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आम चुनाव से पूर्व बीजेपी करेगी मुसलमानों का लिटमस टेस्ट
DASTAKTIMES
|August 2023
बीजेपी आलाकमान 'समान नागरिक संहिता' और एंटी मुस्लिम छवि से 2024 तक उबरने के लिए पसमांदा मुसलमानों के सहारे है। इसी साल 5 राज्यों में होने वाले चुनावों में इसका लिटमस टेस्ट भी हो जाएगा कि बीजेपी सपा-बसपा के वोटरों में सेंध मार पाएगी या नहीं। सैफी, अंसारी, अल्वी, कुरैशी, मंसूरी, इदरीसी, सलमानी, रायन समुदाय अधिकतर पसमांदा ही हैं।

भारतीय जनता पार्टी अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव को 85 बनाम 15 की सियासत से आगे बढ़कर देखने लगी है, यानी वह अपने ऊपर लगे हिन्दूवादी पार्टी का तमगा उतार कर फेंक चाहती है। अब उसकी सोच के दायरे में 15 फीसदी मुसलमान भी शामिल हो गए हैं। यह बीजेपी की काफी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। राजनीति के अखाड़े में वह अपना पॉव 'अंगद' की तरह जमाना चाहती है। एक समय था जब बीजेपी को ब्राह्मण-बनिया और अगड़ों की पार्टी समझा जाता था। दलित-पिछड़े उससे दूर रहते थे। मुसलमान तो बीजेपी का कट्टर विरोधी हुआ करता ही था। बाद में बीजेपी ने अपना दायरा बढ़ाया और कलांतर में राम मंदिर आंदोलन के सहारे पूरे हिन्दू समाज को संगठित करने का काम किया। इसी के साथ ब्राह्मण-बनिया वाली बीजेपी हिन्दूवादी पार्टी बन गई। इसका फायदा यह हुआ कि कई राज्यों में उसकी सरकारें बनीं। केन्द्र में भी बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से निकले और बीजेपी के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी देश के पहले संघी विचारधारा के प्रधानमंत्री बने। बाद में बीजेपी का औरा और बढ़ा, लेकिन जातिवादी के नाम पर वोटों का बिखराव बीजेपी आलाकमान लम्बे समय तक नहीं रोक पाए। क्योंकि समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव, बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती लगातार पिछड़ों और दलितों को बीजेपी के खिलाफ भड़काने का काम करते रहे। इसके बाद यही काम आज अखिलेश यादव जातीय गणना की मांग करके आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन इसमें इन्हें कोई खास सफलता नहीं मिल रही है। बीजेपी ने एक मजबूत वोट बैंक खड़ा कर लिया है और अब इसे और मजबूत करने के लिए बीजेपी अपनी मुस्लिम विरोधी छवि तोड़ने का प्रयास कर रही है।
Denne historien er fra August 2023-utgaven av DASTAKTIMES.
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