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पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की दरकार
DASTAKTIMES
|September 2023
अच्छी स्वास्थ्य सेवा न होने के कारण पहाड़ के लगभग सभी जिलों में अब तक कई गर्भवती महिलाएं, नवजात शिशु और बुजुर्ग काल का ग्रास बन चुके हैं। ऐसी ही एक दुखद खबर पिछले दिनों पहाड़ के दूरस्थ जिले चंपावत से आई थी, जहां शिशु की मौत के 24 घंटे बाद ही प्रसूता महिला की मौत हो गई। बताया गया है कि शिशु की मौत के 24 घंटे तक पीड़िता का प्रसव नहीं किया गया जिससे लोहाघाट से हायर सेंटर रेफर गर्भवती महिला ने जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। परिजनों का कहना था कि यदि समय रहते महिला का आपरेशन कर बच्चे को निकाल लिया जाता तो शायद महिला की जान बच सकती थी।
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उत्तराखंड बनने के दो दशक से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन राज्य में आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बेहद ही लचर है। आज भी हालात यह है कि छोटी बीमारियों के लिए पहाड़ के लोगों को कई सौ किमी की यात्रा करनी पड़ती है। खासकर बरसात के समय में तो स्थितियां और भी खतरनाक हो जाती हैं। अभी पिछले दिनों पर्वतीय क्षेत्रों में जिस प्रकार की घटनाएं सामने आई हैं उससे चिंता बढ़नी लाजिमी है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति आज किसी से भी छिपी नहीं है। बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं का सबसे अधिक खामियाजा पहाड़ की गरीब गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों को भुगतना पड़ रहा है। अच्छी स्वास्थ्य सेवा न होने के कारण पहाड़ के लगभग सभी जिलों में अब तक कई गर्भवती महिलाएं, नवजात शिशु और बुजुर्ग काल का ग्रास बन चुके हैं। ऐसी ही एक दुखद खबर पिछले दिनों पहाड़ के दूरस्थ जिले चंपावत से आई थी, जहां शिशु की मौत के 24 घंटे बाद ही प्रसूता महिला की मौत हो गई। बताया गया है कि शिशु की मौत के 24 घंटे तक पीड़िता का प्रसव नहीं किया गया जिससे लोहाघाट से हायर सेंटर रेफर गर्भवती महिला ने जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया। परिजनों का कहना था कि यदि समय रहते महिला का आपरेशन कर बच्चे को निकाल लिया जाता तो शायद महिला की जान बच सकती थी। ऐसा ही कुछ मामला चमोली जिले के ईराणी गांव में भी आया था। ईराणी गांव की 61 वर्षीय बुजुर्ग शंकरी देवी पत्नी नत्थी सिंह दो दिनों से तेज बुखार, पेट दर्द और सिरदर्द से पीड़ित थी। इन दिनों मानसून में गांव के रास्ते क्षतिग्रस्त होने, नालों के उफान में होने के चलते वह चिकित्सालय नहीं जा पाई। जब बुजुर्ग महिला की तबीयत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई तो ग्रामीण आनन-फानन उसे कुर्सी की पालकी बनाकर चिकित्सालय ले गए। इस दौरान, पैदल रास्तों में भूस्खलन के चलते क्षतिग्रस्त रास्ते के साथ-साथ रास्ते में आवाजाही के दौरान काफी दिक्कतें हुईं। यहां पर वर्षा के दौरान पत्थर गिरना आम बात है। साथ ही भेलतना गदेरे में जलस्तर बढ़ने के चलते इसको पार करने के लिए भी ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर आवाजाही करनी पड़ी। हालांकि ग्रामीणों ने सुरक्षित बीमार महिला को सात किलोमीटर पैदल चलकर ईराणी गांव से पगना तक लाए, जहां से 40 किलोमीटर सड़क मार्ग से गोपेश्वर स्थित जिला चिकित्सालय
Diese Geschichte stammt aus der September 2023-Ausgabe von DASTAKTIMES.
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