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In dieser Ausgabe

May 2025 Edition

ये हत्यारिन पत्नियां

अग्नि के सामने सात फेरे लेकर जन्म-जन्म का साथ निभाने का वादा करने वाली पत्नियां अपने पति परमेश्वरों का कत्ल कर रही हैं। बीते दो महीने में उत्तर भारत में घटी ऐसी आधा दर्जन से ज्यादा घटनाओं ने हमारे परंपरागत समाज को हिला कर रख दिया है। नीला ड्रम आतंक का प्रतीक बन गया है जिसमें एक पत्नी ने अपने पति को मारकर सीमेंट से सील कर दिया था। कोई पत्नी अपने पति को सांप से डसवा रही है तो कोई पति का गला दबाकर उसकी हत्या कर रही है। ज्यादातर हत्याओं के पीछे अवैध संबंधों की कहानी निकली। आखिर पति-पत्नी के रिश्ते इतने विषाक्त क्यों हो रहे हैं कि कत्ल करने की नौबत आ रही है? हिंसा की भावनाएं इतनी तीव्र हैं कि दंपति तलाक की तरफ जाने का भी धैर्य नहीं जुटा पा रहे हैं। इस तरह की ख़ौफ़नाक घटनाएं आखिर समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं। 'दस्तक टाइम्स' के लिए सीनियर जर्नलिस्ट अवंतिका की एक रिपोर्ट।

ये हत्यारिन पत्नियां1

8 mins

घुटन, भारी बोझ और विकृतियां बना रहीं औरतों को क़ातिल

पत्नी द्वारा पति की हत्या के बढ़ते मामलों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। औरत के दिमाग़ में आखिर वह क्या चीज है जो उन्हें पति-हत्या के लिए प्रेरित कर रही है। इसके पीछे क्या मनोविज्ञान है? इन हत्याओं में पति-पत्नी के बीच उस तीसरे शख्स की क्या भूमिका रहती है? नृशंस हत्याओं की नौबत क्यों आ रही है जबकि पति या पत्नी के पास तलाक का सम्मानजनक विकल्प मौजूद है? ऐसे कई अनसुलझे सवाल है। 'दस्तक टाइम्स' के लिए सीनियर जर्नलिस्ट अवंतिका ने दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में मनोविज्ञान विभाग में प्रोफेसर डॉ. पूनम फोगट से लंबी बातचीत के कुछ अंश।

घुटन, भारी बोझ और विकृतियां बना रहीं औरतों को क़ातिल2

4 mins

अब ऑपरेशन बदला

पाकिस्तान ने पहलगाम में 26 पर्यटकों का नरसंहार करके मुसीबत मोल ले ली है | दुनिया समझ रही है कि नई दिल्ली में बैठी मोदी सरकार एक ऐसा पलटवार करने जा रही है जिससे आतंकियों की कमर टूट जाएगी। प्रधानमंत्री मोदी ने सेना को आतंकवाद से निबटने के लिए खुली छूट दी है। आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक निर्णायक लड़ाई का वक़्त है। एयर स्ट्राइक करके या आतंकियों के कुछ लॉचिंग पैड ध्वस्त करके सेना का वापस लौट आना इस समस्या का समाधान नहीं । सेना को यह 'ऑपरेशन बदला' तब तक चलाना होगा जब तक आतंकियों के सारे आका एक-एक करके ढेर नहीं हो जाते। 'दस्तक टाइम्स' के संपादक दयाशंकर शुक्ल सागर की रिपोर्ट।

अब ऑपरेशन बदला3

10+ mins

कहां तक जाएगा यह हिन्दी-तमिल का झगड़ा

उत्तर-दक्षिण का भाषाई युद्ध तेज हो गया है। पिछले कुछ महीनों से तमिलनाडु के स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली स्थानीय भाषा को लेकर चला आ रहा विवाद निचले स्तर पर उतर आया है। डीएमके कार्यकर्ता संसद से लेकर सड़क तक केन्द्र सरकार को घेर रहे हैं। मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति के तीन-भाषा फार्मूले से हिंदी की अनिवार्यता को पहले ही हटा दिया था, इसके बावजूद तमिलनाडु सरकार इसे अपने यहां लागू नहीं कर रही है। स्टालिन सरकार ने इस साल राज्य के बजट की किताब से रुपए के हिंदी प्रतीक चिन्ह को हटाकर तमिल प्रतीक चिन्ह लगा दिया। आखिर किस दिशा में जा रहा है ये भाषाई विवाद, बता रहे हैं दस्तक टाइम्स के प्रधान संपादक रामकुमार सिंह।

कहां तक जाएगा यह हिन्दी-तमिल का झगड़ा5

7 mins

जुगनुओं के देश में

मुस्लिम औरतों के अंतर्मन को समझने वाली इस्मत चुग़ताई, आमिना अबुल हसन, कुर्रतुलऐन हैदर, ख़दीजा मस्तूर, और जमीला हाशमी जैसी गिनी-चुनी उर्दू की लेखिकाएं ही रही है। ये नाम भी जमाने पुराने हो चुके हैं। नए जमाने की उर्दू लेखिकाओं में सबाहत आफ़रीन का नाम इन दिनों चर्चा में है। भारत-नेपाल बॉर्डर पर बसे डुमरियागंज के एक रिवायती मुस्लिम घराने से निकली सबाहत की कहानियां सात पर्दों में छुपी उन मुस्लिम महिलाओं के दर्द, आंसुओं और जज़्बात को बयां करती है, जिनकी ज़िंदगी में सपने जुगनू की चमक की तरह आते-जाते हैं। सबाहत की कोशिश अपनी कहानियों के जरिए सपनों की मुट्ठियों में बंद जुगनुओं को आजाद करने की है। पेश है उनके पहले कहानी संग्रह 'मुझे जुगनुओं के देश जाना है’ की एक कहानी।

जुगनुओं के देश में14

9 mins

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