भीकू और जयपाल बचपन के गहरे दोस्त थे. दोनों की शादी हो गई थी. इस के बाद भी उन की दोस्ती कायम रही. लोग उन्हें लंगोटिया यार कहते थे. बात 13 नवंबर, 2021 की है. सुबहसुबह भीकू ने जयपाल के दरवाजे पर दस्तक दी तो अंदर से जयपाल का अलसाया हुई आवाज आई, "सुबहसुबह कौन आ गया?"
"मैं भीकू हूं जयपाल."
"ठहरो, मैं दरवाजा खोलता हूं." जयपाल ने कहा, फिर रजाई से निकल कर उस ने दरवाजा खोला. जयपाल अधेड़ उम्र का था. भीकू को देखते ही जयपाल बोला, 'सुबहसुबह कैसे आना हुआ भीकू.. सब ठीक तो है न?"
"सब ठीक है यार. आज छुट्टी की है मैं ने, तुम कई दिनों से मछली पकड़ने चलने को कह रहे थे, सोचा आज तुम्हारी इच्छा पूरी कर देता हूं, पहले एक कप चाय पिलाओ, फिर चलने की तैयारी करो."
"बैठो, मैं फ्रैश हो कर तुम्हारे लिए चाय बनाता हूं."
"क्यों, क्या तुम ने चाय पीनी छोड़ दी है?" भीकू ने हैरानी से पूछा.
"नहीं दोस्त, अब तुम्हारे लिए चाय बनाऊंगा तो एक कप मैं भी पी लूंगा."
भीकू हंस पड़ा, "मान गया तुम्हें, तुम्हारी कंजूसी की आदत कभी जाएगी नहीं."
जयपाल मुसकराता हुआ फ्रैश होने चला गया. फ्रैश होने के बाद उस ने चाय बनाई.
चाय पीने के बाद दोनों मछली पकड़ने का कांटा ले कर छाता नहर की तरफ पैदल ही चल पड़े. जयपाल मथुरा जिला के छाता कस्बे की जिस कालोनी में रहता था, वहां से छाता नहर थोड़ी दूरी पर ही थी. कुछ ही देर में वह सड़क रास्ते से छाता नहर पर पहुंच गए.
सड़क छोड़ कर दोनों नहर के किनारे की कच्ची पगडंडी से होते हुए एक जगह पहुंच कर रुक गए. यहां के कुछ हिस्से पर झाड़ियां नहीं थीं. अकसर दोनों यहां मछली पकड़ने आते रहते थे. उन्होंने नहर के किनारे फैली झाड़ियों को इस जगह से हटा कर अपने बैठने की जगह बना ली थी. दोनों किनारे पर बैठ गए और कांटा तैयार कर के दोनों ने अपने कांटे नहर के पानी में डाल दिए.
काफी देर हो गई. उन के कांटों में मछली नहीं फंसी.
"सुबहसुबह तुम्हारी मनहूस सूरत देखी है मैं ने. आज एक भी मछली कांटे में नहीं फंसेगी." जयपाल खीझ कर बोला.
“फंसेगी यार, धीरज रख कर बैठ देख कांटा हिल रहा है, शायद कोई मछली चारे में मुंह मार रही है."
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