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रबी की फसलों में रोग व्याधियों की पहचान एवं प्रबंधन

Modern Kheti - Hindi

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15th July 2025

अक्सर पौधों में बीमारियों का शुरुआती लक्षणों के आधार पर पता नहीं लगता है कि फसल में कौन सी बीमारी है। वह बैक्टीरिया जनित है, वायरस जनित है या फिर यह किसी अन्य कारण से है।

- डॉ. डी.एल. यादव, निकिता कुमारी एवं निष्ठा मीणा कृषि अनुसंधान केन्द्र, उम्मेदगंज, अनुसंधान निदेशालय, कृषि विश्वविद्यालय, कोटा

रबी की फसलों में रोग व्याधियों की पहचान एवं प्रबंधन

कभी-कभी किसी आवश्यक तत्व की कमी के कारण भी पौधे में बीमारी जैसे लक्षण दिखते हैं। अतः यह समझना आवश्यक है कि पौधे द्वारा प्रदर्शित किए गए विशेष लक्षण किसी आवश्यक तत्व की कमी की वजह से है या फिर बीमारी की वजह से। ये भी देखा गया है कि जानकारी के अभाव में कई बार किसानों के द्वारा अनावश्यक कीटनाशकों के स्प्रे कर दिए जाते हैं जिससे किसानों की अनावश्यक लागत बढ़ जाती है। यदि हम मनुष्य एवं पौधों की बात करें तो मनुष्य एक बार बीमार होने के बाद रिकवरी कर लेता है परन्तु पौधों पर बीमारी आने के बाद बिना प्रभावी प्रबंधन के रिकवरी करना मुश्किल होता है जिससे पौधे की मृत्यु हो जाती है।

रोग की सही जानकारी न होने की वजह से किसानों को बहुत नुकसान का सामना करना पड़ता है एवं अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग से पर्यावरण भी असंतुलित हो जाता है। इसके साथ ही मृदा का स्वास्थ्य खराब होता है एवं मृदा में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या में कमी आ जाती है। इस तरीके से किसान को अप्रत्यक्ष रूप से भी नुकसान का सामना करना पड़ता है। अतः इन सभी समस्याओं को कम करने के लिए उत्तम प्रबंधन आवश्यक है एवं उत्तम प्रबंधन हेतु रोगों और रोग कारकों की पहचान आवश्यक है जिससे कि पौधों पर फाइटो टॉक्सिसिटी को भी कम किया जा सके।

पादप रोगों की पहचान के समय ध्यान रखने योग्य बातें :

हम जानते हैं कि बीमारी फैलने के लिए सामान्यतः तीन कारक जिम्मेदार होते हैं : सहनशील किस्म, रोगकारक की उग्रता, अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थिति। इन तीन कारकों के मिलने से बीमारी उत्पन्न होती है।

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