विपक्ष के नेताओं में ईडी और सीबीआई का खौफ कुछ ज्यादा हीं है, भले ही वे अपने राज्य में सत्ता की शीर्ष कुरसी पर ही क्यों न बैठे हों. भ्रष्टाचार का आरोप लगते ही वे इन के कड़े कानून की जद में आ जाते हैं. इसे ले कर सत्ताधारी राजनेता अकसर कहते हैं कि कानून अपना काम करता है. पीएम मोदी तक कह चुके हैं, 'ईडी अच्छा काम कर रही है.'
किंतु एक सच यह भी है कि बीते 10 सालों में इन की जद में आए कुल 23 दागी नेताओं के बीजेपी में शामिल होते ही उन के दाग धुल गए. उन के राजनीतिक कदम सक्रिय हो गए.
भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई में पूरे एक दशक बाद 2014 में राजग की फिर से सरकार बन गई थी. उन्हीं दिनों पश्चिम बंगाल में चिटफंड कंपनी शारदा ग्रुप का मामला गर्म था.
पश्चिम बंगाल और असम के दरजनों राजनेता फंसे हुए थे. जांच का काम सीबीआई को सौंप दिया गया था. उन्हीं में कांग्रेसी नेता हिमंत बिस्वा शर्मा भी थे. वह असम की तरुण गोगोई सरकार में सब से प्रभावशाली मंत्री हुआ करते थे. साल 2011 के विधानसभा चुनाव के बाद हिमंत बिस्वा शर्मा और गोगोई के रिश्तों में खटास आ गई थी.
उन्होंने जुलाई 2014 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया, लेकिन तब तक उन का नाम शारदा चिट फंड घोटाले से जुड़ चुका था. राजनीतिक करिअर में आई बाधाएं और भ्रष्टाचार के आरोप को ले कर बिस्वा काफी परेशान हो गए थे.
अगस्त 2014 में वह गुवाहाटी स्थित आवास और उन के चैनल 'न्यूज लाइव' के दफ्तर पर सीबीआई की छापेमारी हुई. इस चैनल की मालिक उन की पत्नी रिंकी भुयन शर्मा हैं. नवंबर 2014 को हिमंत बिस्वा शर्मा से सीबीआई के कोलकाता दफ्तर में घंटों तक पूछताछ की गई.
उन दिनों की मीडिया रिपोर्ट में किए गए दावे के मुताबिक हिमंता बिस्वा शर्मा पर शारदा ग्रुप के मालिक और इस मामले में मुख्य अभियुक्त सुदीप्तो सेन से हर महीने 20 लाख रुपए लेने का आरोप लग चुका था. ऐसा उन्होंने अपना कारोबार ठीक से चलाने के लिए किया था.
जनवरी 2015 में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने जब सारे चिट फंड के केस की जांच सीबीआई को सौंपने के आदेश दे दिए, तब वह उसी साल अगस्त में बीजेपी में शामिल हो गए.
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