Samay Patrika - October 2021Add to Favorites

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कोरोना काल के दौरान बहुत कुछ बदल गया। जहां एक ओर हमें दुख—दर्द भरी खबरें सुनने को मिलीं, वहीं दूसरी ओर राहत के समाचार भी मिले। ऐसी कहानियां जो उम्मीद जगाती हैं। रमेश पोखरियाल निशंक ने अपनी नई पुस्तक 'कोरोना काल की सच्ची कहानियां' में ऐसी कहानियों को दर्ज किया है जिनसे प्रेरणा मिलती है। समय पत्रिका के इस अंक में इस किताब की विशेष चर्चा की गई है। पोखरियाल जी के शब्दों में —'बेशक आज कोरोना ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया है, मगर इसने महाचुनौतियों से जूझने के लिए हमें तैयार भी किया है।'
श्यौराज सिंह बेचैन का कहानी—संग्रह 'हाथ तो उग ही आते हैं' हमें सोचने पर विवश कर देता है। यह समाज पर सवाल उठाता है। बेचैन जी सवाल करते हैं,'दो सौ साल दास बनाकर रखे कालों को गोरे आज हाथ दे रहे हैं, तो सन् सैंतालीस में हुए आज़ाद देश में सवर्ण हिन्दू निर्वर्ण दलितों के हाथ काटने में क्यों लगे हैं?'
इस अंक में ऋषि राज और डॉ. रश्मि के साक्षात्कार शामिल हैं जिनमें उनकी किताबों आदि से जुड़े सवालों के जवाब पढ़ने को मिलेंगे।
वाणी प्रकाशन ने पिछले दिनों दो बेहतरीन किताबें प्रकाशित की हैं —'क्वीर विमर्श' और 'किन्नर : सेक्स और सामाजिक स्वीकार्यता'। हिंदी में इस विषय पर अच्छी पुस्तकों का अभाव है, जिसे वाणी ने पूरा करने की कोशिश की है।
अमित बगड़िया की पुस्तक 'कांग्रेस मुक्त भारत' और ममता चंद्रशेखर की पुस्तक 'स्वदेश' की भी इस अंक में चर्चा की गई है।
रमेश पो​खरियाल की दो अन्य पुस्तकों 'नम्रता' और 'एम्स में एक जंग लड़ते हुए' के बारे में भी आप पढ़ेंगे। साथ में नई किताबों की चर्चा।

कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ - उम्मीद जगाने वाला कहानी-संग्रह

कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ पुस्तक में कुल उन्नीस कहानियाँ हैं। संग्रह में 'लॉकडाउन टूट गया', 'जीवन में भागने में नहीं', 'कर्मबीरा', 'नई सुबह', 'रुपया देना है', 'फिर करीब ले आया कोरोना' आदि कहानियाँ शामिल हैं। ये कहानियाँ एक उम्मीद जगाती हैं, एक विश्वास पैदा करती हैं कि हम विकट परिस्थितियों में भी चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ने का साहस करते हैं। कोई भी महामारी मानव की दृढ़-इच्छाशक्ति के आगे बेबस नजर आती है। मुश्किल दौर में हमने मानवता का धर्म निभाया और मिलकर कठिन दौर का मुकाबला किया। इस पुस्तक के लेखक हैं डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक'। पुस्तक का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन ने किया है। यह पुस्तक क्यों और कैसे लिखी गई, खुद पोखरियाल जी बता रहे हैं...

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किन्नर : सेक्स और सामाजिक स्वीकार्यता

देखा जाये तो इन्सानी वजूद के रूप में जन्म लेने के बावजूद ज़रा -सी शारीरिक असमानता के चलते परित्यक्त होती जाने कितने ही सन्तानों के आर्तनाद गूंज रहे हैं चारों तरफ़।

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यह पुस्तक एक उपन्यास है, जो यथार्थ के पंख लगाकर काल्पनिकता के धरातल पर एक सशक्त भारत की आधारशिला रखता है।

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EditorSamay Patrika

CategoríaFiction

IdiomaHindi

FrecuenciaMonthly

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