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गिरिधर म्हारौ सांचो प्रीतम
Sadhana Path
|August 2025
प्रकृति के सभी जीवों की संरचना सृष्टि रचयिता ब्रह्मा ने की है।
प्रेम सृजन का पर्याय है चाहे जीव, जन्तु हो या मनुष्य अन्यथा संसार का कोई भी प्राणी हो उसे जीवन में प्रेम की आवश्यकता पड़ती है। प्रेम संजीवनी बूटी भी है और लेप भी, ईश्वर भी प्रेम का ही प्रतिरूप है। रामचरित मानस में भगवान शिव कहते हैं-
हरि व्यापक सर्वत्र समाना।
प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना॥
अर्थात् विधाता सर्वव्यापक है परंतु प्रेम से ही वह प्रकट होता है। श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कंध में गजेन्द्र मोक्ष की कथा है- गजों का राजा ग्राह्य की चपेट में आ गया तो उसके सभी साथी उसको छोड़कर चले गये। संकट में सबने उसका साथ छोड़ दिया, तब उसने प्रेमभाव से ईश्वर को पुकारा, भगवान आए उन्होंने गजेन्द्र का उद्धार किया।
इस जीवन में प्रेम का महत्त्व सर्वाधिक है प्रेम एक ऐसा दिव्यशास्त्र है जो अचूक एवं अद्वितीय है।
तभी तो कबीरदास कहते हैं-
'ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नांहि'
यदि हम भारतीयों में निःस्वार्थ एवं अहंमुक्त प्रेम होता तो हमारा राष्ट्र कभी भी पराधीनता की बेड़ियों में नहीं जकड़ता।
प्रकृति ने मनुष्य को एक विवेकवान प्राणी बनाया है परंतु हम मनुष्य अपने विवेक का सकारात्मक सदुपयोग कम करते हैं। प्रेम के वास्तविक रूप से हम अनभिज्ञ रहते हैं। प्रेम एक ऐसा निष्काम भाव जो हमारे अंदर में परमात्मा के प्रति श्रद्धा एवं सत्कर्मों के प्रति निष्ठा उत्पन्न कर दे।
गोस्वामी तुलसीदास जी 'रामचरित मानस' में लिखते हैं-
'मोरे प्रौढ तनय सम ग्यानी'
अर्थात् जो भक्तिपूर्वक ईश्वर को रमण करते हैं वे उन्हें अत्यधिक प्रिय हैं।
चाहे संत हो या आम गृहस्थ प्रेम सभी चाहते हैं प्रेम के प्रभाव से कोई वंचित नहीं रहता, सृष्टि के प्रत्येक जीव में प्रेम का अंकुर अंकुरित है।
This story is from the August 2025 edition of Sadhana Path.
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