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औरंगजेब की कब्र पर राजनीतिक मातम
Sarita
|April First 2025
आजकल ट्रैंड चल पड़ा है कि जिस को भी बड़ा नेता बनना होता है वह हिंदू भावनाओं को भड़काने वाला कोई विवादित बयान दे देता है.
इस समय औरंगजेब और औरंगजेब की कब्र को ले कर खूब विवादास्पद बयान दिए जा रहे हैं. जाहिर है कि कब्र पर अभी और बवाल मचेगा और यह मामला बाबरी मसजिद से भी ज्यादा गंभीर हो सकता है.
महाराष्ट्र सहित पूरे उत्तर भारत में औरंगजेब की कब्र को ले कर सियासत गरम है. फिल्म 'छावा', जो छत्रपति शिवाजी और उन के पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन और मुगल शासक औरंगजेब से उन के युद्ध पर आधारित है, की रिलीज के बाद हिंदू संगठन औरंगजेब के खिलाफ आग उगल रहे हैं. खुल्दाबाद से औरंगजेब की कब्र को उखाड़ फेंकने के लिए विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और भाजपा के कार्यकर्ता सड़क पर हैं. मजे की बात यह है कि जिस फिल्म को देख कर हिंदूवादी उग्र हो रहे हैं उस फिल्म की कहानी इतिहास के पन्नों से नहीं बल्कि मराठी के उपन्यासकार शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास 'छावा' से उठाई गई है.
हिंदू संगठनों ने महाराष्ट्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर सरकार द्वारा कब्र को नहीं हटाया जाएगा तो हम अयोध्या की बाबरी मसजिद की तरह इसे खुद हटा देंगे. इस के बाद से छत्रपति संभाजी नगर (औरंगाबाद) में स्थित औरंगजेब की कब्र की सुरक्षा बढ़ा दी गई है और बड़ी संख्या में पुलिस बल की वहां तैनाती है.
गौरतलब है कि औरंगजेब की कब्र भारत की ऐतिहासिक विरासत है. इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का संरक्षण प्राप्त है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कानून के अनुसार, कोई भी प्राचीन स्मारक या संरचना, जो कम से कम 100 वर्षों से मौजूद हो, को पुरातत्वीय स्थल या संरक्षित स्मारक माना जाता है. औरंगजेब की कब्र 1707 से खुल्दाबाद में मौजूद है. इस आधार पर केंद्र सरकार ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है और महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार इस को चाह कर भी हटा नहीं सकती.
कार सेवा की गूंजThis story is from the April First 2025 edition of Sarita.
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