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देश से विदेश तक प्रेमचंद का असर
Haribhoomi Rohtak
|July 31, 2025
यह सोच कर ताज्जुब होता है कि शताब्दी पहले गुलामी के दिनों में भी तमाम भारतीय साहित्यकारों की रचनाएं विदेशियों के लिए कौतुहल का विषय क्यों बनीं? पता चला कि हिंदी के विश्वप्रसिद्ध लेखकों, कवियों और पत्रकारों की कालजयी रचनाओं का असर महज भारत तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि शताब्दी पहले रूसी, जर्मनी, फ्रांसीसी, चीनी, हंगेरियन सहित दुनिया के तमाम हिंदी प्रेमियों व अंग्रेज हिंदी प्रेमियों का जब भारत आना-जाना हुआ और तत्कालीन हिंदी साहित्यकारों की रचनाओं से वे रूबरू हुए, तब वे हिंदी साहित्यकारों की रचनाओं के मुरीद हुए।
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इनको पढ़कर वे प्रभावित हुए और अपने देश लौटकर उनका अनुवाद किया। तब से ही वहां के विश्वविद्यालयों में उन पर शोध भी होने शुरू हुए। जिन हिंदी साहित्यकारों को सबसे ज्यादा लोकप्रियता विदेशों में हासिल हुई उनमें कबीर, तुलसीदास, सूरदास, भारतेन्दु हरिश्चंद, जयशंकर प्रसाद, निराला, पंत के अलावा गद्य लेखकों में मुंशी प्रेमचंद सबसे ज्यादा लोकप्रिय और पसंद किए गए। मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं ने भारतीय समाज पर ही नहीं बल्कि विदेशों के समाज पर भी असर डाला। उनकी कहानियों व उपन्यासों का असर था कि भारतीय समाज के हर तबके के लोगों की सोच में बदलाव आया। विदेशियों की भारतीय साहित्य व समाज के बारे में सोच में बदलाव हिंदी के साहित्यकारों की रचनाओं को पढ़ने के बाद आया।
जाहिर तौर पर मुंशी प्रेमचन्द ने उस वक्त लिखना शुरू कर दिया था जब समाज में बदलाव की धारा की शुरुआत हो चुकी थी। ऐसे तमाम तत्कालीन विषय प्रेमचंद के साहित्य में समेटे गये जो सीधे भारतीय समाज की उस वक्त की जरूरत थी। गुलाम भारत में उस वक्त अंग्रेजों की गुलामी से छुटकारा, समाज में फैले पाखण्ड, अंधविश्वास, कुरीतियों एवं गंदी प्रथाओं को खत्म करने के लिए तमाम आंदोलन चलाए जा रहे थे। इन आंदोलनों में आर्यसमाज का असर समाज पर सबसे ज्यादा पड़ रहा था। प्रेमचंद की लेखनी में भी आर्य सामाजिक क्रांति का असर गहराई से देखा जा सकता है। भारतीय समाज के तत्कालीन हालात, प्रवृतियों और समस्याओं को प्रेमचंद ने अपने लेखन का विषय बनाया, वे महज भारतीय समाज की दिशा-दशा नहीं थी बल्कि दुनिया के उन सभी देशों की भी थी, जहां अंग्रेजों की हुकूमत थी। शायद यही वजह है कि प्रेमचंद विदेशों में भी उतने ही पसंद किए गए जितने की भारत में। पिछले सौ वर्षों में प्रेमचंद जितना सम्मान एशिया, यूरोप, अफ्रीकी देशों और अमेरिका के पड़ोसी देशों में पा रहे थे, वहां आज भी उसी तरह का मान-सम्मान अपनी रचनाओं के जरिए पा रहे हैं। जापान
This story is from the July 31, 2025 edition of Haribhoomi Rohtak.
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