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इतनी आसान भी नहीं पीके की राह
DASTAKTIMES
|July - 2025
बिहार चुनाव हमेशा से मनोरंजन का केन्द्र रहा है। कौन-सा नेता कब क्या कर बैठे ये आप अंतिम क्षण तक पता नहीं लगा सकते। चुनाव करीब है तो सारे बिहारी नेता सक्रिय हो गए है। तरह-तरह की अफवाहों और चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। चुनाव के सियासी माहौल पर हम एक नया कॉलम शुरू कर रहे है-चुनावी चखें। कॉलम में इस बार हम चर्चा कर रहे हैं प्रशांत किशोर यानी पीके की। पीके बिहार में नई तरह की राजनीति लेकर आए है लेकिन राजनीतिक तौर पर चैतन्य माना जाने वाला बिहार क्या इसके लिए तैयार है?

प्रशांत किशोर बेसिकली एक डेटाक्रेट हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर जनसुराज के निर्माण के बीच, वे राजनीतिक दलों को चुनाव जिताने का ठेका लेते थे। एक हवा सी बनी देश में कि जिसके पास ज्यादा डेटा, वहीं चुनाव जीतेगा और पीके डेटा के मास्टर आदमी। तो नीतीश कुमार ने पहले उन्हें अपने चुनाव के लिए साथ लिया और बाद में अपनी पार्टी में शामिल कराया। पीके हालांकि महत्वाकांक्षी हैं और वे किसी राजनीतिक दल में किसी एक पद से संतोष कर लेने वाले नहीं दिखते।
दिक्कत यह है कि प्रशांत किशोर के रूप में एक गैर-राजनीतिक विरासत वाला व्यक्ति या समूह सत्ता के लोहे वाले पिंजरे को तोड़ कर उसमें घुसने की हिम्मत दिखा रहा है। अब, चाहे पप्पू यादव हों, तेजस्वी यादव हों, नीरज कुमार हों, नीतीश कुमार हों, लालू प्रसाद यादव हों या आगे चल कर भाजपा के कोई नेता (जल्द ही सब मिलकर जनसुराज पर हमला बोलेंगे), वो भला सत्ता में एक और भागीदार भला क्यों चाहेंगे? इसलिए, आज सत्ताधारी दल से लेकर विपक्ष तक के लिए प्रशांत किशोर 'अपराधी' हैं, लेकिन, यह हमला ही प्रशांत किशोर को मजबूत बनाएगा, बशर्ते वे ऐसे और अधिक से अधिक हमलों के लिए माहौल बनाते रहे और उन हमलों को झेलते रहे। आखिर, नेता का निर्माण ऐसे ही हमलों से होता है।
This story is from the July - 2025 edition of DASTAKTIMES.
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