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पलायन की त्रासदी क्यों झेल रहे हैं कुछ खास राज्य
Sarita
|November Second 2025
बिहार के विधानसभा चुनाव में हर बार की तरह इस बार भी पलायन का मुद्दा गायब रहा.
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सभी दलों ने गाहेबगाहे इस पर बात तो की मगर इस मुद्दे को जोरशोर से किसी दल ने अपनी मुहिम का हिस्सा नहीं बनाया. पलायन आज की समस्या नहीं बल्कि अंगरेजी हुकूमत के समय से है, जो आज भी ठीक नहीं हो पाई. इस समस्या की जड़ में सिर्फ बेरोजगारी नहीं है. यहां पेश है पलायन के पीछे की हकीकत की पड़ताल करती एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट.
बिहार का नाम असल में बौद्ध विहारों से निकला हुआ शब्द है. सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार सब से अधिक बिहार में किया था. विहार, बौद्ध मठों को कहा जाता था. उस समय बिहार राज्य बौद्ध धर्म का केंद्र था. इसी वजह से विहार नाम प्रचलन में आया, जो समय के साथ बदल कर बिहार बन गया. समय के साथ बिहार में बहुतकुछ बदला लेकिन पलायन की जो समस्या 1830 से शुरू हुई वह अभी तक जारी है. पहले गिरमिटिया मजदूर मौरिशस, फिजी, गुयाना कमाई के लिए गए थे और आज लोग दिल्ली, मुंबई, सऊदी अरब और दुबई वगैरह जा रहे हैं.
बिहार को बुद्ध और महावीर की धरती कहा जाता है. सम्राट अशोक ने इसी भूमि से पूरे भारत को जोड़ा था. मौर्यकाल से ले कर हर्षवर्धन के समय तक इन हजार वर्षों के बीच भारत की राजनीति के केंद्र में बिहार ही रहा. मुगलकाल में भी बिहार की सामाजिक, आर्थिक और प्रशासनिक स्थिति मजबूत रही. इतने उन्नत और समृद्ध इतिहास के बावजूद बिहार आज सब से बीमार राज्य कैसे बन गया ? इस से भी अहम बात यह कि पलायन बिहार से ही ज्यादा क्यों होता है? इस समस्या को समझने के लिए बिहार के अतीत से होते वर्तमान तक का सफर करें तो समझ आता है कि पलायन हमेशा से ही बिहार में रहने वालों की नियति रहा है.
पलायन का मुद्दा बहुत गुत्थमगुत्था सा है. आज देश का कोई भी राज्य या शहर ऐसा नहीं है जहां बिहार के लोग न हों. बेरोजगारी देश के सभी राज्यों में है और अवसरों की तलाश में सभी राज्यों के लोग अपने राज्य को छोड़ कर इधर से उधर जाते हैं. यही कारण है कि नौर्थईस्ट के लोग साउथ में मिल जाएंगे और साउथ के लोग नौर्थईस्ट में. लेकिन बिहार की बात अलग है जो हर मोर्चे पर पिछड़ा हुआ है.
Esta historia es de la edición November Second 2025 de Sarita.
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