घरेलू हिंसा की गहरी होती जड़ें
Sadhana Path|March 2024
हम भले ही समाज के अच्छे पहलुओं की चर्चा कर लें, लेकिन महिलाओं के प्रति आम सामाजिक नजरिया बहुत सकारात्मक नहीं है। बल्कि घरेलू हिंसा तक को कई बार सहज और सामाजिक चलन का हिस्सा मानकर इसकी अनदेखी करके परिवार के हित में महिलाओं को समझौता कर लेने की सलाह भी दी जाती है।
ललित गर्ग
घरेलू हिंसा की गहरी होती जड़ें

कोरोना के संक्रमण पर काबू पाने के लिए लगाई गई पूर्णबंदी के दौर में व्यापक पैमाने पर लोगों को रोजगार और रोजीरोटी से वंचित होना पड़ा और इसके साथसाथ घर में कैद की स्थिति में असंतुलन, आक्रामकता एवं तनावपूर्ण रहने की नौबत आई। जाहिर है, यह दोतरफा दबाव की स्थिति थी, जिसने जीवन में अनेकानेक बदलावों के साथ व्यवहार में निराशा, हताशा और हिंसा की मनोवृत्ति को बढ़ाया। इस दौरान महिलाओं एवं बच्चों से मारपीट, उनकी प्रताड़ना, अपमान आदि की घटनाएं बढ़ीं। पति-पत्नी और पूरा परिवार लम्बे समय तक घर के अंदर रहने को मजबूर हुआ, जिससे जीवन में ऊब, चिड़चिडापन एवं वैचारिक टकराव कुछ अधिक तीखे हुए और महिलाओं एवं बच्चों के साथ मारपीट की घटनाएं बढ़ीं।

इन नये बने त्रासद हालातों की पड़ताल करने के लिये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ओर से देश के बाईस राज्यों और केंद्र प्रदेशों में एक अध्ययन कराया गया जिसमें घरेलू हिंसा के बीच महिलाओं की मौजूदा स्थिति को लेकर जो तस्वीर उभरी है, वह चिंताजनक है और हमारे अब तक के सामाजिक विकास पर सवालिया निशान है। महिलाओं की आजादी छीनने की कोशिशें और उससे जुड़ी हिंसक एवं त्रासदीपूर्ण घटनाओं ने बार-बार हम सबको शर्मसार किया है। भारत के विकास की गाथा पर यह नया अध्ययन किसी तमाचे से कम नहीं है। इस व्यापक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक कई राज्यों में तीस फीसद से ज्यादा महिलाएं अपने पति द्वारा शारीरिक और यौन हिंसा की शिकार हुई हैं।

सबसे बुरी दशा कर्नाटक, असम, मिजोरम, तेलंगाना और बिहार में है। कर्नाटक में पीड़ित महिलाओं की तादाद करीब पैंतालीस फीसद और बिहार में चालीस फीसद है। दूसरे राज्यों में भी स्थिति इससे बहुत अलग नहीं है। कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ऐसी घटनाओं में तेज इजाफा होने की आशंकाएं भावी पारिवारिक संरचना के लिये चिन्ताजनक है। संयुक्त राष्ट्र भी कोरोना महाव्याधि के दौर में महिलाओं और लड़कियों के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में 'भयावह बढ़ोतरी' दर्ज किये जाने पर चिंता जता चुका है। यह बेहद अफसोसजनक है कि जिस महामारी की चुनौतियों से उपजी परिस्थितियों से पुरुषों और महिलाओं को बराबर स्तर पर जूझना पड़ रहा है, उसमें महिलाओं को इसकी दोहरी मार झेलनी पड़ी है।

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