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दानिया

Sarita

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June Second 2025

अब्बू के जाने के बाद दानिया और उस की मां एकदम अकेले पड़ गए जिस का फायदा उमर ने बखूबी उठाया. लेकिन दानिया भी उस से दो कदम आगे निकली और उमर का परदाफाश करने में सफल हो गई.

- पूनम अहमद

दानिया

स्कूल से लौटते हुए दानिया ने दूर से देखा, उस के छोटे से घर से मौलवी उमर मियां जल्दीजल्दी निकल रहे हैं. दानिया के कदम धीमे हो गए, आंखों में पानी आ गया. उस का छोटा सा दिल उदास हुआ. बहुत उदास. स्कूल से घर की दूरी बस 15 मिनट की ही थी पर जिस तरह से स्कूल से निकल कर बच्चे बातें करते, मस्ती करते चलते हैं, उन्हें आधा घंटा लग जाता था. साथ चलते बच्चों ने टोका, "जब घर पास आ गया, तू धीरे चलने लगी? जल्दी चल."

"तुम लोग जाओ, मैं चली जाऊंगी, कुछ सामान लेना है. अम्मी ने आते हुए लाने के लिए कहा था, ले कर आती हूं," कहतेकहते दानिया ने रास्ता बदला और कुछ दूरी पर एक दुकान के बाहर खाली जगह देख कर बैठ गई. वैसे तो आजकल जब से सब के हाथों में फोन आया है, भले ही फोन सस्ता सा हो, बचपन का समय कम हो गया है और दानिया की बात कुछ अलग ही थी, 15 साल की दानिया को वक्त और हालात ने समय से पहले बहुत बड़ा कर दिया था. सांवली रंगत पर तीखे नैननक्श. अपने सुंदर बालों की लंबी सी चोटी बांधती. इस समय तो यूनिफॉर्म का रिबन भी बांध रखा था. छोटा सा सरकारी स्कूल था जहां दानिया बचपन से पढ़ रही थी. उत्तर प्रदेश के कैराना कसबे में ही पैदा हुई थी.

3 साल पहले तक दानिया अपने अब्बू और अम्मी के साथ हंसीखुशी रहती थी पर जब से कोरोना महामारी उस के अब्बू को लील गई तब से जो हो रहा है वह तो न कभी उस ने सोचा होगा, न उस की अम्मी अदरा ने. 35 साल की अदरा पर जैसी मुसीबत आई थी, उस की कल्पना भी कभी कोई स्त्री नहीं करती.

जब भी दानिया उमर को देखती, उस का मन करता, इसे खत्म कर दे, इस का वह हाल करे कि उमर जैसे धर्म के ठेकेदार बुरे कामों से तोबा कर लें पर ऐसा कब होता है. धर्म के ठेकेदारों की चांदी तो हर युग में रही है. अगर फायदा ही न हो तो धर्म की ठेकेदारी ही की क्यों जाए. उसे अपने अब्बू याद आने लगे. बहते आंसुओं को पोंछ वह फिर उमर और अपनी अम्मी के बारे में सोचने लगी. करीब 40 साल का पतलादुबला, शातिर, थोड़ी बड़ी दाढ़ी, सिर पर हमेशा सफेद टोपी, मजहब के उपदेश देने वाला, मीठीमीठी बातें कर के सामने वाले को लूटने वाला उमर अपनी पत्नी शाहीन के साथ आराम से गुजरबसर करता, मसजिद में बैठा रहता.

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