सावन, सोमवार और श्रद्धा
Sadhana Path
|July 2025
सावन का हर सोमवार जैसे शिव के नाम समर्पित हो जाता है। वर्षा की फुहारें पड़ते ही किसान फसलों के लहलहाने का सपना देखते हैं तो शिव भक्त भोलेनाथ को मनाने का। सावन की महत्ता को आइए जानते हैं इस लेख से।
सावन मास में भगवान 'आशुतोष शंकर' की पूजा का विशेष महत्त्व है। सावन मास में जो प्रतिदिन पूजन न कर सके उसे सोमवार को शिव पूजा, व्रत आदि अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए क्योंकि सोमवार 'भगवान शिव' का प्रिय दिन है। सावन सोमवार की महत्ता को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता। सावन में पार्थिव शिव-पूजा का विशेष महत्त्व है।
अतः प्रतिदिन अथवा प्रति सोमवार तथा प्रदोष को शिव-पूजा या पार्थिव-पूजा को अवश्य करना चाहिए। इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र, अथवा अतिरुद्र का पाठ कराने का विधान है। सावन मास में जितने भी सोमवार पड़ते हैं उन सब में शिव जी का व्रत किया जाता है। इस व्रत में प्रातः गंगा स्नान अन्यथा किसी पवित्र नदी या सरोवर में अथवा घर में ही स्नान करके शिव मन्दिर में जाकर स्थापित शिवलिंग का या अपने घर में पार्थिव मूर्ति बनाकर यथाविधि षोडशोपचार-पूजन किया जाता है।
धर्म में स्वाध्याय
का महत्त्व
यथा संभव विद्वान ब्राह्मण से रुद्राभिषेक कराना चाहिए। इस व्रत में श्रावण माहात्म्य एवं श्री शिवपुराण की कथा सुनने का विशेष महत्त्व है। पूजन के पश्चात ब्राह्मण-भोजन कराकर एक ही बार भोजन करने का विधान है। भगवान शिव का यह व्रत सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला है। श्रावणी पर्व अर्थात् स्वाध्याय पर्व, वैदिक धर्म में स्वाध्याय की सर्वोपरि प्रधानता और महिमा का बार-बार वर्णन किया गया है। चारों वर्णों में प्रथम वर्ण ब्राह्मण का मुख्य कर्तव्य स्वाध्याय ही है। क्षत्रिय एवं वैश्य की भी द्विजन्मा संज्ञा स्वाध्याय से होती है। स्वाध्याय से यह शरीर ब्रह्म प्राप्ति के योग्य बन जाता है। इसलिए इसमें प्रवृत्त रहने के लिए कहा गया है।
Esta historia es de la edición July 2025 de Sadhana Path.
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