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सबसे ज्यादा अनाज पैदा करने के बावजूद सर्वाधिक कुपोषित भी भारत में ही हैं
कुपोषण और भुखमरी से जुड़ी वैश्विक रिपोर्ट न केवल चौंकाने बल्कि सरकारों की नाकामी को उजागर करने वाली ही होती हैं। विश्वभर की शासन-व्यवस्थाओं का नाकामी एवं शैतानों की शरणस्थली बनना एक शर्मनाक विवशता है।
मानवाधिकारों को लेकर सीजेआई का नजरिया
आजादी के 74 साल बाद भी देश की पुलिस नहीं बदली। उसका व्यवहार आज भी अंग्रेजों की पुलिस जैसा है। एक बार थाने पहुंच जाइए, सच्चाई सामने आ जाएगी।
भारतीय बैडमिंटन का जगमगाता सितारा हैं पुसरला वेंकट सिंधु
भारतीय बैडमिंटन की प्रिंसेस मानी जाने वाली पीवी सिंधु (पुसरला वेंकट सिंधु) ने टोक्यो ओलम्पिक में लगातार दूसरी बार पदक जीतकर इतिहास रच दिया। हालांकि 26 वर्षीया सिंधु को इस बार कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा जबकि 2016 के रियो ओलम्पिक में उन्होंने रजत पदक जीता था।
अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए उद्योगों को रोजगार के अवसर तेजी से बढ़ाने होंगे
वर्ष 1947 में भारत की आजादी के तुरंत बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 55 प्रतिशत पाया गया था, जो आज घटकर 16-18 प्रतिशत के बीच रह गया है, हालांकि देश में लगभग 60 प्रतिशत के आसपास आबादी आज भी गांवों में ही निवास करती है। वर्ष 1947 के बाद से आज सेवा क्षेत्र का योगदान 60 प्रतिशत से अधिक हो गया है।
इंटरनेट गेमों की खुमारी में गुम होता बचपन
आज इंटरनेट का दायरा इतना असीमित है कि अगर उसमें सारी सकारात्मक उपयोग की सामग्री उपलब्ध हैं तो बेहद नुकसानदेह, आपराधिक और सोचने-समझने की प्रक्रिया को बाधित करने वाली गतिविधियां भी बहुतायत में मौजूद हैं।
अफगानिस्तान में खरबों डॉलर झोंक कर भी क्यों हार गया अमेरिका ?
पिछले 20 वर्षों में तालिबान को बाहर करने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान में खरबों डॉलर झौंक दिए हैं, यह एक ऐसा प्रयास था जो स्पष्ट रूप से असफल रहा। लेकिन देश की सामरिक भौगोलिक स्थिति और क्षेत्र की राजनीति (तालिबान के समर्थन सहित) पर एक नज़र हमें बताती है कि यह परिणाम होना ही था।
स्वतंत्रता के वास्तविक लक्ष्यों का प्रश्न
एक पक्ष अगर अपने मूल भारत के लक्ष्य से संघर्ष कर रहा था तो दूसरे का लक्ष्य अंग्रेजों को भगाकर स्वतंत्रता प्राप्त करना था। इन सबका बलिदान एक ही श्रेणी का था, लेकिन दृष्टि और लक्ष्य अलग-अलग थे। अगर स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का मूल्यांकन इस आधार पर करें कि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेज जिस दुरावस्था वाले भारत को छोड़ कर गए थे, उसकी तुलना में आज हम कहां खड़े हैं तो ज्यादातर मानक हमारे अंदर गर्व का अनुभव कराएंगे। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक, यातायात, संचार, रक्षा, सुरक्षा, प्रशासन, हर क्षेत्र में हम आज उन पायदानों पर खड़े हैं, जिसकी कल्पना आजादी के समय विश्व तो छोडएि, स्वयं भारतीयों को नहीं थी। 193 करोड़ रुपये से पहला बजट पेश करने वाला भारत 27 लाख करोड़ के बजट वाला देश बना है तो कल्पना की जा सकती है कि कितनी बड़ी छलांग हमने लगाई है। 1962 में चीन के हाथों अपमानजनक पराजय झेलने वाले देश ने पिछले वर्ष गलवान घाटी में चीनी सैनिकों को जिस ढंग से मुंहतोड़ जवाब दिया, उससे बड़ा उदाहरण एक महत्वपूर्ण रक्षा शक्ति बन जाने का दूसरा नहीं हो सकता। पहले इंदिरा गांधी और फिर अटल बिहारी वाजपेयी ने नाभिकीय परीक्षण करके पूरी दुनिया को चौंका दिया तो नरेंद्र मोदी ने उपग्रहों को नष्ट करने की शक्ति का परीक्षण करके। स्वतंत्रता के समय अंग्रेजों सहित पश्चिमी विद्वानों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि भारत में कभी संसदीय लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता।
राम जन्मभूमि निर्माण के लिए जमीन खरीदी विवाद! घोटाला नहीं! वैधानिक पहलू!
उक्त विषय के "वैधानिक"पहलू पर चर्चा करें, उसके पूर्व चल रही कुछ आरोपप्रत्यारोपों की भी बात कर ली जाए। 12080 वर्गमीटर (1.2080 हेक्टेयर 100 बिस्वा) कीमत 2 करोड़ रूपए की जमीन कई गुना अधिक कीमत रुपए 18.50 करोड़ में खरीदने का सौदा किया जाकर भ्रष्टाचार व "मनी लॉन्ड्रिंग" का आरोप लगाया गया। ये आरोप नितांत बचकाने पूर्ण तथ्यों के विपरीत, आधारहीन व राजनीति से प्रेरित से दिखते है। कारण, इस सौदे के पैसे के लेन-देन में सरकार या सरकारी अधिकारी अधिकारियों की सीधे कोई भूमिका नहीं है। इसलिए दो निजी व्यक्ति यों या संस्थान के बीच हुए सौदे पर "भ्रष्टाचार का कानून लागू नहीं होता है। जहाँ तक मनी लॉन्ड्रिंग का सवाल है, यह अवैध रूप से प्राप्त धनराशी को छुपाने का एक तरीका है। इसके प्रत्युत्तर में श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का यह स्पष्ट कथन है कि पूरा भुगतान ऑनलाइन बैंक के द्वारा हुआ है। इसलिए "गड़बड़झाला" का कोई प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है। यहां तक तो बात बिलकुल ठीक है।
पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने का खामियाजा भुगत रही है पूरी दुनिया
बीते दो वर्षों में कुदरत ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। कुदरती आपदाओं की झड़ी लगी हुई, तूफानों का आना, पहाड़ों का गिरना, बादल फटना आदि प्रकृति में होते नित बदलावों ने हमें चेता दिया है कि सुधर जाओ, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।
धरती को रहने लायक बनाने की चुनौती
करीब दो वर्ष पहले मार्च 2019 को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए मध्य अमेरिका के छोटे से देश अल सल्वाडोर की पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्री लीना पोहन ने पारिस्थितिकी तंत्र के पुनरुद्धार के लिए एक दशक मनाने का सुझाव दिया था। उनका कहना था कि इस दशक की स्थितियां ही आगामी दशकों में हमारे जीवन को निर्धारित करेंगी।
मोदी सरकार के प्रयास रंग लाये,भारत में कम हुई व्यापार में रिश्वतखोरी
कोरोना महामारी के बीच एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने विश्व के 197 देशों में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर पर एक प्रतिवेदन जारी किया था। चूंकि भारत में कोरोना की दूसरी लहर जारी है अतः इस प्रतिवेदन पर शायद किसी की नजर ही नहीं गई।
अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रहा प्रदूषण
विश्व में दरअसल औद्योगिक विकास के च ने ही पर्यावरण को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हुए प्रदूषण को फैलाया है। आज के विकसित देशों के बीच विकास की ऐसी अंधी प्रतियोगिता चल पड़ी है जिसके चलते विभिन्न देश प्रकृति का जरूरत से ज्यादा दोहन कर रहे हैं। इसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है एवं यह हमें वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं प्रकाश प्रदूषण के रूप में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। वहीं दूसरी ओर पृथ्वी पर जनसंख्या का विस्फोट, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की असंतुलित गति एवं प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों का समापन कुछ ऐसे कारक हैं जो प्रदूषण की समस्या को दिन-ब-दिन गम्भीर बनाते जा रहे हैं। प्रदूषण से आशय पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष से है। प्रदूषण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक है। विकास की दौड़ में आज का मानव इतना अंधा हो गया है कि वह अपनी सुख-सुविधाओं के लिए कुछ भी करने को तैयार है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी ही दूषित हो रही है एवं अब तो निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है।
एलोपैथ, आयुर्वेद को आपस में नहीं लड़ाएं, इन चिकित्सा पद्धतियों को बीमारियों से लड़ने दें
स्वामी रामदेव और एलोपैथिक चिकित्सकों में इस समय जुबानी जंग जारी है। रामदेव आयुर्वेद और एलोपैथिक चिकित्सक अपनी-अपनी पैथी की महत्ता बताने में लगे हैं। दोनों अपनी-अपनी चिकित्सा पद्धति के गुण गाते नहीं अघा रहे।
संक्रमण की दर कम होने से राहत लेने की बजाय तीसरी लहर से निबटने की तैयारी युद्ध स्तर पर करें
कोरोना वायरस की दूसरी प्रचंड लहर ने भारत में शहर से लेकर गांव तक जमकर तांडव मचाया है। इस लहर ने भारत में उपलब्ध चिकित्सा क्षेत्र को ध्वस्त करके रख दिया है। हाल के दिनों की कठिन परिस्थितियों ने देश में चिकित्सा क्षेत्र में व्याप्त अव्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है।
सिर्फ लॉकडाउन लगाकर नहीं जीती जा सकती कोरोनावायरस से लड़ाई
कोरोना के नए दौर को देखते हुए महाराष्ट्र में कई स्थानों पर लाकडाउन लगाया गया है तो राजस्थान सहित देश की कई राज्य सरकारों ने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मॉनिटरिंग कर रहे हैं तो राज्यों की सरकारें भी गंभीर हुई हैं। राजस्थान सरकार शुरू से ही गंभीर रहने के साथ ही हम सतर्क हैं की टैगलाइन के साथ काम कर रही है। वहीं राजस्थान में 19 अप्रैल तक आंशिक लॉकडाउन लगा दिया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नियमित समीक्षा कर रहे हैं और आवश्यक निर्देश दिए जा रहे हैं। कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए सख्ती का सहारा लेने के साथ ही 9वीं तक स्कूल, जिम, सिनेमा, स्विमिंग पूल आदि बंद करने के आदेश जारी किए जा चुके हैं। हालांकि इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना को लेकर राज्यों की सरकारें सजग रही हैं पर सख्ती के अभाव में लापरवाही के कारण कोरोना के नए मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं।
रजनीकांत का प्रकाश सूर्य बनता गया
रजनीकांत ने अपनी एक्टिंग के दम पर सिनेमा जगत और लोगों के दिल में अलग ही जगह बनाई है, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड उनके विलक्षण अभिनय कौशल, अनूठी प्रतिभा एवं हिन्दी सिनेमा को दिये गये अविस्मरणीय योगदान का सम्मान है।
चैतन्य महाप्रभु की कृष्णलीलाएं हैं अद्भुत
चैतन्य महाप्रभु भक्ति रस संस्कृति के प्रेरक एवं उन्नायक संवेदनशील एवं भावुक संत हैं। समस्त प्राणी जगत प्रेम से भर जाए, श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो जाए और उनकी आध्यात्मिकता सरस हो उठे, ऐसी विलक्षण एवं अद्भुत है श्री राधा-कृष्ण के सम्मिलित रूप अवतार की संकीर्तन रसधार एवं श्री चैतन्य की जीवनशैली।
नक्सलवाद से निपटने कारगर रणनीति जरूरी
बस्तर में सुरक्षा बलों के काफिले पर माओवादियों द्वारा घात लगाकर किया गया सुनियोजित नवीनतम किंतु क्रूर हमला, मध्य भारत के माओवादी प्रभावित क्षेत्र में कालांतर में इसी ढंग से किए गए हमलों के लंबे सिलसिले की अगली कड़ी है।
कृषि आय में कैसे हो बढ़ोत्तरी?
ऐसे समय पर जब आमतौर माना जाता है कि मुक्त बाजार व्यवस्था से कृषि उत्पादों को ज्यादा भाव मिल पाता है, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ती है, इस पर यकीन करना कल्पना से परे है। कनाडा में वर्ष 2017 में गेहूं का जो भाव मिला, वह 150 साल पहले 1867 में लगी कीमत से कहीं कम था। यह बात केवल कनाडा पर ही लागू नहीं है बल्कि मीडिया खबरों के मुताबिक अमेरिका में भी किसानों का कहना है कि गेहूं की जो कीमत आज उन्हें मिल रही है, वह उस मूल्य से कहीं कम है जो वर्ष 1865 में खत्म हुए 4 वर्षीय गृहयुद्ध के समय मिला करती थी। तो क्या इसे बाजार व्यवस्था की कार्यदक्षता कहें?
टीका लेने पर जोर दिया जाए
देश में टीकाकरण अभियान जनवरी में जब शुरू हुआ, तब संक्रमण के मामले और मौत की संख्या बहुत कम थी और उसका ग्राफ तेजी से नीचे की ओर जा रहा था. इस कारण टीकाकरण को लेकर लोगों में गंभीरता नहीं थी. जबकि बीते एक सप्ताह में संक्रमितों और मौत की संख्या तेजी से बढ़ी है सरकार ने एज कैटेगरी को बढ़ा दिया है.
अंगड़ाई लेता किसान आंदोलन
भारत सरकार व किसानों के प्रतिनिधियों के मध्य 22 जनवरी को हुई ग्यारहवें दौर की अंतिम वार्ता के भी विफल होने तथा उसके बाद 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान कुछ जगहों पर फैली हिंसा के बाद आंदोलन में जो गतिरोध की स्थिति बन चुकी थी,वह संभवतः अब समाप्त होने जा रही है। विभिन्न राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने के बाद तथा फ़सल कटाई का काफ़ी हद तक काम निपटाने के बाद आंदोलनकारी किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा एक बार फिर अपने आंदोलन को तेज़ करते हुए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है।
नेपाल में लोकतंत्र व साम्यवाद का अंतद्वंद्व
नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संसद की बहाली का आदेश सुकून दे सकता है, लेकिन प्रश्न लोकतंत्र और साम्यवाद के बीच अंतर्द्धवंद्व का है.
भारत में धार्मिक स्थलों को विकसित किए जाने से तेज गति से आगे बढ़ रहा है -पर्यटन उद्योग
एक अनुमान के अनुसार, भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोज़गार प्रदान कर रहा है एवं देश के कुल रोज़गार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में प्राचीन समय से धार्मिक स्थलों की यात्रा, पर्यटन उद्योग में, एक विशेष स्थान रखती है। एक अनुमान के अनुसार, देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है। आज देश के पर्यटन उद्योग में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है। भारत में पर्यटन उद्योग लगभग 23,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय अर्जित कर रहा है। देश में पर्यटन उद्योग में 87 प्रतिशत हिस्सा देशी पर्यटन का है जबकि शेष 13 प्रतिशत हिस्सा विदेशी पर्यटन का है। देश में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के चार मंत्रालयपर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय, रेल मंत्रालय एवं परिवहन मंत्रालय, आपस में तारतम्य बनाते हुए मिलकर कार्य कर रहे हैं। इन चारों मंत्रालयों के संयुक्त प्रयासों से देश में धार्मिक यात्राओं को आसान बना दिया गया है। परिवहन मंत्रालय द्वारा विभिन्न तीर्थ स्थलों पर आसानी से पहुंचने हेतु मार्गों को विकसित किया गया है एवं बुनियादी ढांचे को भी विकसित किया जा रहा है। जिसके चलते देश के नागरिकों द्वारा धार्मिक यात्राएं करने की मात्रा में काफी उछाल देखने में आ रहा है।
युवाओं को स्मार्टफोन की लत, बढ़ रहा कई बीमारियों का खतरा
विज्ञान द्वारा इजात सामग्री जितनी अधिक लाभकारी हैं उससे अधिक हानिकारक हो रही है आज के समय मोबाइल एक ऐसा कारण बन रहा हैं जिसे धीमा जहर की संज्ञा भी दी जाए तो थोड़ा हैं .यह विचार कभी कभी आता है की हमारे समय में टी.वी,मोबाइल आदि होते तो संभव है। जिस स्थिति में आज हम हैं न हो पाते,ऐसा नहीं की ये अनुपयोगी हैं पर इनके कारण समय बहुत व्यर्थ जाता है और अफीमची जैसी स्थिति बनी रहती हैं . व्यसन होना जरूरी हैं पर अतिव्यसनी होना बहुत हानिकारक हैं .मोबाइल से हमारी याददास्त कम होती जा रही हैं,पहले स्मरण शक्ति अच्छी होती थी अब मशीनी आधारित हो रही .पहले कॅल्क्युलेटर न होने से मौखिक पाँव अध्धा पौने से गणित हल हो जाते थे आज थोड़े से काम के लिए कैलकुलेटर उपयोग होता हैं .पहले सैकड़ो टेलीफोन नंबर याद रहते थे अब अपना नंबर याद नहीं रहता है.
पेट्रो पदार्थों की महंगाई के पीछे का सच
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बीते एक साल में तेल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। बेंट क्रूड ऑयल इंडेक्स के अनुसार मार्च 2020 में यह 30 डॉलर प्रति बैरल थी जो फरवरी 2021 में तकरीबन 64 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
मानव अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी
पृथ्वी के तापमान में असंतुलन से मौसम में हो रहे बदलाव से समूची दुनिया चिंतित है। लोग कहीं वैश्चिक तापमान में बढ़ोतरी के खिलाफ नये सिरे से कदम उठाने और विश्व नेताओं पर दबाव बनाने के लिए सड़क पर उतर रहे हैं। कहीं बच्चे मानव श्रृंखला बना रहे हैं और कार्बन उत्सर्जन कम करने की अपील करते नजर आ रहे हैं। संदेश यही कि चेत जाओ, अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जब मानव अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। इस संकट के निदान की दिशा में संयुक्त राष्ट्रसंघ सहित पेरिस, कोपेनहेगन, वारस, दोहा हो या कानकुन आदि, समय-समय पर दुनिया के देशों ने गहरी चिंता जतायी है।
बजट में आयकर सुधारों को गति
कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों के बीच छोटे आयकरदाताओं और मध्यम वर्ग को नये बजट से मुस्कराहट नहीं मिली है.
विदेशी शक्तियों की मदद से चल रहे आंदोलन से आम जनता हो रही है परेशान
सर्वोच्च न्यायालय ने जन-प्रदर्शनों, आन्दोलनों, बन्द, रास्ता जाम, रेल रोको जैसी स्थितियों के बारे में जो ताजा फैसला किया है, उस पर लोकतांत्रिक मूल्यों की दृष्टि से गंभीर चिन्तन होना चाहिए, नयी व्यवस्थाएं बननी चाहिए। भले ही उससे उन याचिकाकर्ताओं को निराशा हुई होगी, जो विरोध-प्रदर्शन के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। कोई भी आन्दोलन जो देश के टुकड़े-टुकड़े कर देने की बात करता हो, लाल किले का अपमान करता हो, 500 पुलिसवालों पर हिंसक एवं अराजक प्रहार करके उन्हें घायल कर देता हो या राष्ट्रीय ध्वज का निरादर करता हो, उसे किस तरह और कैसे लोकतांत्रिक कहा जा सकता है? वही लोकतंत्र अधिक सफल एवं राष्ट्रीयता का माध्यम है, जिसमें आत्मतंत्र का विकास हो, स्वस्थ राजनीति की सोच हो एवं राष्ट्र को सशक्त करने का दर्शन हो, अन्यथा लोकतंत्र में भी एकाधिपत्य, अव्यवस्था, अराजकता एवं राष्ट्रविरोधी स्थितियां उभर सकती है। सत्ता, राजनीति एवं जन-आन्दोलनों के शीर्ष पर बैठे लोग यदि जनतंत्र के आदर्श को भूला दें तो वहां लोकतंत्र के आदर्शों की रक्षा नहीं हो सकती। आज लोकतंत्र के नाम पर जिस तरह के विरोध प्रदर्शन की संस्कृति पनपी है, उससे राष्ट्र की एकता के सामने गंभीर खतरे खड़े हो गये हैं। यह बड़ा सच है कि यदि किसी राज्य में जनता को विरोध-प्रदर्शन का अधिकार न हो तो वह लोकतंत्र हो ही नहीं सकता। विपक्ष या विरोध तो लोकतंत्र का आधार होता है क्योंकि जिस देश की जनता एवं राजनीतिक दल पंगु, निष्क्रिय और अशक्त हो तो वह लोकतांत्रिक राष्ट्र हो ही नहीं सकता। विरोध तो लोकतंत्र का हृदय है और देश की अदालत ने भी विरोधप्रदर्शन, धरने, अनशन, जुलूस आदि को भारतीय नागरिकों का मूलभूत अधिकार माना है लेकिन उसने यह भी साफ-साफ कहा है कि उक्त सभी कार्यों से जनता को लंबे समय तक असुविधा होती है तो उन्हें रोकना सरकार का अधिकार एवं दायित्व है। विरोध भी शालीन, मर्यादित होने के साथ आम जनजीवन को बाधित करने वाला नहीं होना चाहिए। अदालत की यह बात एकदम सही है, क्योंकि आम जनता की जीवन निर्वाह की स्थितियों को बाधित करना तो उसके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। यह सरकार का नहीं, जनता का विरोध है।
भारत के दबाव के चलते ही पाकिस्तान में हो पा रहा है तोड़े गये मदिर का पुनर्निर्माण
पड़ोसी देश पाकिस्तान में हिन्दू आस्था केंद्रों के जय जयकार का उद्घोष होना यूँ तो कालबाह्य हो गया है। लेकिन अभी हाल ही में जिस प्रकार से एक मंदिर को तोड़ा गया है और उसके बाद आक्रोशित हिन्दू समाज ने जो प्रतिक्रिया दी, वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एक शक्तिशाली कदम माना जा रहा है।
कारगर साबित होती वैक्सीन कूटनीति
भारत की वैक्सीन रणनीति ने पश्चिमी वर्चस्व वाले विमर्श की हवा निकाल दी है। दुनिया अब भारत को वैक्सीन के प्रभावी एवं किफायती आपूतकर्ता की दृष्टि से देख रही है।