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इस अंक में

Dastak March Edition

लठैत कक्का के कुंवारे गाल....

ल 'म्पटगंज गांव के लठैत कक्का ऐसे शख्स थे जिनके गाल निपट कुंवारे थे। होली के जाने कितने त्योहार आये और गए, मजाल कि मुई रंग की एक लकीर भी उनके गालों पर किसी ने खींची हो। अगर कोई कोशिश भी करता तो वह उसके माथे पर चिंता की लकीरें ज़रूर खींच देते थे। ऐसा माना जाता था कि इलाके में कोई रणबांकुरा पैदा ही नहीं हुआ जो उनको रंगनशी कर सके। कारण यह था कि एक तो वह पुराने जमाने के पहलवान रहे, ऊपर से 6 फिट का मोटा लट्ठ लेकर चलते थे। वह लट्ठ को 360 डिग्री पर भांजना भी जानते थे। अब कौन उनको लाल करने के चक्कर में अपनी खोपड़ी रंगवाये। लठैत कक्का रंगों से इतनी नफरत करते थे कि अगर कहीं रंग बरसे भीगे चुनरवाली बजता तो वह लट्ठ बजाने लगते...।

लठैत कक्का के कुंवारे गाल....14

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