शिव भक्ति का अनूठा मेला- 'श्रावणी मेला'
Sadhana Path
|July 2025
भगवान शिव का प्रिय माह सावन भोले के भक्तों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। पूरा देश इस समय शिवमय हो जाता है। भोले के रंग में रंगा ऐसा ही एक मेला झारखंड के देवघर में लगता है जिसे हम श्रावणी मेला के नाम से जानते हैं। मेले के महत्त्व व विशेषता को आइए जानते हैं इस लेख से।
सभ्यता, संस्कृति और अध्यात्म का एक अनोखा मेला, जिसे हम श्रावणी मेला के नाम से जानते हैं, इस माह से शुरू होने जा रहा है। शिव के जितने रूप हैं और उनकी भक्ति के जितने स्वरूप हैं वे सब इस मेले में देखने को मिलते हैं। पूरा देश सत्यम् शिवम सुंदरम हो जाता है। 'बोल बम' का जयकारा पूरे एक महीने तक चलता है और हमारे देश की एकता और पवित्रता की झलक भी हमें मिल जाती है। जो रौनक कुंभ मेले में दिखती है कमो-वेश वही उत्साह और उमंग श्रावणी मेले में भी दिखती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र मास से आरंभ होने वाला वर्ष का पांचवा महीना श्रावण का होता है। आषाढ़ की पूर्णिमा से श्रावणी मेले का आरंभ होता है।
सवा महीने चलने वाले इस मेले में कांवरियों की संख्या लाखों तक पहुंच जाती है। हजारों भक्त ऐसे भी हैं जो न जानें कितने वर्षों से कांवड़ लेकर जाते हैं। अब तो महिलाएं भी इस यात्रा में शामिल होने लगी हैं।
वैसे तो यह मेला शिव से जुड़े कई तीर्थस्थलों में लगता है, लेकिन झारखंड के देवघर का मेला देशभर में सर्वाधिक प्रसिद्ध है। बिहार के सुल्तानगंज (भागलपुर) से भक्तगण गंगाजल लेकर अपनी यात्रा आरंभ करते हैं और झारखंड के देवघर अर्थात् बाबाधाम में भगवान शिव को जल अर्पित कर यात्रा को समाप्त करते हैं। सुल्तानगंज गंगा नदी के तट पर स्थित है। यहां बाबा अजबैगीनाथ का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। उत्तरवाहिनी गंगा होने के कारण सावन में लाखों कांवड़िये देशभर से यहां गंगाजल लेने आते हैं। सुल्तानगंज से जल लेकर देवघर तक लगभग 115 कि.मी. की दूरी भक्तगण चार से पांच दिनों में तय करते हैं।
कांवड़ में गंगाजल लेकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों का जलाभिषेक करने की यह परंपरा 'कांवड़ यात्रा' कहलाती है और भक्त 'कांवड़ियां'। कांवड़िये अपने कांवड़ को फूलों से, घुंघरूओं से सजाते हैं और साथ ही उसमें दो जलपात्र भी लगाते हैं, जिनमें गंगाजल भरा होता है। इसे कंधे पर लेकर कई किलोमीटर की पैदल यात्रा वे उत्साह के साथ पूरी करते हैं। इस वर्ष यह मेला 17 जुलाई से शुरू होकर 15 अगस्त तक चलेगा। पूरे एक महीने सुल्तानगंज से लेकर बाबाधाम अर्थात् देवघर की ओर जाने वाली सड़कें भगवाधारियों से भर जाती हैं और गूंजते हैं तो सिर्फ बोल बम के नारे। कांवड़िये और उनके कांवड़ दोनों ही भगवा रंग में रंगे होते हैं।
Bu hikaye Sadhana Path dergisinin July 2025 baskısından alınmıştır.
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