, किसी भी फिसलन भरे मोड़ पर हम डिगे नहीं।
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वानर-साधकों की खोज-यात्रा!-(रामचरितमानस से व्यक्तित्व-निर्माण के सूत्र!)
एक खिलाड़ी को दौड़ते हुए दो तरह के स्वर सुनाई देते हैं। एक स्वर नकारात्मक होता है, उसके आलोचकों का! दूसरा स्वर सकारात्मक होता है, उसके मार्गदर्शक का! किस स्वर को तूल देनी है, यह खिलाड़ी का निर्णय होता है।
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बरगद वृक्ष से एक इंटरव्यू!
मेरे अनेकानेक नाम हैं- अच्युतावास, अवरोहशाखी, अवरोही, कलापी, कलिंग, जटाल, जटी, ध्रुव, न्यग्रोध, नंदी, वट, बड़, बोधि, भूकेश,शृंगी... महात्मा बुद्ध ने मेरी छांव तले आत्म-बोध पाया, इसलिए मुझे 'बोधि वृक्ष' भी नाम दिया गया। मेरी भव्यता के कारण भारतीय मुझे वट वृक्ष या वृक्षराज कहकर बुलाते रहे हैं।
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कभी-कभी ऐसा भी करना चाहिए...
जीवन में सुलझी राहें हों या उलझे मोड़अपनी सकारात्मकता पर नकारात्मक सोच को, उत्साह पर निराशा को, जिन्दादिली पर बुजदिली को हावी करने में हमेशा हार जाना! पूरी तरह हार जाना!
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दिव्य अनुभूतियाँ-अलौकिक संदेश!
तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे... मैं कहता हौं आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी।
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बॉडी लैंग्वेज- सांकेतिक भाषा!
अध्ययनों व शोधों द्वारा यह पाया गया कि सामने वाले व्यक्ति पर हमारे शब्दों और लहजों का प्रभाव 45% होता है, जबकि बॉडी लैंग्वेज का प्रभाव 55% होता है। कहने का मतलब कि हम बिना कुछ बोले ही बहुत कुछ कह जाते हैं।
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ग्रंथों की अनखुली ग्रन्थियाँ!
आज भगवान श्री कृष्ण के श्रीमुख से निकली दिव्यवाणी 'गीता' की गौरवगाथा का कहीं कोई अंत नहीं है। पर इसे जग के समक्ष उजागर करने का श्रेय यदि किसी को जाता है, तो वे हैं आदिगुरु शंकराचार्य जी।
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अद्भुत संयोग
इन संयोगों द्वारा ईश्वर हम अहंकारी मनुष्यों को यह अनुभूति कराना चाहता है कि हम चाहे कितने ही सयाने क्यों न हो जाएँ, पर उसके द्वारा रचित व संचालित सृष्टि को कभी अपनी सीमित बुद्धि द्वारा पूरी तरह समझ नहीं पाएँगे।
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पुष्पदन्त का अनूठा पुष्प-शिवमहिम्नस्तोत्रम्'!
भगवान आशुतोष की महिमा अनंत है। इसीलिए भोले भक्तों के लिए अपने नाथ'भोलेनाथ' के गुणों को बाँचना अति कठिन है। किन्तु प्रभु प्रेम के रस में सराबोर भक्त अपने नाथ की महिमा को गाए बिना रह भी तो नहीं सकते। इसलिए अपने छोटे-छोटे भाव-पुष्प ही प्रभु के श्री चरणों में अर्पित करने का प्रयास करते हैं। कुछ ऐसे ही भाव पुष्प थे, भक्त पुष्पदन्त के! इन्होंने भगवान शिव की महिमा में 43 श्लोकों के पुष्पों को पिरोकर 'शिवमहिम्नस्तोत्रम्' की माला बनाई। भगवान शिव को यह माला अर्पित कर प्रसन्न किया। आइए, आज हम भी 'शिवमहिम्नस्तोत्रम् की गाथा को जानें और प्रत्यक्ष देखें कि भोलेनाथ सच में शीघ्र प्रसन्न होने वाले आशुतोष ही हैं।
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महारास !
द्वापर में वृंदावन की गोपियों के पश्चात्ताप और परिष्कार ने कृष्ण को वापिस बुला लिया। हर युग में सत्ता तो वही है। लीला भी वही है। पर क्या हममें ऐसी गोपियाँ हैं? क्या हमारे पश्चात्ताप और पुकार में इतना सामर्थ्य है? इसका आकलन हमें स्वाध्याय करके स्वयं ही करना होगा।
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गुरु से क्या और किस प्रकार पाएँ ?
साईं बाबा की बगिया... सबूरी से महक रही थी। शिरडी में भक्ति और ज्ञान के कमल लेकर बाबा बैठे थे। जो द्वारे आता, उसी की झोली में इन अलौकिक फूलों की सौगात डाल देते। इन्हीं दिनों नाना साहिब चंदोरकर का शिरडी में आना हुआ। नाना साहिब वेदांत के धुरंधरों में से एक माने जाते थे।
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दिवाली (कार्तिक अमावस्या)
पंचदिवसीय उल्लास दीपावली
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करनी नहीं, कथनी!
समाधान प्रदाता-गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी
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'स्थान' नहीं, 'संघर्ष' मायने रखता है!
'स्थान' नहीं, आंतरिक संघर्ष' मायने रखता है। आबोहवा' नहीं, गुरु की आज्ञा' में शक्ति होती है, जो तुम्हें आध्यात्मिक सफर पर कहीं का कहीं पहुंचा सकती है... और गुरुदेव शिष्य की सीरत, प्रवृत्तियों के हिसाब से ही आज्ञा देते हैं। हिमालय की एकांत और शीतल वादियाँ तुम्हें वो नहीं दे सकतीं, जो गुरु के देश में बिताया एक पल तुम्हें देता है। गुरु-दरबार की घुटी-घुटी हवा में भी खुशबू' है! वहाँ के शोर में भी अनहद नाद' है! और वहाँ की भागदौड़ भी उत्थान की सीढ़ियाँ चढ़ने जैसा है।
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Akhand Gyan - Hindi Magazine Description:
Publisher: Divya Jyoti Foundation
Category: Religious & Spiritual
Language: Hindi
Frequency: Monthly
Akhand Gyan is a monthly spiritual magazine of Divya Jyoti Jagrati Sansthan. With a new rainbow collection every month, it encapsulates more than 60 versatile shades of write-ups, such as: Corporate Spirituality, Personality Bytes, Healing Herbs, Vedic-o-logy, Grooming Relationships, Self-Analysis Zone, Kindergarten, and many more. It provides deep insight into the solutions of problems prevailing in life and society today, with a comprehensive outlook from spiritual, scientific and philosophical perspectives. Akhand Gyan is available in three languages: English, Hindi and Punjabi, all with unique and inspirational contents.
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