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सन्तानगोपालस्तोत्र और गर्भगौरी रुद्राक्ष
Jyotish Sagar
|August 2025
हिन्दू धर्म में पितृऋण से उऋण होने के लिए सन्तान की उत्पत्ति पर बल दिया गया है। सन्तति के बिना जीवन अधूरा है। सन्तान का जन्म वंश परम्परा की सत्ता के लिए भी आवश्यक है, तो वहीं लौकिक एवं पारलौकिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी सन्तति की आवश्यकता होती है। पुरुष और महिला के जीवन की पूर्णता बिना सन्तति के सम्भव नहीं है। सन्तानहीनता एक 'अभिशाप' के रूप में देखा जाता है। सन्तानहीन दम्पती के मन को यह बात आजीवन कचोटती रहती है कि वह पिता और माता नहीं बन पाए। आधुनिक युग में चिकित्सकीय उपचार एवं प्रक्रियाओं (आईवीएफ आदि) के माध्यम से सन्तानहीन दम्पतियों को खुशियाँ मिलने लगी हैं, परन्तु उनकी सफलता का प्रतिशत अत्यन्त न्यून रहता है। यह देखा गया है कि आध्यात्मिक उपायों के साथ चिकित्सकीय उपचार लिया जाए, तो उसकी सफलता का प्रतिशत बढ़ जाता है।
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जहाँ तक सन्तानहीनता से मुक्ति के लिए आध्यात्मिक उपायों का प्रश्न है, तो उसमें मुख्य रूप से श्रीकृष्ण एवं शिव-पार्वती-गणेश की उपासना सर्वप्रमुख मानी जाती है। सन्तानगोपाल मन्त्र का जप एवं सन्तानगोपाल स्तोत्र का पाठ सन्तान प्राप्ति के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्रचलित उपाय के रूप में जाना जाता है। सन्तानगोपाल वस्तुतः भगवान् श्रीकृष्ण का वह स्वरूप है, जिसकी उपासना सन्तान प्राप्ति हेतु की जाती है। प्रतिदिन एक माला मन्त्र जप तथा एक बार सन्तानगोपाल स्तोत्र का पाठ सन्तति प्राप्ति के सम्बन्ध में सर्वाधिक प्रचलित उपाय के रूप में देखा जा सकता है। व्यवहार में यह कारगर उपाय भी है।
जहाँ तक रुद्राक्षों का सम्बन्ध है, तो सन्तति सुख प्राप्ति की दृष्टि से गर्भगौरी रुद्राक्ष का प्रचलन है।
जैसा कि आप जानते हैं। रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान् शिव के नेत्रों से हुई है। इसलिए रुद्राक्ष शिवोपासना में विशेष कारगर माने जाते हैं। उनमें से गर्भगौरी रुद्राक्ष विशेष रुद्राक्ष है, जो विशिष्ट मनोकामना की पूर्ति यानी सन्तति सुख की प्राप्ति एवं गर्भ की रक्षा के लिए जाना जाता है। गर्भगौरी रुद्राक्ष में दो रुद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं, जिनमें से एक रुद्राक्ष बड़ा होता है और एक छोटा होता है। बड़ा रुद्राक्ष माता पार्वती का प्रतीक जाना जाता है, वहीं छोटा रुद्राक्ष स्वामी कार्तिकेय और श्रीगणेश का प्रतीक माना जाता है। इस तरह गर्भगौरी रुद्राक्ष सम्पूर्ण शिव परिवार की कृपा प्राप्ति के साधन के रूप में देखा जा सकता है।
यह देखा गया है कि सन्तानगोपाल मन्त्र का जप, सन्तानगोपाल स्तोत्र का पाठ और गर्भगौरी रुद्राक्ष को धारण करना यह मिलकर एक कारगर या प्रभावशाली उपाय के रूप में होता है।
Denne historien er fra August 2025-utgaven av Jyotish Sagar.
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