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सागर की लहरों की तरह चंचल क्यों होती हैं देवी लक्ष्मी?
Dainik Bhaskar Chhatarpur
|October 19, 2025
दि वाली की सभी को शुभकामनाएं। आज इस लेख में हम देवी लक्ष्मी के स्वरूप, उनके अर्थ और उनकी व्यापक अवधारणा को विस्तार से समझने का प्रयास करेंगे।
बौद्ध धर्म में यह मान्यता है कि इच्छा ही पीड़ा का कारण है। इसी विचार से प्रेरित होकर राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने सांसारिक सुखों का त्याग किया और गहन चिंतन के बाद वे बुद्ध कहलाए। लेकिन यह रोचक तथ्य है कि लक्ष्मी या श्री की प्रारंभिक प्रतिमाएं बुद्ध की स्मृति में निर्मित स्तूपों में पाई गई हैं। बुद्ध को पूजने वाले व्यापारी और भिक्षु, इच्छा और पीड़ा के बीच संबंध को जानते हुए भी लक्ष्मी का आदर करते थे। वे यह समझते थे कि जीवन का प्रवाह तभी संभव है, जब उसमें समृद्धि और पोषण बना रहे। इस कारण बौद्ध धर्म के माध्यम से लक्ष्मी की पूजा चीन, तिब्बत और जापान तक फैल गई। जैन धर्म में भी लक्ष्मी का विशेष स्थान है। वहां यह विश्वास किया जाता है कि जब किसी स्त्री के स्वप्न में लक्ष्मी प्रकट होती हैं तो वह किसी महान व्यक्ति जैसे संत, नायक या राजा, को जन्म देने वाली होती है।
This story is from the October 19, 2025 edition of Dainik Bhaskar Chhatarpur.
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कभी जर्मनी की सबसे असफल ऑटो कंपनी कहलाई पोर्शे, दिवालिया होने से दो बार बची, अब प्रीमियम ब्रांड
साल 1993, पोर्शे लगभग दिवालिया होने वाली थी। सेल्स आधी रह गई थी। हर कार पर कंपनी को घाटा हो रहा था। वेंडेलिन वीडेकिंग को सीईओ के तौर पर लाया गया था। वेंडेलिन ने जापानी इंडस्ट्रियल इंजीनियर चिहिरो नाकाओं को कंपनी की दशा और दिशा सुधारने के लिए निरीक्षण पर बुलाया। चिहिरो पोर्शे की जुफेनहौसेन फैक्ट्री में दाखिल हुए। जैसे ही उन्होंने प्रोडक्शन देखा, उनका चेहरा तमतमा गया। हर जगह आधे-अधूरे पार्ट्स, पुरानी मशीनें, बेकार पड़े कंपोनेंट्स और बिना सिस्टम की मैनुअल असेंबलिंग हो रही थी। वे थोड़ी देर चुप रहे फिर फैक्ट्री मैनेजर से कहा- 'यह फैक्ट्री नहीं, एक गोदाम है'। यह वो लाइन थी, जिसने जर्मन इंजीनियरिंग के 'परफेक्शन' के मिथक पर सीधा प्रहार किया था। पोर्शे कारों के निर्माण का काम इतना अस्त-व्यस्त था कि कार की लागत कई गुना बढ़ रही थी। यही कारण थी कि पोर्शे की कुछ कारों की कीमत अमेरिका के एक औसत मकान के बराबर पहुंच गई थीं। एक समय था कि इसे जर्मनी की सबसे असफल ऑटो कंपनी तक कहा जाने लगा था। हालांकि नेतृत्व में बदलाव और सही रणनीति को अपनाकर पोर्शे न केवल पटरी पर लौटी बल्कि शीर्ष ऑटो कंपनियों में भी शामिल हुई। आज ब्रांड सें सबक में पढ़िए कहानी पोर्शे की।
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