वो मेरी गलियां
Haribhoomi Rohtak Riwadi
|June 09, 2025
बहुत दिनों बाद, आज अपने शहर, अपनी गली, अपने घर की तरफ़ जाना हुआ था। हालांकि मेरा कुछ नहीं बचा था वहां, बहुत पहले ही सब के ठिकाने बदल गए थे। चिलचिलाती धूप, गर्म लूं के थपेड़े, सिर पर ओढ़े हुए सूती दुपट्टे को एक बार फिर और खोल कर लपेट लिया था मैंने।
वही गली थी, बस अब पक्की बन गई थी। बड़ी सी मुख्य सड़क के सामने मेरे घर की भीड़ी सी गली। मुख्य सड़क पर एक ओर मंदिर था, मंदिर के बाहर एक विशाल पीपल का पेड़ हुआ करता था। पीपल के पेड़ के बराबर में एक तंग सी गली, और गली के बराबर में ही सीधे हाथ पर एक दुकान जहां टाफियाँ, पीले रंग के नमकीन रोल, जो फूंक मारने से ही उड़ जाते थे। मीठी और तरह तरह के रंगों की रंगीन सी गोलियां बहुत मजा आता था उन्हें खाने में। कभी अलग-अलग रंग लेती, तो कभी एक जैसा रंग। दुकान वाला चाचा, जो कि सबका चाचा था, बहुत डांटता था, 'रंग खाने हैं या गोलियाँ'?
पीपल के पेड़ के बायें हाथ को भी एक छोटी सी हलवाई की दुकान थी जहां दूध, मिठाइयां और प्रसाद मिलता था।
शनिवार को सुबह-सुबह औरतें पीपल के पेड़ पर मिठाई और चंद सिक्के शनिदेव को खुश करने के लिए चढ़ा जाती थी। शनिवार को स्कूल की छुट्टी भी बहुत जल्दी होती थी। मैं जल्दी ही छुट्टी से भी जल्दी भागती हुई घर की तरफ़ आती और वहां रखी मिठाई और सिक्के उठा लेती। मिठाई पेट के हवाले और सिक्के स्कूल बैग की जेब के हवाले। मेरा एक सहपाठी नवीन जो कि मेरे साथ ही स्कूल जाया करता था। शायद मुझे ये सब करते देख चुका था। मेरे घर शिकायत करने की उसमें हिम्मत नहीं थी, क्यों कि उस समय मैं अपने ग्रुप की सरदार थी और नवीन जैसे बहुत से बच्चे, जिन्हें दूसरे बच्चों से झगड़ने से डर लगता था। वे सरदार की शरण में रहते थे। शनिदेव के उन सिक्कों से मेरा व्यापार भी चलता था। बहुत बच्चों को मैंने उधार दे रखा था। वापसी तो किसी से भी नहीं हुई थी पर पैसों के चलते मेरा अलग ही रौब था।
एक दिन हमारे स्कूल के बाहर एक अलग तरह की कुल्फी प्लेट में बिक रही थी, उसमें लच्छे भी थे। मुझे उस कुल्फी की बहुत इच्छा हुई, मेरी उस समय की भाषा में मुझे बस कुल्फी की भूख लगी थी। मैंने अपने सारे देनदारों से पैसे वापस मांगे, और वो भी धमका कर।
आधी छुट्टी पूरी होने तक मुश्किल से पैसे इकट्ठे हुए, मैंने कक्षा में ना जाकर कुल्फी वाले के पास खड़े होकर कुल्फी खाई।
Diese Geschichte stammt aus der June 09, 2025-Ausgabe von Haribhoomi Rohtak Riwadi.
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