सियासी दांव सपा डालने लगी दलितों पर डोरे
DASTAKTIMES
|May 2025
समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोट बैंक में सिर्फ दो खाते हैं- यादव और मुसलमान। लेकिन कोई भी चुनाव जीतने के लिए इतना काफी नहीं है। लोकसभा चुनाव में सपा पीडीए का कामयाब फॉर्मूला लेकर आई। पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक। फॉर्मूले की कामयाबी देख सपा अब दलितों पर डोरे डाल रही है। राणा सांगा विवाद हो या दद्दू प्रसाद जैसे बसपा के पुराने नेताओं की पार्टी में भर्ती। सपा हर स्तर पर दलित प्रेम दिखा रही है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव की नज़र 2027 के विधानसभा चुनावों पर है। पेश है लखनऊ से वरिष्ठ पत्रकार संजय सक्सेना की रिपोर्ट।
उत्तर प्रदेश में दलित राजनीति का मिज़ाज़ लगातार बदल रहा है। राज्य की राजनीति में बसपा के कमज़ोर पड़ते ही सभी दल उसके कोर दलित वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए बिसात बिछाये हुए हैं। यह सिलसिला 2012 में शुरू हुआ था और अब चरम पर नज़र आ रहा है। इसी का परिणाम है कि किसी भी चुनाव में बसपा के साथ चट्टान की तरह खड़े रहने वाले दलित वोटों में भी बिखराव देखने को मिलता है। इसका फायदा कभी भारतीय जनता पार्टी उठा लेती है तो कभी इन वोटरों का झुकाव समाजवादी पार्टी की तरफ दिखाई देता है। 2017 और 2022 के विधानसभा एवं 2014 तथा 2019 के लोकसभा चुनाव में दलित वोट बीजेपी के खाते में गये थे, परिणामस्वरूप उसे प्रचंड जीत हासिल हुई। वहीं 2024 के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी का पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक फार्मूला रंग लाया और सपा की सीटों में ज़बर्दस्त बढ़त दिखाई दी। गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी पीडीए फॉर्मूला जून 2023 में लेकर आई थी और इससे सालभर के भीतर ही 2024 के आम चुनाव में सपा की किस्मत चमक गई।

Diese Geschichte stammt aus der May 2025-Ausgabe von DASTAKTIMES.
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