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एक आदमी की बीस पत्नियां हर पत्नी का अलग चूल्हा

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May 2025

विविधता से भरे भारत में अभी भी कई प्रथाएं ऐसी हैं जो आपको चौंका देती हैं। अरुणाचल प्रदेश में न्यिशी जनजाति में आज भी बहु विवाह का प्रचलन है। यहां एक आदमी की बीस-बीस पत्नियां रही हैं। एक परिवार में हर पत्नी का अपना अलग चूल्हा है। हरी-भरी वादियों में बसे नार्थ इस्ट के अनोखे अरुणाचल प्रदेश और यीशी जनजाति की संस्कृति और परंपरा के बारे में ईंटानगर से लौंटी प्रसिद्ध लेखिका गीताश्री की 'दस्तक टाइम्स' के लिए ये ख़ास रिपोर्ट

- गीताश्री

एक आदमी की बीस पत्नियां हर पत्नी का अलग चूल्हा

न्यिशी जनजाति की ज़िन्दगी

जहां सूरज की पहली किरण सबसे पहले पड़ती है, उस अरुणाचल राज्य की हिंदी भाषा की प्राध्यापिका, युवा लेखिका जमुना बिनी जब अपने न्यिशी समुदाय के बारे में बता रही थीं तो उनके चेहरे पर एक चमक थी। उसके बारे में बताते वक्त वे बार-बार इस बात पर जोर दे रही थीं कि उनके समुदाय के लोग देवी-देवताओं को नहीं बल्कि आत्माओं को मानते हैं। उनकी पूजा करते हैं। उनके संकेतों से संचालित होते हैं। वे आत्माएं उनके पुरखों की होती हैं। न्यिशी आदिवासी देश के अन्य आदिवासी समुदायों से अलग हैं, उनकी सारी पूजा पद्धति और जीवनशैली सब कुछ भिन्न है। अरुणाचल में सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति है न्यिशी। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार उनकी जनसंख्या लगभग तीन लाख थी। ये वहां की सबसे बड़ी आबादी है। अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में न्यिशी आदिवासी संस्कृति का संग्रहालय है, जहां आप उनकी सारी प्राचीन परंपराओं से अवगत हो सकते हैं। अगर साथ में उसी समुदाय का कोई व्यक्ति हो तो एक नई दुनिया किसी आश्चर्य लोक की तरह खुलती है।

बांस के बने उस लंबे, ऊंचे घर में एक बड़ा सा हॉल बना हुआ है जिसमें छत से एक झूले जैसा कुछ लटका हुआ है। उसके नीचे आग जलती है। जमुना ने बताया कि ये उनके घरों का पारंपरिक चूल्हा है। ये चूल्हा हरेक घर में आज भी मिलेगा। भले गैस का चूल्हा उनके रसोई में प्रवेश कर चुका है लेकिन उन्होंने अपनी पहचान नहीं छोड़ी है। उनकी रसोई में ये लटकता हुआ, बड़ा सा चूल्हा आज भी मौजूद है। इसे वे बहुत पवित्र मानते हैं। रसोई घर उनके लिए आज भी एक पवित्र स्थान है और ये चूल्हा बहुत खास है। सर्दियों में कमरे को या हॉल को तो गर्म रखता ही है, साथ ही उसके चारों तरफ बैठकर परिवार के सभी सदस्य या मेहमान खाना खाते हैं, घर की बनी बीयर भी पीते हैं। न्यिशी जनजाति का पारंपरिक पेय है चावल की बीयर जिसे वे अपोंग कहते हैं। वे उस जगह की पूजा भी करते हैं। कितने भी अमीर हों, खाना नीचे ही बैठकर खाते हैं।

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