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थ्यानचिन में दिखा भारत का रणनीतिक पुनर्संतुलन

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September 16, 2025

मोदी की थ्यानचिन यात्रा और चिनफिंग के साथ उनकी बैठक ने दुनिया में भारत के बढ़ते रुतबे का संकेत दिया है। भारत अब किसी एक देश पर निर्भरता से दूर जा रहा है। बता रहे हैं हर्ष वी पंत और अतुल कुमार

चीन के ध्यानचिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन, 2025 इस संस्था के इतिहास में नेताओं का अब तक का सबसे बड़ा जमघट साबित हुआ।

इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस सहित 20 देशों के नेताओं एवं 10 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों ने भाग लिया। संस्थागत व्यापकता के प्रदर्शन से आगे निकल कर यह शिखर सम्मेलन भू- राजनीतिक संकेत भेजने का एक बड़ा मंच बन गया। विशेष रूप से चीन, भारत और रूस के नेताओं के बीच आपसी तालमेल से यह बात बखूबी साबित हो गई। इन तीनों देशों के नेताओं की बैठक दुनिया खासकर अमेरिका एवं पश्चिमी देशों को एक खास संकेत भेजने के लिए आयोजित की गई थी। इस शिखर सम्मेलन ने एक बहु-ध्रुवीय दुनिया का खाका भी पेश किया।

एससीओ शिखर सम्मेलन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को भारत और चीन दोनों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ने का अवसर प्रदान किया। इससे पुतिन को पश्चिमी देशों को यह संदेश देने का मौका भी मिल गया कि रूस के पास सहयोगियों की कमी नहीं है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग का उद्देश्य इस अवसर का उपयोग एक उभरते हुए राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के शिल्पकार के रूप में अपनी साख जमाना था। हालांकि, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में एक खास और सोचा-समझा संदेश दिया कि भारतीय विदेश नीति दुनिया की प्रमुख शक्तियों के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को नए सिरे से संतुलित कर रही है और भारत एक केंद्रीय भूमिका में पहुंचने की कोशिश कर रहा है।

कुल मिलाकर, भारत कई देशों के साथ संबंध रखने के लंबे समय से अपने घोषित सिद्धांत को व्यवहार में ला रहा है और स्वयं को तेजी से बहुध्रुवीय प्रणाली में एक अहम किरदार के रूप में स्थापित कर रहा है।

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