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सरना धर्म कोड पर गरमाई सियासत
DASTAKTIMES
|October 2023
साल 2021 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 12 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं। झारखंड में आदिवासियों की संख्या एक करोड़ से भी अधिक है। झारखंड की एक बड़ी आबादी सरना धर्म को मानने वाली है। इस प्राचीनतम सरना धर्म का जीता-जागता ग्रंथ स्वयं जल, जंगल, जमीन और प्रकृति है। सरना धर्म की संस्कृति, पूजा पद्धिति, आदर्श और मान्यताएं प्रचलित सभी धर्मों से अलग है।
झारखंड में एक बार फिर सरना धर्म कोड की मांग को लेकर सियासत गरमा गयी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आदिवासियों के सरना धर्म कोड की मांग पर जल्द और सकारात्मक फैसला करने का आग्रह किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखा है कि देश का आदिवासी समुदाय पिछले कई वर्षों से धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में प्रकृति पूजक आदिवासी/सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्षरत है। साथ ही पूरा विश्वास जताया है कि जिस प्रकार प्रधानमंत्री समाज के वंचित वर्गों के कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, उसी प्रकार इस देश के आदिवासी समुदाय के समेकित विकास के लिए पृथक आदिवासी/सरना धर्मकोड का प्रावधान सुनिश्चित करेंगे।
आदिवासियों के धार्मिक अस्तित्व की रक्षा एक गंभीर सवाल
मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा कि आदिवासी समाज के लोग प्राचीन परंपराओं एवं प्रकृति के उपासक हैं। पेड़ों, पहाड़ों की पूजा और जंगलों को संरक्षण देने को ही धर्म मानते हैं। साल 2021 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 12 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं। झारखंड में आदिवासियों की संख्या एक करोड़ से भी अधिक है। झारखंड की एक बड़ी आबादी सरना धर्म को मानने वाली है। इस प्राचीनतम सरना धर्म का जीता-जागता ग्रंथ स्वयं जल, जंगल, जमीन और प्रकृति है। सरना धर्म की संस्कृति, पूजा पद्धिति, आदर्श और मान्यताएं प्रचलित सभी धर्मों से अलग है।
Denne historien er fra October 2023-utgaven av DASTAKTIMES.
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