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समाजसेवी वीर सावरकर

Kendra Bharati - केन्द्र भारती

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Kendra Bharati - May 2023

लगभग डेढ़ दशक कारागार में कठोर सजा झेलने के बाद समाजसेवा के क्षेत्र में वीर सावरकर ने अद्वितीय कार्य किया था। राजनीति, सत्ता, सम्पत्ति व प्रसिद्धि से जुड़ी सतही सोच ने उन्हें कभी नहीं लुभाया।

- डॉ. श्रीरंग गोडबोले

समाजसेवी वीर सावरकर

हालांकि, स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को अधिकांशतः स्वतंत्रता सेनानी व हिन्दुत्व के पुरोधा के तौर पर जाना जाता है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि वे असाधारण समाजसेवी भी थे। अपने विचारों, शब्दों तथा कार्यों के माध्यम से सामाजिक सुधारों के उनके प्रयासों को धार्मिक संकीर्णतावादियों और सरकार की ओर से बड़े विरोधों का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद, अत्यन्त कम संसाधनों से उन्होंने अपने प्रयास जारी रखे। सावरकर ने समाज सुधार व तार्किकता से जुड़े अपने विचारों को कलमबद्ध भी किया। रत्नागिरि में नजरबंदी के दौरान उन्होंने 'जातुच्छेदक निबंध' (जातिप्रथा उन्मूलन पर निबंध) व 'विज्ञान निष्ठा निबंध' (वैज्ञानिक सोच पर निबंध) लिखे थे। उनके लिखे नाटक 'उः षाप' (श्राप का प्रतिकार) में अस्पृश्यता, महिलाओं के अपहरण, शुद्धि व रूढ़िवादियों के दोगलेपन जैसे विषयों को उठाया गया है। उन्होंने मन्दिर में प्रवेश होने जैसे विशिष्ट अवसरों पर कविताएं भी लिखीं।

आजीवन समाजसेवी

प्रायः यह आरोप लगाया जाता है कि सावरकर ने समाजसेवा का अभियान निम्न जातियों के प्रति सहानुभूति के लिए नहीं बल्कि हिन्दू सशक्तिकरण के लिए चलाया था । पर उनका यह कथन इस आरोप को सिरे से खारिज करता है, “हमारे ७ करोड़ धर्मावलम्बियों क 'अस्पृश्य' व पशुओं से बदतर कहना न केवल मानवजाति का बल्कि हमारी आत्मा का भी अनादर करना है। इसीलिए मेरा अटूट विश्वास है कि अस्पृश्यता का समूल उन्मूलन होना चाहिए... जब मैं यह कह कर किसी का स्पर्श करने से इनकार करता हूँ कि वह किसी विशेष जाति में पैदा हुआ है, है, परन्तु कुत्तों व बिल्लियों के साथ खेलता हूँ, उस समय मैं मानवता के विरुद्ध सबसे जघन्य अपराध करता हूँ। अस्पृश्यता का उन्मूलन केवल इसलिए जरूरी नहीं कि यह हमारे ऊपर थोपी गई है बल्कि इसलिए भी कि धर्म के किसी भी पक्ष पर विचार करते हुए इसे न्यायसंगत ठहराना असम्भव है। अतः इस प्रथा को धर्म के एक आदेशानुसार समाप्त किया जाना चाहिए।" (१६२७, समग्र सावरकर वांग्मय, सं. एस. आर. दाते, महाराष्ट्र प्रान्तिक हिन्दू सभा, पुणे, १६६३ - १६६५, खंड ३, पृ. ४८३)।

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Denne historien er fra Kendra Bharati - May 2023-utgaven av Kendra Bharati - केन्द्र भारती.

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