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नीतीश कुमार का दांव

DASTAKTIMES

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July 2023

नीतीश कुमार अपने राजनीतिक जीवन के उस मोड़ पर आज खड़े हैं, जहां से या तो उनका कद बहुत ऊपर उठेगा, या फिर उनकी सियासत का अंत होगा। भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने का उनका काम कुछ ऐसा ही है। सभी विपक्षी दल मिलकर भाजपा को केंद्र की सत्ता से बाहर करने में सफल रहे तो निश्चित ही इसका बहुत सा श्रेय उन्हें मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो...।

- दिलीप कुमार

नीतीश कुमार का दांव

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के विरोध में 15 दलों को एक मंच पर साथ लाकर अपनी ताकत का परिचय दिया। उन्होंने जो काम किया, उसकी तारीफ महाबैठक में साथ आए सभी दलों ने की। इससे बिहार एक बार फिर देश को बदलाव की ओर ले जाता दिख रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह जेपी ने कांग्रेस के खिलाफ विपक्षियों को एकजुट किया था। हालांकि तबके और अबके हालात में बहुत अंतर है। आपातकाल के चलते जनता में कांग्रेस के खिलाफ काफी आक्रोश था और उसका लाभ विपक्षियों को मिला था। साथ ही तब लगभग सभी विपक्षी एकजुट हुए थे। इस बार ऐसा नहीं है। यही कारण है कि भाजपा के खिलाफ इस महागठबंधन को सफलता मिलने में संदेह है। आप के अलग होने से यह दिख भी रहा है कि गठबंधन में दलों के बीच कितने मतभेद हैं। फिर सीटों के बंटवारे से लेकर प्रधानमंत्री का चेहरा चुनने तक कितनी अड़चनें होंगी, जो उन्हें केंद्र की सत्ता तक पहुंचने से रोकेंगी। एक बात और कि नीतीश की इच्छा महाबैठक में पूरी नहीं हो सकी है। आशा थी कि उन्हें विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की कोशिश के चलते उन्हें संयोजक का पद मिलेगा, उनका कद बढ़ेगा। भाजपा के विरोध में दलों को एकजुट करने की उनकी मेहनत को सभी समझेंगे, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में उन्हें संयोजक नहीं घोषित किया गया। अब उनकी मुहिम को कोई और हाथ में लेता दिखा रहा है। अगली बैठक का स्थान बदल शिमला से बेंगलुरू होने की घोषणा शरद पवार का करना कुछ ऐसा ही संकेत तो नहीं दे रहा है।

हाथ से खिसकती दिख रही बागडोर

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उत्तराखंडः 18 हजार शिक्षकों पर संकट की तलवार

पूरे देश में टीईटी को अनिवार्य बनाने को लेकर जहां शिक्षकों में रोष और आक्रोश है, वहीं उससे उत्तराखंड भी अछूता नहीं हैं। वहां विभिन्न स्कूलों में सेवारत 18 हजार शिक्षकों पर संकट की तलवार लटक रही है।

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मानवीय गरिमा का लेखक

इस वर्ष साहित्य के प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से हंगरी लेखक लास्जलो क्रास्जनाहोरकाई को उनके उपन्यास 'हर्ट 07769' के लिए नवाज़ा गया है। उन्हें यह सम्मान उनकी दूरदर्शी कृति के लिए मिला। उनकी रचनाएं, विशेषकर 'सियोबो देयर बिलो', चीन और जापान की यात्राओं से प्रेरित हैं, जो नश्वरता और सौंदर्य के गहरे विचारों को उजागर करती हैं। लास्ज़लो को आधुनिक साहित्य के सबसे कठिन, लेकिन गहराई वाले लेखकों में शुमार किया जाता है। उनकी लेखनशैली लंबी, विचारपूर्ण और दार्शनिक वाक्यों के लिए मशहूर है। कई बार एक वाक्य पूरी किताब जितने लंबे हो जाते हैं। उनकी भाषा में निराशा, हास्य और अस्तित्व की बेचैनी का मिलीजुला रूप नज़र आता है। पढ़िए, लास्जलो क्रास्जनाहोरकार्ड की रचनाशैली और उनकी कुछ रचनाओं के बारे में

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प्रशांत किशोर की पहली अग्निपरीक्षा

जब चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने पिछले साल अक्टूबर में 200 दिनों की पदयात्रा के बाद जन सुराज पार्टी की शुरुआत की थी, तब उन्होंने खुद को बिहार की जड़ होती राजनीति में बदलाव का प्रतीक बताया। उन्होंने जमीनी स्तर पर लोगों को इकट्ठा करने और युवा एनर्जी से जुड़े एक मूवमेंट के साथ नीतीश कुमार की जेडी (यू) और लालू प्रसाद की आरजेडी की गहरी एकाधिकार वाली सरकार को चुनौती देने का वादा किया। टिकट वितरण के बाद पार्टी में विद्रोह, आरोप-प्रत्यारोप और पलायन ने पीके के 'सुधार अभियान' को झटका दिया है। जिन युवाओं और पेशेवरों ने बदलाव के सपने के साथ इस आंदोलन को खड़ा किया, वे अब आरोप लगा रहे हैं कि 'टिकट पैसों में बिके' और 'निर्णय ऊपर से थोपा गया।'

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युवा हाथों में उत्तराखंड

2007 के बाद राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का ऐसा दौर शुरू हुआ कि उत्तराखंड विकास की वह रफ्तार नहीं पकड़ पाया जिसकी इस राज्य को सबसे ज्यादा ज़रूरत थी। 2014 में जब केंद्र में पहली बार मोदी सरकार बनी तब उत्तराखंड की सत्ता कांग्रेस के हाथ में थी। उत्तराखंड में मार्च 2017 में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आई। लेकिन राज्य में बीजेपी अंदरूनी राजनीति और अंतर्कलह का शिकार हो गई। तब पहली बार बीजेपी हाईकमान को लगा कि राजनीतिक स्थिरता के अलावा इस नए और प्रगितशील राज्य को एक युवा और ऊर्जावान नेतृत्व की ज़रूरत है जो ज़रूरत पड़ने पर सख्त कदम उठाने से न चूके। और बीजेपी हाईकमान ने उत्तराखंड की कमान युवा नेता पुष्कर सिंह धामी के हाथ में सौंप दी।

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