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अब जनजाति पहचान की जंग
DASTAKTIMES
|October 2025
कुड़मी समाज, आदिवासी दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर सड़कों पर है जबकि इस मांग के खिलाफ तमाम आदिवासी संगठन एकजुट हो गए हैं
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झारखंड में अनायास एक मुद्दा गरमा गया है। यह मुद्दा है कुड़मी समाज को आदिवासी का दर्जा देने की मांग का। कुड़मी समाज ने झारखंड, बंगाल और ओडिशा में बीते महीने 'रेल टेका, डहर छेका' अभियान के तहत रेल पटरियों पर बैठकर आंदोलन किया और रेल परिचालन ठप कर दिया। लंबे अरसे के बाद यह समाज आक्रामक तेवर के साथ सड़क पर उतरा है। रांची से वरिष्ठ पत्रकार उदय चौहान की रिपोर्ट।
कुड़मी समाज को आदिवासी का दर्जा देने की मांग का कड़ा विरोध करते हुए विभिन्न आदिवासी संगठनों के लोग सड़कों पर हजारों की तादाद में उतर आए हैं। कई दिनों से जन प्रदर्शनों का सिलसिला लगातार जारी है। सोशल मीडिया पर घमासान मचा हुआ है। सभी अपने-अपने पक्ष को लेकर दलीलों के साथ-साथ एक-दूसरे के विरोध में टीका-टिप्पणियों वाली पोस्ट कर रहे हैं। आदिवासी बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले आदिवासी नेताओं ने राज्यपाल से मिलकर कुड़मी समाज की मांग को बेबुनियाद बताया। वहीं कुड़मी समाज ने प्रेस कांफ्रेंस कर उनके सवालों का जवाब दिया है। उन्होंने दावा किया है कि 1885 में हुए प्रथम एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वे में छोटा नागपुर के पठार में 13 जनजातियों को चिन्हित किया गया था, इसमें कुड़मी भी शामिल थे। लेकिन आदिवासी समाज के लोग सोशियोलॉजी का हवाला देकर मैटर को कंफ्यूज कर बवाल खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुड़मी समाज के नेता दीपक महतो के मुताबिक, कुछ आदिवासी नेता भ्रम फैला रहे हैं कि एसटी का दर्जा मिलने पर कुड़मी समाज के लोग आदिवासियों की जमीन हड़प लेंगे। उन्होंने कहा कि ऐसा कभी हो ही नहीं सकता क्योंकि जमीन की खरीद बिक्री पर सीएनटी एक्ट लागू है। मुंडा ट्राइब की जमीन को सिर्फ मुंडा ही खरीद सकता है संथाल नहीं। फिर कुड़मी कैसे जमीन खरीद लेगा?
कुड़मी के एसटी बनने पर शिड्यूल एरिया बढ़ेगाकुड़मी नेता ने कहा कि उनकी मांग को सरकारी नौकरी के छीने जाने के डर से जोड़कर पेश किया जा रहा है। यह सरासर गलत है। कुड़मी को एसटी का दर्जा मिलने पर 5वीं अनुसूची वाले क्षेत्र में इजाफा होगा क्योंकि कुड़मी की जमीन सीएनटी के दायरे में आती है। इससे किसी की नौकरी की हकमारी नहीं होगी।
Esta historia es de la edición October 2025 de DASTAKTIMES.
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