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लालू की रणनीति से गठबंधन के सहयोगी भी चित

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June 2024

बिहार में पूरे लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो इंडिया गठबंधन जिस तरह के जीत के दावे कर रहा था, वैसी सफलता नहीं मिली। हालांकि, उसे नौ सीटों मिली जीत छोटी नहीं है, क्योंकि पिछली बार महज एक सीट पर जीत मिली थी। इस जीत में बड़ी भूमिका तेजस्वी यादव की रही। पिता लालू प्रसाद की पूरी रणनीति पर उन्होंने काम किया और पूरे चुनाव प्रचार में वे बड़े स्टार प्रचारक के रूप में रहे। चुनाव प्रचार के दौरान पूरे इंडिया गठबंधन में राजद को छोड़ अन्य किसी बड़े नेता ने चुनाव प्रचार को बहुत गंभीरता से नहीं लिया।

- दिलीप कुमार

लालू की रणनीति से गठबंधन के सहयोगी भी चित

लालू प्रसाद यादव की रणनीति से इंडिया गठबंधन के सहयोगी भी चित हो गए। एक तो लालू ने सहयोगियों की राज्य में नेतृत्व क्षमता को उभरने नहीं दिया, दूसरा अपने बेटे तेजस्वी को पूरे चुनाव की कमान देकर यह जता दिया कि आने वाले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री पद का दावेदार वही होगा । उसी के नेतृत्व में सहयोगियों को लड़ना होगा । लोकसभा के इस पूरे चुनाव में लालू की रणनीति देखें तो यह साफ नजर आता है। इसे हम कई उदाहरणों से समझ सकते हैं। सबसे पहला उदाहरण पप्पू यादव का है। उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में किया। इससे पहले लालू आशीर्वाद लिया। तय था कि वे पूर्णिया से लड़ेंगे, लेकिन इसमें लालू अड़ंगा लगा दिया। पूर्णिया की सीट अपने पास रख ली। मजबूरन पप्पू का निर्दलीय लड़ना पड़ा। पप्पू भी यादव बिरादरी से आते हैं। लालू नहीं चाहते थे कि राज्य में कोई दूसरा यादव नेता उभरे जो उनके बेटे के लिए चुनौती बने। दूसरा उदाहरण यह है कि इंडिया गठबंधन में साथी पार्टियों की सीटें तय करने से लेकर टिकट के बंटवारे और पूरे चुनाव प्रचार की कमान का निर्णय लालू प्रसाद अपने हाथ में लिए रहे। कौन सी सीट किसे देनी है, प्रत्याशी कौन होगा, इसमें बहुत हद तक उनका दखल रहा । वीआइपी सुप्रीमो मुकेश सहनी तो पूरी तरह से उन्हीं पर निर्भर रहे। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान वे तेजस्वी के पीछे-पीछे घूमते रहे। लालू ने राजनीति के शतरंज की बिसात पर अपने बेटे तेजस्वी को इस भूमिका में रखा कि सहयोगी दल पूरी तरह उन पर निर्भर रहे। 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के खराब स्ट्राइक रेट पर राजद अतिशय मुखर रहा । तब सफलता का श्रेय उसी ने लिया था। करीब डेढ़ वर्ष बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए लालू प्रसाद ने पूरी रणनीति सजाई थी। सहयोगी गठबंधन भी इसे ठीक से समझ नहीं सके। उनके बड़े नेताओं को अपने प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार नहीं करना यह दर्शाता भी है। वहीं, तेजस्वी राजद के साथ सहयोगी गठबंधन के सभी प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार करने पहुंचे। इससे उन्होंने जनता की पकड़ने के साथ सहयोगियों की कमजोरियों को भी अच्छी तरह से आंक लिया है। आगामी विधानसभा चुनाव में इसी आधार और औकात के अनुसार सहयोगियों को वे भाव देंगे। अपने हिसाब से सीटें देंगे। वे बहुत सौदेबाजी करने की स्थिति में नहीं रहेंगे। पूरा खेल राजद खासत

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