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दलतंत्र को लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करना चाहिए
DASTAKTIMES
|April 2024
वाणी की शक्ति अपरिमित है। संस्कृति मनुष्य को उदात्त बनाती है। संस्कृत देववाणी है। इसमें संस्कृति के विकास की विराट क्षमता है। भारतीय संस्कृति में वाणी और शब्द के आश्चर्यजनक सदुपयोग मिलते हैं लेकिन राजनैतिक क्षेत्र में सामान्य वक्तव्य भी हिंसक हो जाते हैं। भारतीय सुभाषितों में कहा गया है कि सत्य बोलो-सत्यम ब्रूयात। प्रिय बोलो-प्रियं ब्रूयात। लेकिन अप्रिय सत्य मत बोलो। यहां सत्य को भी अप्रिय होने के कारण उचित नहीं कहा गया।
 आम चुनाव की घोषणा के साथ आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है। सामान्य संवाद की भाषा बदल गई है। शब्द आक्रामक हो गए हैं। संवाद की शालीनता समाप्त हो रही है। कायदे से दलतंत्र को लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम करना चाहिए। संवाद की भाषा परस्पर प्रेमपूर्ण होनी चाहिए। दल परस्पर शत्रु नहीं हैं। वे लोकतांत्रिक व्यवस्था को आमजनों तक ले जाने और मजबूत करने के उपकरण हैं। लेकिन शब्द अपशब्द हो रहे हैं। वैचारिक आधार पर दलों के मध्य बहस नहीं है। प्रधानमंत्री तक को अपशब्द कहे गए हैं। भारत के आम चुनाव दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्री उत्सव हैं लेकिन अपशब्दों के प्रयोग वातावरण को उतप्त कर रहे हैं। आचार संहिता में निर्देश दिए गए हैं कि सभी दल और उम्मीदवार जाति, सम्प्रदाय, पंथिक समूह या भाषाई समूहों के मध्य अलगाववाद बढ़ाने से दूर रहेंगे। परस्पर विद्वेष और तनाव बढ़ाने वाले शब्दों का प्रयोग नहीं करेंगे। संहिता में राजनैतिक दलों की नीतिगत आलोचना की छूट दी गई है। आलोचना में भी संयम बरतने के निर्देश हैं। सबसे बड़ी बात है कि नेताओं और कार्यकर्ताओं की निजी जिंदगी की आलोचना नहीं करेंगे। आदर्श चुनाव आचार संहिता में इसी तरह के तमाम संयम की अपेक्षा की गई है। इस सब के बावजूद व्यक्तिगत आरोपों के माध्यम से वातावरण को बिगाड़ने का काम हो रहा है।
This story is from the April 2024 edition of DASTAKTIMES.
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