हिसार के जिला सूचना प्रौद्योगिकी सोसाइटी के कार्यालय के कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा जालसाजी, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बजरंग ने आरटीआई आवेदन शुल्क का भुगतान करने से बचने के लिए अपने रिश्तेदार संदीप कुमार के जाली हस्ताक्षर किए थे, जिनके पास गरीबी रेखा से नीचे का कार्ड था। यह कार्ड होने पर शुल्क अदा नहीं करना पड़ता है।
हाईकोर्ट ने प्राथमिकी रद्द कर दी और कहा, 'आरटीआई अधिनियम या इसके तहत बनाए गए नियमों तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि आरटीआई के अंतर्गत सूचना मांगने वाले आवेदक के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट की जाए। शिकायतकर्ता, जो डीआईटीएस के तहत काम करने वाला एक अधिकारी है, को संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा का कोई नुकसान नहीं हुआ है। इसलिए, पुलिस के पास याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का कोई अधिकार नहीं था। कोर्ट ने कहा कि पुलिस रिपोर्ट संदीप कुमार द्वारा दायर की जानी चाहिए थी, जिसके हस्ताक्षर बजरंग द्वारा सूचना के अधिकार के आवेदन पर जाली किए थे, बल्कि इस प्रकरण में संदीप कुमार इस आधार पर प्राथमिकी को रद्द करने की मांग कर रहे हैं कि उन्होंने आरटीआई अधिनियम के तहत आवेदन दायर करके केवल सूचना मांगी थी और आरटीआई कार्यालय के अधिकारियों ने खाली कागजों और एक हलफनामे पर उनके हस्ताक्षर प्राप्त किए थे। जिनका इस्तेमाल उनके द्वारा याचिकाकर्ताओं बजरंग के खिलाफ किया गया था।
हाईकोर्ट बजरंग कुमार, संदीप कुमार और मदन लाल के खिलाफ आईपीसी की धारा 120-बी, 420, 467, 468, 471 के तहत धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश के लिए दर्ज प्राथमिकी रद्द करने के लिए दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। प्राथमिकी के अनुसार बजरंग नाम के एक व्यक्ति ने आवेदन शुल्क का भुगतान करने से बचने के लिए एक आरटीआई आवेदन में अपने रिश्तेदार संदीप कुमार के फर्जी हस्ताक्षर किए, जिसके पास गरीबी रेखा से नीचे का कार्ड है। आईटीएस कार्यालय में एक कंप्यूटर ऑपरेटर ने अनुरोध किया कि आरोपी के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए क्योंकि आरटीआई आवेदन दुर्भावनापूर्ण इरादे से दायर किया गया था।
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