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काबिलीयत परंपराएं नहीं महिलाओं की पहचान
Sarita
|June Second 2025
सिंदूर और मंगलसूत्र के नाम पर वर्षों से महिलाओं को यह याद दिलाया जाता रहा है कि उन की पहचान उन के पति से जुड़ी हुई है. यह केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक नियंत्रण का तरीका भी है, जिस के चलते महिलाओं की काबिलीयत इन पारंपरिक प्रतीकों के नीचे दबी रह जाती है.
महिलाओं को सम्मान और समान अधिकारों की बातें और प्रवचन देना आजकल का फैशन सा बन गया है. राजनीति हो, समाज हो या धर्म तीनों हमेशा से ही दोगले हैं. ये एक तरफ महिलाओं को देवी सा सम्मान देने, अपने पैरों पर खड़ा होने, ऊंची उड़ान भरने के लिए प्रोत्साहित करते हैं तो दूसरी तरफ परंपराओं का खोखला ज्ञान दे कर नियंत्रण में भी रखने की कोशिश करते हैं. जब भी कोई महिला राजनीति में आती है, समाज में अग्रसर होती है या अपनी स्वतंत्र पहचान बनाना चाहती है तो सब से पहले सवाल उस के पहनावे पर उठते हैं, 'मांग में सिंदूर है या नहीं?', 'गले में मंगलसूत्र क्यों नहीं पहना?', 'उस के रिश्ते क्या हैं?', 'उस का चालचलन कैसा है?'
हमारे समाज और राजनीति में महिलाओं को अकसर उन के योगदान, काबिलीयत और मेहनत से नहीं, बल्कि उन की व्यक्तिगत पहचान, रिश्तों और पारंपरिक प्रतीकों से आंका जाता है.
सिंदूर, मंगलसूत्र, विदेशी मूल या करोड़ों की गर्लफ्रैंड जैसे टैग्स के माध्यमों से महिलाओं की छवि को धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रंग देने का चलन बढ़ता जा रहा है. सवाल यह है कि क्या महिलाओं की पहचान उन के व्यक्तिगत जीवन और धार्मिक प्रतीकों से ही तय होगी ? मतलब, अभी महिलाओं की अपनी पहचान की आजादी की लड़ाई बाकी है.
सिंदूर और मंगलसूत्र : पहचान या नियंत्रण
सिंदूर और मंगलसूत्र समाज और धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए सुहाग की निशानी माने जाते हैं. अब ये निशानियां किस ने और क्यों बनाईं, यह भी एक चर्चा का विषय है क्योंकि क्या ही हो जाता अगर मंगलसूत्र आदमी पहन लेते. खैर, यह भी एक तरह का संदेश है. समाज महिलाओं को कहता है कि बिना शादी के कोई भी स्त्री पूरी नहीं और समय आने पर इन्हीं प्रतीकों से हम (समाज) तुम पर नियंत्रण रखेंगे. यही होता भी है. समयसमय पर इन प्रतीकों को महिलाओं की पहचान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो उन की काबीलियत व व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करता है.

Denne historien er fra June Second 2025-utgaven av Sarita.
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