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सिर्फ मां नहीं सहेली भी
Rupayan
|February 07, 2025
मां बेटी का रिश्ता अनमोल है। इस रिश्ते अपने अनुभव को बेटी के साथ साझा करके उसे सही मार्गदर्शन देती है और हर कदम पर प्यार तथा सुरक्षा देने का प्रयास करती है। लेकिन बेटियों की परवरिश करते हुए आपको कई पहलुओं का रखना होता है।

बेटी के साथ मां अपना बचपन जीती है। बचपन, किशोरावस्था और फिर युवा होती बेटी की राह में आने वाली परेशानी, बनती-बिगड़ती दोस्ती, कॅरिअर बनाने और जो वो न कर सकी, उस सपने को साकार करने की चाह में मां बेटी के साथ एक बार फिर से जी जाती है। हर मां चाहती है कि वह बेटी की राह में उगने वाले कांटों को निकालकर फेंक दे। लेकिन यह इतना आसान नहीं है। सच तो यह है कि मां के लिए बेटी की परवरिश एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि उसे कई बातों का ख्याल रखना होता है। मगर हर मां अपनी बेटी को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से सशक्त बनाना चाहती है, ताकि समाज में उसका स्थान और भागीदारी सशक्त हो सके।
कहते हैं कि यदि समाज बेटियों से महत्वपूर्ण योगदान चाहता है तो मां को इसकी नींव तीन साल की उम्र से ही डालनी होती है। समाज विज्ञानी डॉ. आभा सिंह बताती हैं, "छोटी उम्र में बेटी किसी यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, लिंगभेद की शिकार न हो, इसके लिए मां को हर कदम पर सतर्क रहना होता है। बेटियों के साथ घटी बुरी घटना उनके मन-मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव डालती है और उनके साथ जीवन भर बुरी याद की तरह जुड़ी रहती है।" कहते हैं कि 12 साल की उम्र से पहले तक गर्ल चाइल्ड की सही तरीके से देखभाल और परवरिश की जाए तो वह आत्मविश्वास से भरपूर किशोरी और आत्मनिर्भर युवा में तब्दील हो सकती है। इसलिए हर मां को अपनी बेटी के जीवन की महत्वपूर्ण अवस्था, जैसे कि बचपन, किशोरावस्था और युवावस्था पर नजर रखकर उसके व्यक्तित्व विकास में योगदान देने का प्रण लेना चाहिए। ध्यान रहे कि आपकी नजर बेटी के व्यक्तित्व विकास में सहायक बने, न कि अवरोध पैदा करे।

This story is from the February 07, 2025 edition of Rupayan.
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