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कपास में पोषक तत्व प्रबंधन
Modern Kheti - Hindi
|15th August 2023
कपास में अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषण हेतु आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलित मात्रा में मिट्टी में होना आवश्यक है। यदि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होती है तो इनके लक्षण पौधे पर दिखने लगते हैं।
कपास की खेती उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, व राजस्थान राज्य में मुख्य रुप से की जाती है। कपास को गेंहू के साथ फसल चक्र में सिंचित भूमि में लगाया जाता है। कपास में अच्छी पैदावार लेने के लिए पोषण हेतु आवश्यक पोषक तत्वों का संतुलित मात्रा में मिट्टी में होना आवश्यक है। यदि मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होती है तो इनके लक्षण पौधे पर दिखने लगते हैं। इन लक्षणों को सही समय से पहचान कर पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने से फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है। अक्सर किसान मुख्य पोषक तत्व जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश वाली खाद देते हैं, लेकिन सुक्ष्म पोषक तत्वों पर अधिकांश ध्यान न देने से पैदावार प्रभावित होती है। कपास में इन पोषक तत्वों की कमी के लक्षण व उनके निदान के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की जाती हैं।
1. नाइट्रोजन: इस तत्व की कमी से पुरानी पत्तियों में पीलापन दिखने लगता है और पत्ते सूखकर गिर जाते हैं। पौधे की बढ़वार में रुकावट आने से पौधे कमजोर हो जाते हैं। नाइट्रोजन की मात्रा अधिक होने पर पौधों पर रस चूसने वाले कीटों का प्रकोप अधिक होने लगता है। नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए अमेरिकन कपास में 75 कि.ग्रा. यूरिया, संकर/बी.टी. कपास में 150 कि.ग्रा. यूरिया और देसी कपास में 45 कि.ग्रा. यूरिया प्रति एकड़ की दर से डालें। खाद की आधी मात्रा बौकी आने (जुलाई के अंत में) के समय तथा आधी फूल आने के समय डालें। यदि कपास, गेहूँ के बाद बोई गई है या कम उपजाऊ जमीन में बोई गई है तो नाइट्रोजन वाली खाद की पहली आधी मात्रा बिजाई पर दें। संकर व बी. टी. किस्मों के लिए नाइट्रोजन खाद तीन बराबर हिस्सों में बाँट कर बिजाई के समय, बौकी आने पर तथा फूल आने पर डालें। फसल में डाली जाने वाली कुल नाइट्रोजन की मात्रा में से 8 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति एकड़ का यूरिया के रूप में छिड़काव लाभदायक रहता है। इसमें कीटनाशक दवाइयों को भी मिलाकर फसल में फूल व टिंडे लगते समय छिड़काव करना चाहिए।
Esta historia es de la edición 15th August 2023 de Modern Kheti - Hindi.
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