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रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक

Jyotish Sagar

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January 2025

राजपूताना के कई राजवंश एवं शासक सूर्यभक्त थे और उन्होंने कई देवालयों का निर्माण भी करवाया। इन्हीं के शासनकाल में निर्मित मूर्तियाँ वर्तमान में भी राजस्थान के कई संग्रहालयों में संरक्षित हैं।

- पुष्पा शर्मा

रथारूढ़ सूर्य मूर्ति फलक

र्यपूजा के प्रमाण सभ्यता के आदिकाल से न केवल भारत में अपितु विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं में प्राप्त होते रहे हैं। भारत के प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद में सूर्य को समस्त जगत् की आत्मा के रूप में वर्णित किया गया 'सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च' उनके लिए पूषन्, मित्र, विवस्वत्, सविता आदि नामोल्लेख भी मिलते हैं। पुराणों में सूर्य की पूजा के अनेक प्रमाण मिल हैं।

पुराणों के अनुसार सूर्य के रथ का विस्तार 9,000 योजन एवं 3 नाभि, 5 आरे और 6 नेमि वाले उस अक्षय स्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण काल चक्र स्थित है।

सात छन्द उसके अश्व हैं, जिनके नाम हैं – गायत्री, बृहती, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप्, अनुष्टुप् और पंक्ति वैदिक युग प्रमुख समूह में गुप्तकाल से सूर्य की गणना होती थी। मध्यकाल तक भारत में सूर्योपासना की परम्परा के अनेक साक्ष्य भी मिले हैं।

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Denne historien er fra January 2025-utgaven av Jyotish Sagar.

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