कोशिश गोल्ड - मुक्त
जलवायु परिवर्तन से निपटने को कितने तैयार हैं देश
DASTAKTIMES
|January 2024
वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना है। इसके लिए जीवाश्म ईंधन से दूरी बनाने की बात पहली बार की गई है जिससे वर्ष 2050 तक 'शुद्ध शून्य' लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। दरअसल अभी तक कई देश जो जीवाश्म ईंधन पर बड़े पैमाने पर निर्भर रहे हैं उन्होंने जीवाश्म ईंधन की कटौती के लक्ष्य को गंभीरता से लिया नही था।
जलवायु परिवर्तन, आज ऐसी ज्वलंत समस्या बन चुका है जिससे विश्व का कोई देश अछूता नहीं है। हाल ही में दुबई में हुई कॉप-28 की बैठक में भी यह मुद्दा छाया रहा। वैश्विक समुदाय ने इस चुनौती से निपटने का सामूहिक संकल्प लिया है। इस कड़ी में सभी देशों ने कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का फैसला किया है। मगर जीवांश ईंधन पर निर्भर छोटे व गरीब देशों के लिए कार्बन उत्सर्जन को शून्य कर पाना बेहद चुनौतीपूर्ण रहेगा। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए गंभीर दिखने वाले विकसित देश क्या इस संकट के समय छोटे व गरीब देशों की मदद को बड़ी पहल करेंगे?
कॉप-28 बैठकों में लिए गए कुछ महत्वपूर्ण फैसले सदस्य देशों पर वैधानिक रूप बाध्यकारी होंगे या नहीं और सबसे प्रमुख मुद्दा जिस पर नजर रहती हैं वो है जलवायु वित्तीयन (क्लाइमेट फाइनेंस) का प्रश्न। खासकर विकासशील देशों, निर्धन देशों. द्वीपीय देशों में यह जिज्ञासा ज्यादा देखी जाती है कि विकसित देश अनुकूलन और कटौती रणनीति के तहत उन्हें कितनी वित्तीय सहायता हस्तांतरित करने के लिए सहमत हुए हैं। इन्हीं प्रश्नों के साथ ही इस बार यूएनएफसीसीसी के कॉप-28 का आयोजन 30 नवंबर 2023 से 13 दिसंबर 2023 तक दुबई में हुआ। कॉप-28 की बैठक पूरी होने पर दुबई डिक्लेरेशन में कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का उल्लेख किया गया था।
कॉप-28 के मुख्य निष्कर्ष
यह कहानी DASTAKTIMES के January 2024 संस्करण से ली गई है।
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