Gambhir Samachar - December 16, 2021Add to Favorites

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news magazine which covers various types of matters.

मथुरा चुनावी ब्रह्मास्त्र!

मथुरा को लेकर हाल ही में बीजेपी नेता व उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का ट्वीट बीजेपी के पुराने राम मंदिर स्लोगन का ही नया वर्जन है. नये अपडेट में भी 'अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है' जैसी ध्वनि सुनी जा सकती है. दरअसल, सूबे में विधान सभा चुनाव के ठीक पहले सियासी मैदान के शूरमाओं की ओर से जब कोई बयान आएं तो उनके राजनीतिक अर्थ निकाले ही जाएंगे. अगर बयान आबादी के लिहाज से सबसे बड़े और राजनीति के हिसाब से सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश से जुड़ा हो तो उसका विश्लेषण कुछ ज्यादा ही होगा. यहां प्रसंग उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के उस ट्वीट का है, जिसमें उन्होंने कहा था, 'अयोध्या और काशी में भव्य मंदिर निर्माण का काम जारी है, मथुरा की तैयारी है.'

मथुरा चुनावी ब्रह्मास्त्र!

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मसीहाई अंदाज में किसान बिल की वापसी

पिछले सात सालों में ऐसे मौके बहुत कम आये हैं जब नागरिक समूहों के दबाव के चलते मोदी सरकार ने अपना कोई फैसला वापस लिया हो इसलिये जब बीते 19 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया तो यह सभी के लिए चौंकाने वाला था जिसमें उनके धुर विरोधी और समर्थक दोनों शामिल थे. कानून वापसी की यह घोषणा 'अचानक' के साथ 'एकतरफा' भी थी जिसके साथ प्रधानमंत्री यह कहना भी नहीं भूले कि 'ये कानून किसानों के हित में बनाए गए थे, लेकिन शासन की तरफ से किसानों को समझाया नहीं जा सका'.शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री के 'मसीहाई' अंदाज में बिल वापसी के ऐलान और संसद के दोनों सदनों से इसकी वापसी की मुहर के बाद भी के बाद भी आन्दोलनकारी सरकार पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. कानून को लाने की प्रक्रिया की तरह इसके वापसी की प्रक्रिया भी एकतरफा थी, ना तो इस कानूनों को लाने से पहले किसानों से बातचीत की गयी और ना ही इनके वापसी से पहले आन्दोलनकारियों से इस सम्बन्ध में बात करने की कोशिश की गयी. ऊपर से कृषि कानून वापसी बिल दोनों सदनों राज्यसभा और लोकसभा में भी बिना चर्चा के पास कर दिया गया.ऊपर से मोदी सरकार और उनके समर्थक यह मानने को तैयार नहीं हैं कि कानूनों में कोई गलती थी बल्कि उनका यह कहना है कि कानून तो किसानों के हित में था लेकिन किसान ही इसकी अच्छाइयों को समझ नहीं पाए क्योंकि उन्हें बरगला दिया गया इसलिये प्रधानमंत्री को 'देशहित' में कानून वापस लेना पड़ा.

मसीहाई अंदाज में किसान बिल की वापसी

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राहुल गांधी ने यूपी से भी बना ली है दूरी

राहुल गांधी ने प्रयागराज में एक शादी समारोह में शामिल होने के बाद वाराणसी में रात्रि विश्राम का कार्यक्रम बना चुके हैं - और ये भी संयोग ही है कि 5 दिसंबर को ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का भी अमेठी का कार्यक्रम बना हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए वाराणसी जाने वाले हैं.

राहुल गांधी ने यूपी से भी बना ली है दूरी

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सपा गठबंधन सियासत में बड़ी चुनौती होगा सीटों का बंटवारा

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का समय नजदीक आने के साथ ही चुनाव की तस्वीर भी करीब-करीब साफ होने लगी है. यह लगभग तय हो गया है कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी 'एकला चलो' की राह पर आगे बढ़ेंगी,वहीं भारतीय जनता पार्टी नये दोस्त बनाने की बजाए अपने पुराने सहयोगियों के सहारे चुनाव में दम आजमायेगी. संजय निषाद की 'निषाद पार्टीह्य भाजपा के साथ आई है तो ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बीजेपी से छिटक कर सपा में चली गई है.2017 में बीजेपी ने अपना दल (एस) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले यह गठबंधन टूट गया था. हालांकि, इस बार बीजेपी ने सपा-बसपा गठबंधन से निषाद पार्टी को निकालने में सफलता हासिल कर ली है.निषाद पार्टी में निषाद जाति के अलावा उससे जुड़ी मल्लाह, केवट, धीवर, बिंद, कश्यप और दूसरी जातियों को अच्छा खासा गैरयादव वोट बैंक समझा जाता है. साल 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक परिदृश्य में आई निषाद पार्टी ने खुद को नदियों से जुड़ी हुई पिछड़ी जातियों की आवाज कहा था. उनकी मांग थी कि उनकी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में दर्ज कराया जाए.2017 में इसने पूर्वी उत्तर प्रदेश की 72 सीटों पर 5.40 लाख वोट हासिल किए थे लेकिन कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो पाई थी. 2018 में निषाद पार्टी ने सपा-बसपा को समर्थन दिया और इसने लोकसभा उप-चुनाव में गोरखपुर और फूलपुर सीटों को जीतने में मदद की. इस दौरान प्रवीण निषाद ने सपा के टिकट पर गोरखपुर सीट को जीत लिया था जिस पर योगी आदित्यनाथ चुनकर आते रहे थे.

सपा गठबंधन सियासत में बड़ी चुनौती होगा सीटों का बंटवारा

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प्रवासी पक्षी कुरंजा पर छाया बर्ड फ्लू का संकट

जोधपुर जिले के कापरड़ा सेज के लवणीय क्षेत्र में दीपावली के दिन से कुरंजा की मौत का शुरू हुआ सिलसिला फिलहाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. जबकि यह सिलसिला देवली नाडा, रामासनी तालाब, चांदीलाव, ओलवी, मामा नाडा बासनी आदि जलाशयों तक जा पहुंचा है. ऐसे में यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया कि आखिर कुरंजा पक्षी की मौत का कारण क्या है?

प्रवासी पक्षी कुरंजा पर छाया बर्ड फ्लू का संकट

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विनोद दुआ जिन्होंने दिया हिन्दी टीवी पत्रकारिता को नया आयाम

हिन्दी पत्रकारिता का जाना-पहचाना चेहरा रहे विख्यात पत्रकार विनोद दुआ का 4 दिसम्बर को लंबी बीमारी के बाद 67 साल की उम्र में दिल्ली के अपोलो अस्पताल में निधन हो गया. वे काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे. कोरोना की दूसरी लहर में इसी साल अप्रैल माह में उन्हें तथा उनकी 56 वर्षीया रेडियोलॉजिस्ट पत्नी डा. पद्मावती चिन्ना को कोरोना होने पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जून माह में कोरोना से पत्नी का निधन होने के बाद उनकी हालत में भी कोई खास सुधार नहीं आया और उन्हें कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया. विनोद दुआ के निधन पर भारत के पूरे पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ने के पीछे अहम कारण यही है कि आधुनिक पत्रकारिता के मौजूदा दौर में भी अपनी बेहद शालीन और शिष्ट पत्रकारिता के लिए जाने जाते रहे दुआ को अपने युग के पत्रकारों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता रहा. निर्भीक, निडर और असाधारण पत्रकारिता के लिए मशहूर विनोद दुआ हिन्दी टीवी पत्रकारिता में अग्रणी थे. उन्होंने टीवी पत्रकारिता में ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन के उस दौर में कदम रखा था, जब टीवी की दुनिया केवल दूरदर्शन तक ही सिमटी थी और धूमकेतु की भांति टीवी पत्रकारिता में उभरने के बाद वे जीवन पर्यन्त टीवी पत्रकारिता में जगमगाते रहे.

विनोद दुआ जिन्होंने दिया हिन्दी टीवी पत्रकारिता को नया आयाम

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देश में समान पाठ्यक्रम की आवश्यकता

हाल में सीबीएसई, आईसीएससी और राज्य शिक्षा बोर्डों में बंटी स्कूली शिक्षा को एक जैसा स्वरूप देने के लिए संसद की स्थायी समिति ने देशभर के स्कूलों के लिए समान पाठ्यक्रम विकसित करने का सुझाव दिया है. साथ ही शिक्षा मंत्रालय से कहा है कि वह इससे जुड़ी संभावना पर काम करें. स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले सभी विषयों को इसमें शामिल किया जाना चाहिए. समिति का कहना है कि इससे स्कूली शिक्षा में एकरूपता आएगी और देशभर के सभी स्कूली छात्रों का एक ही शैक्षणिक स्टैंडर्ड होगा. निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि यदि समिति की इस सिफारिश पर गौर किया जाए तो भारत जैसे लोकतांत्रिक और विकासशील राष्ट्र के लिए यह कदम मील का पत्थर साबित होगा.

देश में समान पाठ्यक्रम की आवश्यकता

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जनरल रावत से कांपते थे चीन-पाक

जनरल रावत चीन के मामलों के गहन विशेषज्ञ थे और चीन और पाकिस्तान के साथ सरहद पर चल रही तनातनी पर सरकार को लगातार सलाह देते थे. उनका मानना था कि देश किसी भी परिस्थिति में दबेगा नहीं. वह शत्रुओं को ईंट का जवाब पत्थर से देगा. चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद पर जनरल रावत ने कहा था कि 'लद्दाख में चीनी सेना के अतिक्रमण से निपटने के लिए सैन्य विकल्प भी है.

जनरल रावत से कांपते थे चीन-पाक

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अमेरिकी नेतृत्व मलाला से तो मिला लेकिन इमरान को नहीं दे रहा टाइम

साल 2021 के अगस्त का मध्य. विश्व एक बड़े सत्ता परिवर्तन का साक्षी बना और ये परिवर्तन हुआ अफगानिस्तान में जहां राष्ट्रपति अशरफ गनी की सत्ता को न केवल कुख्यात आतंकी संगठन तालिबान ने चुनौती दी बल्कि उसे उखाड़ फेंका और काबुल पर कब्जा कर लिया. घटना का सबसे विचलित करने वाला पहलू अमेरिका था जिसने घटना पर वैसी प्रतिक्रिया नहीं दी जैसी उम्मीद आमतौर पर उससे की जाती है.अफगानिस्तान पर तालिबान को कब्जे करे ठीक ठाक वक़्त गुजर चुका है. जैसे हालात हैं अफगानिस्तान की स्थिति अच्छी नहीं है और मुल्क दशकों पीछे चला गया है. बात सबसे ज्यादा प्रभावित लोगों की हो तो महिलाएं और लड़कियां हैं. तालिबान पर लगातार यही आरोप लग रहा है कि वो लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा तक से वंचित कर उनके मानवाधिकारों का हनन कर रहा है. इन्हीं गफलतों के बीच नोबेल पीस प्राइज विनर और पाकिस्तानी एक्टिविस्ट मलाला यूसुफजई द्वारा एक बड़ी पहल को अंजाम दिया गया है.

अमेरिकी नेतृत्व मलाला से तो मिला लेकिन इमरान को नहीं दे रहा टाइम

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भारत-रूस करें चीन को अलग-थलग

पुतिन की नई दिल्ली यात्रा के दौरान दोनों देशों के दरम्यान अनेक अहम मसलों पर समझौते हुए.लेकिन, अगर साफ तौर पर या संकेतों में ही चीन को यह बता दिया जाता कि भारत-रूस हरेक संकट में एक-दूसरे के साथ खड़े रहेंगे, तो बेहतर होता. देखिए कि जब से दुनिया कोविड के शिकंजे में आई है तब से पुतिन सिर्फ दो ही देशों में गए हैं. पहले वे अमेरिका के राष्ट्रपति जोसेफ रॉबिनेट बाइडेन से मिलने जेनेवा गए थे. उसके बाद वे भारत आए. इसी उदाहरण से समझा जा सकता है कि वे और उनका देश भारत को कितना महत्व देता है. इसलिए पुतिन की इस यात्रा को सामान्य या सांकेतिक यात्रा की श्रेणी में रखना तो भूल ही होगी.

भारत-रूस करें चीन को अलग-थलग

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