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खूब बंट रही मुफ्त की रेवड़ियां
DASTAKTIMES
|November 2023
'मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन....' यह कोई कहावत नहीं लेकिन मुफ्तखोरी करने वालों के ऊपर यह बहुचर्चित कटाक्ष है। सत्ता हासिल करने के लिए लगभग सभी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए 'रेवड़ियां' बांटने में कोई गुरेज नहीं करते हैं। चाहे घोषणापत्र हो या संकल्प पत्र या फिर बात गारंटी के माध्यम से कही जाये, निहितार्थ सभी के एक जैसे हैं।
 
 'मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन...' यह कोई कहावत नहीं लेकिन मुफ्तखोरी करने वालों के ऊपर यह बहुचर्चित कटाक्ष है। सत्ता हासिल करने के लिए लगभग सभी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए 'रेवड़ियां' बांटने में कोई गुरेज नहीं करते हैं। चाहे घोषणा पत्र हो या संकल्प पत्र या फिर बात गारंटी के माध्यम से कही जाये, निहितार्थ सभी के एक जैसे हैं। हालांकि जनता भी इस बात से भिज्ञ है कि सत्ता में आने के बाद राजनीतिक दल सरकार के खजाने से ही चुनाव के दौरान किए गए वादों को अमलीजामा पहनाते हैं। लेकिन प्रदेश हो या फिर देश, सरकारी खजाने को इससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इन 'रेवड़ियों' को 'फ्रीबीज' भी कहा जाता है। कुछ राजनीतिक पार्टियां इसके समर्थन में हैं, तो कुछ इसके खिलाफ। जिन पार्टियों को बड़े-बड़े लोकलुभावन वादे करने में ही फायदा दिखता है, वे इसके जारी रहने के पक्ष में खड़ी हैं। जो राजनीतिक दल 'मुफ्त की रेवड़ियों' के पक्ष में हैं, वह इसे अपने तरीके से परिभाषित करते हुए इसे 'लोक कल्याण' करार देते हैं। वहीं कुछ दल इस इस प्रकार की रणनीति को बड़ी बीमारी बता रहे हैं । इस तरह की मांग भी उठ रही है कि चुनाव से से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त रेवड़ियां देने का वादा करने वाली पार्टियों की मान्यता खत्म की जानी चाहिए। इसके पीछे तर्क है कि अगर चुनाव से पहले रुपये-पैसे बांटना अपराध है, तो जीतने के बाद भी ऐसा करना अपराध है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस पर अपना मत व्यक्त करते हुए कह चुके हैं कि 'रेवड़ी कल्चर' देश के आर्थिक विकास में बाधा है। उधर, देश की सबसे बड़ी अदालत को राजनीतिक दलों का यह कदम कतई नहीं सुहाया है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश, राजस्थान, केन्द्र सरकार, चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक को नोटिस भेजा है। मुफ्त की चुनावी सौगातों से जुड़ी एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जानना चाहा कि क्या ऐसे चुनावी वादों को कंट्रोल किया जा सकता है? लेकिन अब तक कहा जाता रहा है कि इश्क और जंग में सब जायज है। वहीं अब इसमें इश्क, जंग के साथ राजनीति भी जुड़ गया है।
This story is from the November 2023 edition of DASTAKTIMES.
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