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विषाणु: उधार की ज़िन्दगी या फिर जैव-विकास के अनोखे खिलाड़ी
Shaikshanik Sandarbh
|July - August 2020
इस लेख के शीर्षक को पढ़कर यह ख्याल आना लाज़मी है कि भला उधार की ज़िन्दगी भी कोई जी सकता है! जी हाँ, यह सच ही है, विषाणु या वायरस दरअसल, उधार पर ही ज़िन्दगी जी रहे हैं लेकिन इस एक वाक्य से विषाणुओं को पूरी तरह से नज़रन्दाज़ नहीं कर सकते, न ही उन्हें हल्के में लिया जा सकता है। यहाँ इनसे अलग जैविक वायरस या विषाणुओं की बात करेंगे (कम्प्यूटर वायरस पर लेख संदर्भ अंक-83 में पढ़ा जा सकता है।

पिछले कुछ समय से पूरी दुनिया के लोगों के दिलो-दिमाग और ज़िन्दगी पर जो विषय छाया हुआ है, वह है कोरोना वायरस। इसकी वजह से तेज़ रफ्तार भागती ज़िन्दगी थमसी गई है। अखबारों से लेकर सोशल मीडिया तक, सभी जगह इसी बारे में चर्चा है। अब तो हर एक व्यक्ति खुद वायरस शब्द सुनते ही हम लोगों के दिमाग में कम्प्यूटर से सम्बन्धित वायरस आने लगते हैं। लेकिन हम को कोरोन
This story is from the July - August 2020 edition of Shaikshanik Sandarbh.
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