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मुंबई की एक वेश्या
Sarita
|June Second 2025
वेश्या शब्द के साथ ही स्त्री की एक तिरस्कृत छवि दिमाग में घूम जाती है लेकिन मुंबई में मैं जिस वेश्या से मिला उस ने मेरे मन में इस शब्द के मायने ही बदल दिए.
हवाएं जब उम्मीद के विपरीत बहती हैं तो कुछ अप्रत्याशित होता है और जब कुछ अप्रत्याशित होता है तो समय के गर्भ से एक नई कहानी जन्म लेती है. यह कुदरत का दस्तूर है.
मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर एक प्रौढ़ बैठा हुआ था. उस की उम्र 45 के आसपास रही होगी, लेकिन स्वस्थ इतना कि अपनी उम्र से 10 साल छोटा लग रहा था. वह उत्तर भारत के एक गांव जटपुर का रहने वाला था.
उस की सामान्य देह, मध्यम आकार की मूंछ, सफाचट दाढ़ी और उस का ठेठ देहाती लहजा उस उसे मुंबई वालों से कुछ अलग ठहराता था. वैसे तो वह धोतीकुरता या फिर कुरतापाजामा पहनता था लेकिन मुंबई आया तो पैंटशर्ट पहन कर जो उस के शरीर पर ठीक से फब नहीं रहे थे.
हर उत्तर भारतीय जिस ने कभी मुंबई के दर्शन नहीं किए उसे मुंबई एक शानदार आधुनिक शहर ही लगता है. यह मुंबइया फिल्मों का असर है जो मुंबई नगरिया कल्पना में ऐसी नजर आती है. उस की कल्पना में मुंबई की गरीबी, झोंपड़पट्टियां और चालें नजर नहीं आती हैं. हर उत्तर भारतीय के लिए मुंबई एक मायानगरी है. ऐसे ही उस प्रौढ़ रणवीर को भी लगा था. लेकिन मुंबई आ कर उस का यह भ्रम दूर हुआ. उस ने अभी मुंबई के पौश इलाके नहीं देखे थे. वह तो बेचारा पहली बार मुंबई आया था, अपने बेटे को एक शिक्षण संस्थान में छोड़ने जहां उस के बेटे ने एडमिशन लिया था. वह आज गर्व से अपना सीना चौड़ा किए हुए था. उस के लिए यह बड़ी बात थी.
रणवीर अपने बेटे को उस संस्थान में छोड़ कर अब मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन पर बैठा था. उसे मुंबई बिलकुल भी ऐसी नहीं लगी थी जैसी उस ने सोची थी. वह स्टेशन पर बैठा वहां लगे भीमकाय सीलिंग फैन को देख रहा था जिस की पंखुड़ियां बहुत बड़ीबड़ी थीं.
अभी ट्रेन चलने में बहुत समय बाकी था. उसे चाय की तलब लगी. बाहर बारिश की हलकीहलकी फुहारें पड़ रही थीं जबकि इस समय उत्तर भारत गरमी से तप रहा था. मुंबई में तो सुबह से ही बारिश हो रही थी. रणवीर ने सोचा, इन हलकी फुहारों में बाहर निकला जा सकता है और गरम चाय का मजा लिया जा सकता है.
Denne historien er fra June Second 2025-utgaven av Sarita.
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