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अन्नदाता होने का अर्थ संविधान से सर्वोपरि कतई नहीं है
Modern Kheti - Hindi
|15th April 2021
निश्चित अन्नदाता धरती का पालनहार है। किसान के पसीने से उपजी फसल ही धरती के जीवन के लिये आहार प्रदान करती है। इसलिये बेदों से लेकर आधुनिक समाज में उसे धरतीपुत्र सहित अनेकों सम्मान जनक शब्दों से संबोधित किया जाता है। बावजूद इसके आजादी के बाद से ही भारत में कृषि का पेशा अभावों से भरा रहा है।
देश का पेट भरने वाला अन्नदाता अपने परिवार को सुकून की दो जून रोटी दे पाने में भी असहाय महसूस करता है। कर्ज लेकर खेती करना, जीवनभर उसी कर्जे को पाटने में लगा रहना, अन्ततः उस कर्ज को अगली पीढ़ी को सौंपकर चले जाना, शायद, यही अभी तक देश के अन्नदाता की नियति बनी रही है। देश के 30 करोड़ किसान अभी भी कर्ज के जाल में उलझे हैं। आठ करोड़ किसानों को अब तक खेती छोड
This story is from the 15th April 2021 edition of Modern Kheti - Hindi.
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