बात 15 मार्च, 2024 की है. जब देश के सर्वोच्च न्यायालय के 5 न्यायमूर्तियों डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी. आर. गवई, जस्टिस जे. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने इलेक्टोरल बौंड पर केंद्रीय चुनाव आयोग और भारतीय स्टेट बैंक को आड़े हाथों लेते हुए फटकार लगाई थी.
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने चुनाव आयोग से इलेक्टोरल बौंड के यूनिक (अल्फान्यूमेरिक ) नंबर की जानकारी देने को कहा था. अदालत ने 2 दिनों की मोहलत देते हुए 17 मार्च तक का समय दिया. वहीं यूनिक नंबर न बताने को गंभीरता से लेते हुए भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को नोटिस जारी किया.
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि एसबीआई ने बौंड नंबर जारी नहीं किए, जबकि उसे इस से जुड़ी सभी सूचनाएं देनी थीं.
चूंकि मामला गंभीर था, इसलिए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की कड़ी फटकार को गंभीरता से लेते हुए भारतीय स्टेट बैंक की ओर से पेश हुए वकील संजय कपूर से अदालत ने कहा कि एसबीआई को 17 मार्च, 2024 तक इस नोटिस का जवाब देना है.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसबीआई इलेक्टोरल बौंड के खरीदारों और उसे भुनाने वाली पार्टियों की जानकारियां दीं, लेकिन यूनिक नंबर नहीं दिया, जिस से ये पता लगा पाना और मिलान कर पाना मुश्किल हो गया था कि किस कंपनी या किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया.
एसबीआई ने यूनिक नंबर के मिलान सहित जानकारी देने के लिए 30 जून का समय मांगा था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. गौरतलब है कि अगर ये यूनिक नंबर आ जाए तो कोई भी पता कर सकता है कि इन कंपनियों ने किस राजनीतिक दल को चंदा दिया.
आखिर सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरल बौंड यानी चुनावी चंदे को ले कर इतनी सख्त क्यों हुई? आखिर अदालत को किस बात की आशंका थी, जिस के चलते इस चुनावी चंदे को असंवैधानिक घोषित किया?
यूनिक नंबर की सारी जानकारी देने के लिए भारतीय स्टेट बैंक ने 30 जून, 2024 तक का समय मांगा था. अदालत ने उसे मोहलत देने से इंकार किया और उस की याचिका भी खारिज कर दी, क्योंकि इन सब को जानने के लिए हमें कुछ साल पहले जाना होगा, जहां इलेक्टोरल बौंड का उदय हुआ था. आइए, पढ़ते हैं इस ज्वलंत मुद्दे को-
क्या होता है इलेक्टोरल बौंड
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