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अरविन्द केजरीवाल का अहंकार आप को ले डूबा
DASTAKTIMES
|March 2025
दिल्ली में तीन बार की आम आदमी पार्टी का इस बार पतन हो गया। आप नेता स्वेच्छाचारी हो गए थे। जिन आदर्शों के ताजमहल पर पार्टी का ढांचा खड़ा हुआ था, वह ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। अचानक ऐसा क्या हुआ कि दिल्ली की जनता का दिल एक बार फिर बीजेपी पर आ गया। पढ़िए आम आदमी पार्टी के उत्थान और उसके पतन को बहुत करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार
 
 निजी अंहकार, सत्ता की लालसा और केन्द्रीकरण आम आदमी पार्टी यानी आप को ले डूबा। यह बात मैंने इसलिए की है कि इस पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल जब साल 2009 में दिल्ली में स्वराज आन्दोलन चलाते थे (इन पंक्तियों का लेखक भी ऐसी कई मीटिंग्स में रहा है), तो मुख्य फोकस विकेन्द्रीकरण पर होता था। सत्ता का, अधिकार का, संसाधन का विकेन्द्रीकरण करने को केजरीवाल एक बेहतर गवर्नेस मॉडल मानते थे। दिलचस्प बात यह है कि आज मंत्री बने कपिल मिश्रा उस वक्त के केजरीवाल को अपनी माता जी अन्नपूर्णा मिश्रा के क्षेत्र सोनिया विहार (करावल नगर) में ऐसी मीटिंग्स कराने के लिए ले जाते थे। वही मिश्रा आज भाजपा की तरफ से मंत्री हैं। बहरहाल, 12 साल तक दिल्ली के शासन की बागडोर संभालते-संभालते केजरीवाल इसी मूलमंत्र (विकेन्द्रीकरण) को पूरी तरह से भूल गए। खुद अपनी ही पार्टी के भीतर पार्टी की कमान संभालनी हो, कोई निर्णय लेना हो, सब को विकेन्द्रीकृत करते हुए अकेले सारे अधिकारों पर काबिज होते चले गए। नतीजा, वालंटियर्स हो, समर्थक हो, सिम्पेथाइजर हो, सभी धीरे-धीरे कन्नी काटने लगे। तिस पर भ्रष्टाचार के आरोप, जेल जाने जैसी घटनाएं, शराब घोटाले के आरोप, मनीष सिसोदिया का सीट बदलना, दिलीप पाण्डेय जैसे लोगों के टिकट काटने के कारण इस हार की जमीन पहले से तैयार की जा रही थी। इसलिए, अंतिम समय में वोटर लिस्ट में वोट जोड़ने/काटने से कुछ नहीं होने वाला था, जैसा कि चुनावी नतीजों से साबित भी हुआ।
Bu hikaye DASTAKTIMES dergisinin March 2025 baskısından alınmıştır.
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