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ठाकुरबाड़ी के किस्से

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February 2025

देश के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर के दादा द्वारकानाथ टैगोर इतने बड़े ज़मींदार थे कि जब वे लंदन पहुंचे तो महारानी विक्टोरिया ने उन्हें प्राइवेट डिनर पर बुलाया था। कोलकता में ठाकुरबाड़ी को इन्होंने ही बसाया था। गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के कुटुंब वृत्तांत पर आधारित नई किताब 'ठाकुरबाड़ी' इन दिनों चर्चा में है। प्रस्तुत है अनिमेष मुखर्जी की इस चर्चित पुस्तक का एक अंश-

- अनिमेष मुखर्जी

ठाकुरबाड़ी के किस्से

बिना ब्लाउज़ की साड़ी

बात 1860 का दशक की है। कोलकाता की वामाबोधिनी पत्रिका में एक विज्ञापन छपा। बताया जाता है कि विज्ञापन और भी कई अखबारों में छपा। इसमें बताया गया था कि आधुनिक महिला के साड़ी पहनने का तरीका क्या है। आधुनिक महिला ब्लाउज़, समीज़, पेटीकोट, ब्रोच और जूतों के साथ साड़ी पहनती है। सर्दियों में जैकेट लेती है, बालों में पिन लगाती है। जिस किसी महिला को इस तरह साड़ी पहननी हो, उसे साड़ी पहनना सिखाया जाएगा और ये पेटीकोट, ब्लाउज़ वगैरह भी दिलवाए जाएंगे। विज्ञापन देने वाली महिला का छद्म नाम छापा गया था, लेकिन कुछ ही समय बाद ज्ञानदानंदनी देवी टैगोर के पास औरतों की लाइन लग गई, जिन्हें ब्लाउज़ और पेटीकोट के साथ साड़ी पहनना सीखना था। यह विज्ञापन रबींद्रनाथ की मेजोबोऊ ठकुराइन ज्ञानदा यानी ज्ञानदानंदिनी देवी टैगोर ने ही दिया था। उनके पति और भारत के पहले आईसीएस सत्येंद्रनाथ टैगोर को इससे कोई समस्या नहीं थी। हां, ससुर देवेंद्रनाथ को थी।

ठाकुरबाड़ी के दो अहम सदस्य ज्योतिंद्रनाथ और रबींद्रनाथ भी भाभी के मुरीद थे। ज्ञानदा ने उसी समय कहा था कि एक दिन ऐसा आएगा कि हर बंगाली लड़की ऐसे ही साड़ी पहनेंगी, लेकिन ज्ञानदा का अंदाज़ा थोड़ा गलत निकला, उनका साड़ी पहनने का तरीका बंगाल की सीमाओं से बहुत आगे निकल गया। उनके साड़ी पहनने के तरीके में थोड़ेबहुत बदलाव हुए और आज तक भारत की ज्यादातर महिलाएं 'नीव ड्रेप' वाली साड़ी पहन रही हैं। पारसी गारे और साड़ी पहनने के कुछ दूसरे ढंग को मिलाकर ज्ञानदा ने जो तरीका बनाया उसमें ब्लाउज़ था, पेटीकोट था, सामने प्लेट्स थीं, और पल्ला बाईं ओर लिया जाता था, ताकि दायां हाथ खाली रहे।

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