यह जलतरंग है क्या? आइए जानते हैं। यह दो शब्दों का संगम हैजल+तरंग। अपने नाम को साकार करते इस यंत्र में प्यालों में भरे जल से तरंग उत्पन्न की जाती है। यही तरंग फिर संगीत बन कर प्रस्फुटित होती है। तभी इस वाद्य यंत्र को 'जलयंत्र' व 'जलतरंगम्' भी कहा जाता है। दरअसल यह यंत्र प्यालों की एक श्रृंखला है। ये प्याले काँसे या चीनी मिट्टी के बने होते हैं। अधिकांशतः पात्रों की संख्या 15 से 22 के बीच होती है। यह संख्या इस बात पर निर्भर करती है कि आप इस यंत्र से कैसा संगीत निकालना चाहते हैं! इन सभी पात्रों को जल से भर कर अर्धगोलाकार ढंग से व्यवस्थित किया जाता है। इस शृंखला के मध्य में वादक बैठता है। यह संगीतवादक छड़ी अथवा लकड़ी की डंडी को प्यालों के किनारे पर मारता है, जिससे संगीत झंकृत होता है।
पाठकगणों, यह तो हमने आपको इस यंत्र की ऊपरी रूपरेखा बता दी। अब थोड़ा गहराई में जाकर विश्लेषण करते हैं। इस विलक्षण वाद्य यंत्र की कार्यशैली अपने में अद्भुत संदेश समेटे हुए है। इसकी कार्यशैली के दो प्रमुख पहलू है।
पहला पहलू- जलतरंग यंत्र में भिन्न-भिन्न आकार के प्याले प्रयोग किए जाते हैं। फिर इन पात्रों में अलग-अलग स्तर तक जल भरा जाता है। वादक इन विभिन्न आकार के प्यालों का बहुत निपुणता से उपयोग करता है। जैसे कि संगीत में मुख्यतः तीन सप्तक होते हैंमंद्र, मध्यम और तार। बड़े आकार के प्यालों पर छड़ी मारने से 'मंद्र' सप्तक के स्वर फूटते हैं। मध्यम आकार के प्यालों से 'मध्यम' सप्तक और छोटे माप के प्यालों से "तार' सप्तक के स्वरों की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार अलग-अलग आकार के पात्रों से भिन्न-भिन्न सप्तक के स्वर निकाले जाते हैं। अतः जलतरंग वादक जैसे संगीत की रचना करनी होती है, वैसे ही माप के प्यालों का प्रयोग कर उनसे स्वर झंकृत करता है।
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एका बना वैष्णव वीर!
आपने पिछले प्रकाशित अंक (मार्च 2020) में पढ़ा था, एका शयन कक्ष में अपने गुरुदेव जनार्दन स्वामी की चरण-सेवा कर रहा था। सद्गुरु स्वामी योगनिद्रा में प्रवेश कर समाधिस्थ हो गए थे। इतने में, सेवारत एका को उस कक्ष के भीतर अलौकिक दृश्य दिखाई देने लगे। श्री कृष्ण की द्वापरकालीन अद्भुत लीलाएँ उसे अनुभूति रूप में प्रत्यक्ष होती गईं। इन दिव्यानुभूतियों के प्रभाव से एका को आभास हुआ जैसे कि एक महामानव उसकी देह में प्रवेश कर गया हो। तभी एक दरोगा कक्ष के द्वार पर आया और हाँफते-हाँफते उसने सूचना दी कि 'शत्रु सेना ने देवगढ़ पर चढ़ाई कर दी है। अतः हमारी सेना मुख्य फाटक पर जनार्दन स्वामी के नेतृत्व की प्रतीक्षा में है।' एका ने सद्गुरु स्वामी की समाधिस्थ स्थिति में विघ्न डालना उचित नहीं समझा और स्वयं उनकी युद्ध की पोशाक धारण करके मुख्य फाटक पर पहुँच गया। अब आगे...
'सुख' 'धन' से ज्यादा महंगा!
हेनरी फोर्ड हर पड़ाव पर सुख को तलाशते रहे। कभी अमीरी में, कभी गरीबी में, कभी भोजन में, कभी नींद में कभी मित्रता में! पर यह 'सुख' उनके जीवन से नदारद ही रहा।
कैसा होगा तृतीय विश्व युद्ध?
विश्व इतिहास के पन्नों में दो ऐसे युद्ध दर्ज किए जा चुके हैं, जिनके बारे में सोचकर आज भी मानवता काँप उठती है। पहला था, सन् 1914 में शुरु हुआ प्रथम विश्व युद्ध। कई मिलियन शवों पर खड़े होकर इस विश्व युद्ध ने पूरे संसार में भयंकर तबाही मचाई थी। चार वर्षों तक चले इस मौत के तांडव को आगामी सब युद्धों को खत्म कर देने वाला युद्ध माना गया था।
अपने संग चला लो, हे प्रभु!
जलतरंग- शताब्दियों पूर्व भारत में ही विकसित हुआ था यह वाद्य यंत्र। संगीत जगत का अनुपम यंत्र! विश्व के प्राचीनतम वाद्य यंत्रों में से एक। भारतीय शास्त्रीय संगीत में आज भी इसका विशेष स्थान है। इतने आधुनिक और परिष्कृत यंत्र बनने के बावजूद भी जब कभी जलतरंग से मधुर व अनूठे सुर या राग छेड़े जाते हैं, तो गज़ब का समाँ बँध जाता है। सुनने वालों के हृदय तरंगमय हो उठते हैं।
चित्रकला में भगवान नीले रंग के क्यों?
अपनी साधना को इतना प्रबल करें कि अत्यंत गहरे नील वर्ण के सहस्रार चक्र तक पहुँचकर ईश्वर को पूर्ण रूप से प्राप्त कर लें।
ठक! ठक! ठक! क्या ईश्वर है?
यदि तुम नास्तिकों के सामने ईश्वर प्रत्यक्ष भी हो जाए, तुम्हें दिखाई भी दे, सुनाई मी, तुम उसे महसूस भी कर सको, अन्य लोग उसके होने की गवाही भी दें, तो भी तुम उसे नहीं मानोगे। एक भ्रम, छलावा, धोखा कहकर नकार दोगे। फिर तुमने ईश्वर को मानने का कौन-सा पैमाना तय किया है?
आइए, शपथ लें..!
एक शिष्य के जीवन में भी सबसे अधिक महत्त्व मात्र एक ही पहलू का हैवह हर साँस में गुरु की ओर उन्मुख हो। भूल से भी बागियों की ओर रुख करके गुरु से बेमुख न हो जाए। क्याकि गुरु से बेमुख होने का अर्थ है-शिष्यत्व का दागदार हो जाना! शिष्यत्व की हार हो जाना!
अंतिम इच्छा
भारत की धरा को समय-समय पर महापुरुषों, ऋषि-मुनियों व सद्गुरुओं के पावन चरणों की रज मिली है। आइए, आज उन्हीं में से एक महान तपस्वी महर्षि दधीची के त्यागमय, भक्तिमय और कल्याणकारी चरित्र को जानें।
भगवान महावीर की मानव-निर्माण कला!
मूर्तिकार ही अनगढ़ पत्थर को तराशकर उसमें से प्रतिमा को प्रकट कर सकता है। ठीक ऐसे ही, हर मनुष्य में प्रकाश स्वरूप परमात्मा विद्यमान है। पर उसे प्रकट करने के लिए परम कलाकार की आवश्यकता होती है। हर युग में इस कला को पूर्णता दी है, तत्समय के सद्गुरुओं ने!
ठंडी बयार
सर्दियों में भले ही आप थोड़े सुस्त हो गए हों, परन्तु हम आपके लिए रेपिड फायर (जल्दी-जल्दी पूछे जाने वाले) प्रश्न लेकर आए हैं। तो तैयार हो जाइए, निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देने के लिए। उत्तर 'हाँ' या 'न' में दें।
Everyone's a Critic
What are literary studies for?
Onward and Upward With the Arts - Game Theory
Can a critically acclaimed video game be turned into a hit HBO series?
Why Read Literary Biography?
What Shirley Hazzard’ life can, and can't, tell us about her fiction
THE KING AND I
Remembering the late, great film director Jean-Luc Godard.
Ayurveda: for the Uninitiated
The 3,000-year-old science is new” again, and it’s got some very modern surprises.
A Novelist Walks into a Bar...
If you want to write a novel, start with what baffles you like bellying up to the bar in Alabama
Annie Hwang - Agents & Editors
Annie Hwang of Ayesha Pande Literary talks about community building, professional burnout, the questions writers should ask when querying agents, and the demanding work of advocating for diversity in publishing.
Centering Neurodivergent Poets
If reading is another form of listening, truly attuning to an unfamiliar voice can be a means of transformation.
Rise of the Sensitivity Reader
Overzealous gatekeeping on race and gender is killing books before they're published or even written.
Advice to the Young
One of the world's most celebrated writers has much to share—though she sometimes wonders whether she should keep her thoughts to herself