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जैव उर्वरक- कम लागत अधिक लाभ
Modern Kheti - Hindi
|1st July 2025
आज पूरे विश्व में जैविक खेती को रासायनिक खेती का विकल्प माना जा रहा है। साठ के दशक में हरित क्रांति के फलस्वरूप अन्न उत्पादन में देश आत्मनिर्भर हुआ परन्तु इसके दुष्परिणाम भी सामने आये।
जैसे मृदा उर्वरता में गिरावट, रसायनों के अवशेष के फलस्वरूप मृदा, जल एवं वायु प्रदूषण तथा मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव। इन सभी समस्याओं से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय जैविक खेती ही है। जैविक खेती में पोषक तत्व प्रबंधन करने के लिए जीवाणु खाद का प्रयोग अति आवश्यक हो जाता है जिससे फसल उत्पादन तथा उत्पादकता में गिरावट न हो तथा मृदा की उर्वरा शक्ति बनी रहे। भारतीय कृषि में जीवाणु खाद का महत्वपूर्ण स्थान है एवं इनका अधिक से अधिक मात्रा में प्रयोग कर उर्वरकों की खपत कम की जा सकती है, पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। फसल उत्पादन में लागत में कमी की जा सकती है एवं फास्फोरस उर्वरकों की उपयोग क्षमता बढ़ाई जा सकती है। जैव उर्वरक या बायो फर्टिलाइजर को जीवाणु खाद भी कहते हैं। बायो फर्टिलाइजर एक जीवित उर्वरक है, जिसमें सूक्ष्मजीव विद्यमान होते हैं। इन्हें फसलों में इस्तेमाल करने से वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन, पौधों को अमोनिया के रूप में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। ये जीवाणु प्राकृतिक हैं। इसलिए इनके प्रयोग से मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ती है और जीवों के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
जीवाणु खाद/जैव उर्वरक के प्रकार :
राइजोबियम : राइजोबियम, जैव उर्वरक मुख्य रूप से सभी दलहनी फसलों में सहजीवी के रूप में रहकर पौधों को नाइट्रोजन की पूर्ति करता है। राइजोबियम को बीजों के साथ मिश्रित करने के बाद बुआई करने पर जीवाणु जड़ों में प्रवेश करके छोटी-छोटी गांठे बना लेते हैं। इन गांठों में जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में रहते हुए, प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमण्डल से ग्रहण करके पोषक तत्वों में परिवर्तित करके पौधों को उपलब्ध करवाते हैं।
Esta historia es de la edición 1st July 2025 de Modern Kheti - Hindi.
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